ऐसा कहा जाता है कि तारीख खुद को दोहराती है, महाराष्ट्र की हालिया राजनीति में 30 जून की तारीख बेहद खास रही है। 30 जून, 2022 को एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे से बगावत कर NDA में शामिल हो जाते हैं।
बीते 30 जून, 2023 को NCP नेता अजित पवार नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देते हैं और फिर 40 विधायकों के साथ, जो उनका दावा है, NDA में शामिल हो जाते हैं। यदि ऐसा हो जाता है तो पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर जो घटनाक्रम एकनाथ शिंदे के समय घटा था, वही यहाँ भी घट सकता है।
लोकसभा चुनाव का गणित
आगामी लोकसभा चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं है। उत्तरप्रदेश के बाद महाराष्ट्र दूसरे नम्बर पर है, जहाँ लोकसभा की सबसे अधिक 48 सीटें हैं। इस लिहाज से यह घटनाक्रम NDA, शरद पवार गुट, उद्धव ठाकरे गुट और कॉन्ग्रेस चारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।
NDA के लिए महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में NDA ने 48 सीटों में से 41 पर जीत दर्ज की थी। NDA इस आँकड़े को छूने की कोशिश कर रही है। जबकि NCP ने मात्र 4 और कॉन्ग्रेस ने 1 सीट पर जीत दर्ज की थी। अब शरद पवार गुट के लिए चुनौती है कि वे अपने गढ़ में पार्टी और परिवार, दोनों को कैसे बचाएँ। वहीं, कॉन्ग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई है।
लेकिन सवाल यह है कि महाराष्ट्र की राजनीति के छत्रप या चाणक्य जैसा कि शरद पवार के समर्थक उन्हें कहते हैं, क्या यह सम्भव है कि उनके भतीजे अजित बागी बन रहे हों, पार्टी टूट रही हो और उन्हें इस बात की भनक तक न हो।
अगर भनक नहीं थी तो यह उनकी राजनीतिक सूझबूझ पर सवालिया-निशान खड़े कर देता है और अगर वे यह जानते थे तो क्या अपने भतीजे के उठाए गए कदम पर उनकी मौन सहमति थी?
NCP का BJP को समर्थन
हम मौन सहमति इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इसी वर्ष नागालैंड की NDPP और BJP गठबंधन की सरकार को NCP चीफ शरद पवार ने समर्थन देने की बात कही थी।
यह पहली बार नहीं है जब शरद पवार अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को समर्थन देने की बात कह रहे हों। इससे पहले महाराष्ट्र में ही साल 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले भी शरद पवार, देवेन्द्र फडणवीस से मिलकर सरकार बनाने की बात कर चुके हैं।
ऐसे में सवाल फिर विपक्षी एकता पर उठता है। शरद पवार ने कई मुद्दों पर भी पार्टी को अन्य पार्टियों से अलग रखने की कोशिश की है। मसलन, अडानी-हिंडनबर्ग मामले में अडानी ग्रुप के खिलाफ जेपीसी की माँग। तब शरद पवार ने कहा भी था कि वह कॉन्ग्रेस की इस माँग का समर्थन नहीं करते।
अब सवाल यह है कि इस सब के पीछे का कारण क्या है? इसका जवाब संभवत: कॉन्ग्रेस द्वारा जनाधारविहीन और एक राजनेता के तौर पर विफल राहुल गाँधी को तीसरी बार विपक्ष के नेता और देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करना है।
महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम और वरिष्ठ NCP नेता छगन भुजबल जो अभी NDA मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं वे बता चुके हैं कि NCP की एक मीटिंग में शरद पवार ने भविष्यवाणी की थी कि मोदी 2024 के आम चुनाव में एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। भुजबल की इस बात को NCP के ही बड़े नेता और अब तक शरद पवार के विश्वासपात्र प्रफुल्ल पटेल ने भी सही बताया है।
सोनिया गाँधी के विरोध में उतरे थे शरद पवार
अजित पवार के नेतृत्व में NCP के विधायकों और अन्य नेताओं ने आज वही रणनीति अपनाई है, जो कभी शरद पवार ने अपनाई थी। साल 1999 में गाँधी परिवार का विरोध करते हुए शरद पवार ने सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनाने का पुरजोर विरोध किया था। नतीजा ये हुआ कि उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया और फिर NCP अस्तित्व में आई।
आज NCP को जब यह लगा कि विपक्ष के नेता के तौर पर उन पर गाँधी परिवार को फिर से थोपा जा रहा है, वो भी तब जब महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। कॉन्ग्रेस का यह रवैया आज NCP को 1999 की उसी स्थिति में ले आया है।
ऐसा माना जा रहा है कि शरद पवार की मौन स्वीकृति कहीं न कहीं भुजबल और प्रफुल्ल पटेल के उस बयान की पुष्टि कर रही है जिसमें शरद पवार को विश्वास है कि विपक्षी एकता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने में सक्षम नहीं है।
यह भी पढ़ें: क्या ‘चाचा’ के नेता राहुल गांधी के लिए NDA से जुड़े अजित पवार