उत्तराखण्ड के हल्द्वानी में चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इन विरोध प्रदर्शनों में कथित रूप से नाबालिग बच्चों का इस्तेमाल करने के आरोप में नैनीताल के जिलाधिकारी को नोटिस भेज दिया है । आयोग ने डीएम को सात दिनों के भीतर गहन जाँच के बाद रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है।
आयोग ने इस नोटिस में हल्द्वानी विरोध प्रदर्शन का हवाला दिया, जहाँ कथित तौर पर विरोध में बच्चों का इस्तेमाल किया गया था।
नोटिस में कहा गया है, “आयोग को कई सोशल मीडिया के जरिए कई रिपोर्ट्स मिली हैं, जिनमें नाबालिग बच्चों को सड़क पर बैठकर भारतीय रेलवे के खिलाफ प्रदर्शन करते देखा जा सकता है। 20 दिसम्बर, 2022 को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया और उसी के अनुपालन में रेलवे अधिकारियों ने ‘अवैध’ निर्माण का सर्वेक्षण किया।”
आयोग ने पाया है कि कथित अतिक्रमणकारियों द्वारा अवैध विरोध प्रदर्शन के लिए नाबालिग बच्चों का इस्तेमाल किया जा रहा है। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर जो तस्वीरें अपलोड की गई हैं, उनमें बच्चे हाथों में बैनर लिए विरोध प्रदर्शन में बैठे नजर आ रहे हैं।
यह उल्लेख करना जरुरी है कि कम उम्र के बच्चों को इस प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों में विरोध स्थल पर लाया गया है जो उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
गौरतलब है कि इस नोटिस में सोशल मीडिया के लिंक भी अटैच किए गए हैं जिनमें बच्चे साफ़ तौर पर दिखाई दे रहे हैं।
एनसीपीसीआर ने आगे कहा, “इस मुद्दे के मद्देनजर, आयोग को सीपीसीआर अधिनियम, 2005 की धारा 13/(1) 6) के तहत शिकायत का संज्ञान लेना उचित लगता है क्योंकि अवैध विरोध में नाबालिग बच्चों का उपयोग किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 और धारा 83 और अन्य प्रासंगिक प्रावधान का उल्लंघन है।”
आयोग ने डीएम हल्द्वानी से कहा, “आयोग आपके कार्यालयों से इस मामले को देखने और घटनाओं की गहन जांच करने का अनुरोध करता है। इसके अलावा, इस अवैध विरोध में जिन बच्चों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनकी पहचान की जानी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।” इसके अलावा, इन बच्चों के माता-पिता को भी उचित परामर्श दिया जा सकता है।
आयोग ने नोटिस के अंत में लिखा “संबंधित दस्तावेजों जैसे बच्चों के बयान, परामर्श रिपोर्ट आदि के साथ एक कार्रवाई की गई रिपोर्ट को सात दिनों के भीतर आयोग को प्रस्तुत किया जाना है।”
आपको बता दें आज 5 जनवरी को हल्द्वानी रेलवे विवाद की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें हाईकोर्ट ने अतिक्रमण ध्वस्त करने के आदेश दिए थे।