अंग्रेजी के विख्यात उपन्यास “गॉड-फादर” में एक संवाद है, जहाँ कहा गया है कि हर बड़ी सफलता किसी न किसी अपराध पर आधारित होती है।
मीडिया जगत के सबसे कुख्यात नामों में से एक एनडीटीवी की बात करें तो वहाँ भी कहानी कुछ ऐसे ही शुरू होती है। अस्सी के दशक के अंतिम पक्ष में भारत के उस दौर के एकमात्र पब्लिक ब्रॉडकास्टर दूरदर्शन से एनडीटीवी को सीरियल बनाने का ठेका मिल गया।
उन्होंने “विश्व-दर्शन” या “द वर्ल्ड दिस वीक” नाम का कार्यक्रम बनाना शुरू भी कर दिया। उस दौर के हिसाब से एनडीटीवी ही नहीं, किसी भी चैनल के लिए ये बहुत बड़ा ठेका था, क्योंकि प्रति एपिसोड इस शृंखला के लिए दूरदर्शन दो लाख रुपये (करीब 6,000 डॉलर) दे रही थी।
संयोग से उस समय दूरदर्शन के प्रमुख थे भास्कर घोष। जाने-माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई इसी भास्कर घोष के दामाद थे, बाद में लम्बे समय तक वो एनडीटीवी में नंबर दो के स्थान पर रहे।
इस दौर में भारत में निजी चैनल समाचारों और दूसरे कार्यक्रमों के साथ आ ही रहे थे। रुपर्ट मड्रोक का स्टार भारत में आ ही रहा था और ऐसा माना जाता है कि भारत में स्टार न्यूज़ चलाने के लिए एनडीटीवी से पांच वर्षों का शुरुआती करार इसी वजह से हुआ था, क्योंकि उनपर भारत में काम करने के लिय एनडीटीवी से करार करने की शर्त थोपी गई थी।
इस करार का ही नतीजा था कि तब के प्रधानमंत्री गुजराल के आवास में स्टार न्यूज़ के उद्घाटन का कार्यक्रम फरवरी 1998 में संपन्न हुआ।
इस दौर तक एनडीटीवी के धतकरमों की खबर सरकारी संस्थानों को भी हो चुकी थी। दूरदर्शन के विजिलेंस सेक्शन ने अपनी रिपोर्ट संसदीय समिति को सौंप दी थी और फिर सीबीआई जाँच भी शुरू हो गई थी।
इस मामले में 3.52 करोड़ का घोटाला सामने आया। सीबीआई ने 1998 में ही एनडीटीवी और कुछ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ करीब 5 करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट कर दी थी। तभी सरकार बदली और अरुण जेटली नए सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने। इसके साथ ही प्रणय रॉय और उनके साथियों पर जाँच-कार्रवाई इत्यादि बंद हो गई।
यानी, किसी एक दल में नहीं, जिस भी राजनैतिक पार्टी की सत्ता रही, उसी में प्रणय जेम्स रॉय ने अपना ‘जुगाड़’ बिठा रखा था। ऐसी घटनाओं की चर्चा के साथ ही श्री अय्यर की पुस्तक ‘एनडीटीवी फ्रॉड्स’ शुरू होती है।
जब 2017 में इसका पहला संस्करण आया, तभी से ये पुस्तक चर्चा में रही। जो दूसरों की पोल खोलने का दावा ठोकते हों, कोई उनकी ही पोल खोलती किताब लिख डाले तो चर्चा तो होनी ही थी। थोड़े ही दिन बाद, 2019 में इस पुस्तक का दूसरा संवर्धित संस्करण ‘एनडीटीवी फ्रॉड्स वर्शन 2.0’ और तथ्यों के साथ आ गया।
किताब में लिखी और इंटरव्यू इत्यादि में कही बातों के लिए श्री अय्यर पर मानहानि का मुकदमा ठोकने की बात भी हुई। इस सिलसिले में एनडीटीवी की ओर से किसी वकील अनुराधा दत्त ने उन्हें अगस्त 2019 में नोटिस भी भेजा था।
इसके जवाब में जब श्री अय्यर ने स्पष्ट कर दिया कि वो अपनी लिखी-कही बातों पर कायम हैं तो आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। श्री अय्यर ने स्पष्ट कर दिया था कि वो पुराने कहे पर तो कायम हैं ही, साथ ही वो पी चिदंबरम को भी नये तथ्यों के आलोक में दोषी मानते हैं।
श्री अय्यर की किताब में जो तथ्य हैं, उनमें से अधिकाँश मुकदमों में पेश हुए प्रमाण ही हैं, इसलिए किसी मानहानि के मुक़दमे का प्रश्न भी नहीं उठता था।
श्री अय्यर इस बारे में बात करने वाले इकलौते व्यक्ति भी नहीं थे। उनकी पुस्तक में एनडीटीवी के भूतपूर्व पत्रकार संदीप भूषण के साक्षात्कार का जिक्र भी आता है। संदीप भूषण ने एनडीटीवी में जारी भ्रष्टाचार की पोल खोलकर रख दी थी। उनका साक्षात्कार घनघोर वामपंथी मानी जाने वाली पत्रिका ‘कारवाँ‘ में प्रकाशित है। इसलिए किसी एक पक्ष के उसके होने की बात बेमानी है।
“एनडीटीवी जब लॉन्च हुई तो उसकी दावत फरवरी 1998 में तब के प्रधानमंत्री आईके गुजराल के सरकारी आवास में हुई थी। जब एनडीटीवी के पच्चीस वर्ष पूरे होने की दावत 2013 में हुई तो वो कांग्रेसी हुक्मरानों का दौर था। जो शुरू ही प्रधानमंत्री आवास से हुआ हो, उसके पच्चीस वर्ष होने पर राष्ट्रपति भवन में दावत क्यों नहीं होती?” ये शब्द भी मेरे नहीं। ये करीब-करीब वो बातें हैं, जो संदीप भूषण के साक्षात्कार में ‘कारवाँ’ ने छापा था।
सरकार चाहे जिस राजनैतिक दल की रहे, लेकिन पैठ प्रधानमंत्री आवास से लेकर राष्ट्रपति भवन तक कायम रहे, और फिर उसे सत्ता के खिलाफ खड़ा पत्रकारिता का स्तम्भ भी बताया जाए, ये कमाल तो बस लिबरल-प्रगतिशील गिरोह ही दिखा सकते हैं।
ध्यान रहे कि ये वो बातें हैं, जिनसे श्री अय्यर की पुस्तक केवल शुरू होती है। आगे बढ़ते हुए इस किताब में हमें दिखता है कि कैसे एनडीटीवी ने ‘हिट जॉब’ यानी सुपारी पत्रकारिता शुरू की।
अपने विरोध में जाँच करने वाले अधिकारियों को चुप करवाने के लिए भी एनडीटीवी पर पुस्तक ने निशाना साधा है। छोटे शेयर-धारकों का शोषण और आर्थिक हेराफेरी तो एनडीटीवी और उसके प्रमोटर द्वय का शुरू से स्वभाव ही रहा है। इस पर भी पुस्तक का एक अध्याय केन्द्रित है।
पुस्तक का करीब-करीब आधा हिस्सा (अंत का) प्रणय जेम्स रॉय और उनकी पत्नी राधिका द्वारा की गई आर्थिक हेरा फेरी और सीबीआई द्वारा दायर मुक़दमे पर आधारित है। नए संस्करण में पुस्तक में कई चित्र-कार्टून भी सम्मिलित किए गए हैं। जो प्रमाण 2017 के बाद सामने आये, उनको भी शामिल किया गया है।
कुल मिलाकर करीब 350-400 पन्नों की ये पुस्तक मीडिया जगत में व्याप्त भ्रष्टाचार से पर्दा उठाती पुस्तक है। मीडिया घरानों की खरीद-बिक्री के इस दौर में निष्पक्षता और कदाचार के बीच फैसला करने से पहले मीडिया का ये स्याह पक्ष भी देखा जाना चाहिए।