आज राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस है। जब राष्ट्र अपने सुरक्षाकर्मियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहा है तब विपक्ष के नेता राहुल गाँधी विदेशी जमीन पर खड़े होकर वहाँ लोगों को बताते हैं कि पुलवामा में 40 जवान एक कार बम में मारे गए। इससे पहले सर्जिकल स्ट्राइक पर वे और उनका दल जिस तरह सवालिया निशान खड़ा करता रहा है, वह सर्वविदित है।
सुरक्षा बलों या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कॉन्ग्रेस का यह रवैया दशकों पुराना है।
70 के दशक तक देश पाकिस्तान से तीन और चीन से एक युद्ध लड़ चुका था। इसी के साथ भारत के पूर्वात्तर राज्यों में चीन द्वारा प्रायोजित अलगाववाद के बीज बोए जा रहे थे। साथ ही पाकिस्तान तीन युद्धों की हार के बाद ‘Bleed India Through Thousand Cuts’ (भारत को हज़ारों घाव देने की योजना) की पॉलिसी के तहत भारत में खालिस्तान को खाद-पानी देने का काम शुरू कर चुका था। इससे पहले 60 के दशक के मध्य में ही नक्सवाद अपनी जड़ें मजूबत करने में लगा हुआ था।
90 के दशक में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन पूरी तरह से सक्रिय हो गए थे। पाकिस्तान ने हजारों आतंकवादियों को सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया था। जब 1989 में सोवियत संघ अफगानिस्तान से वापस चला गया तब पाकिस्तान ने इन आतंकवादियों की घुसपैठ कश्मीर घाटी में शुरू करवाई। साथ ही कई चरमपंथी संगठनों द्वारा कश्मीर में अलगाववादी घटनाओं को अंजाम देना शुरू हो गया था। कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार भला कौन भूल सकता है। उस समय केन्द्र और अधिकतर राज्यों में किसकी सरकारें थी, यह सबको याद है।
90 के दशक के बाद ना केवल सीमान्त राज्यों में बल्कि अन्य राज्यों में भी बम ब्लास्ट होना शुरू हुए थे। 1993 का मुम्बई हमला हमें याद ही है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए लाए गए कानूनों का विरोध कॉन्ग्रेस किस तरह करती है इसका एक उदाहरण POTA है। कॉन्ग्रेस ने POTA को लेकर भ्रम फैलाया था कि एनडीए सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों और अल्पसंख्यकों को धमकाने के लिए POTA ले आई है।
90 के दशक में भारत कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर और तमिल ईलम के खतरे से जूझ रहा था। इस स्थिति को आंतरिक स्तर पर पैदा हुए आतंकवादी संगठन और गंभीर बना रहे थे।
जब अटल बिहारी वाजपेयी ने देश की कमान संभाली तो उनके सामने सुरक्षा का मुद्दा सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था। ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद अस्तित्व में आया।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा स्थिति का सही असेसमेंट कर प्रधानमंत्री को जरूरी सलाह देना शुरू किया। ब्रजेश मिश्रा देश के पहले NSA नियुक्त हुए। नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल बनाने, कारगिल रिव्यू कमिटी और इंटेलिजेंस को मजबूत करने में उनकी अहम भूमिका रही।
वर्ष 2002 में तत्कालीन NDA सरकार ने POTA लाया तो तुष्टिकरण की राजनीति से ग्रसित कॉन्ग्रेस ने वर्ष 2004 में एक समुदाय के वोटों के आगे हार मान ली और कानून को रद्द कर दिया।
इसका असर आने वाले दिनों में दिखा जब भारत के सभी बड़े शहरों में एक-एक करके धमाके सुने जाने लगे। हजारों मासूमों की जान गई। दिल्ली, मुंबई, वाराणसी, अयोध्या, लखनऊ सभी शहरों में स्लीपर सेल की तरह पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमला करने लगे।
कानून की सख्ती ना होने के कारण इनके हिमायती इन्हें बिगड़ा लड़का बता कर बचाते रहे। इसकी परिणति अंत में 2008 मुंबई हमले के रूप में हुई जब देश की आर्थिक राजधानी बंधक बन गई। उसके बाद कॉन्ग्रेस को दबाव में NIA के गठन जैसे कदम उठाने पड़े।
सिर्फ इसी तरह नहीं कॉन्ग्रेस की सरकार ने कश्मीर में भी ना केवल आतंकवादियों के प्रति बल्कि आतंकवाद के प्रति भी नरम रवैया अपना लिया था।
पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी घाटी में रोज सेना और आम लोगों पर हमले करते रहते थे परन्तु सेना को कड़े एक्शन के आदेश नहीं दिए जाते थे। दिल्ली में बैठे प्रधानमंत्री आतंक के आका यासीन मालिक से हाथ मिलाते दिखते थे।
वहीं वामपंथी उग्रवाद के मोर्चे पर भी सरकार ढीला रवैया साफ़ दिखता था। कॉन्ग्रेस सरकार देश के आदिवासी इलाकों में मदद के नाम पर जाने वाले उग्रवाद समर्थक NGO, मिशनरियों और वामपंथियों के ऊपर आँख मूंदे रहती थी।
यहाँ तक कि वर्ष 2011 में कॉन्ग्रेस के खुद के एक काफिले पर हुए हमले में 76 CRPF जवानों को बलिदान देना पड़ा था फिर भी इस दिशा में कुछ ठोस काम नहीं किया गया। इन वामपंथियों को खाद पानी देने वाले लोग दिल्ली के विश्विद्यालयों में बैठ कर भारत के लोकतंत्र को कोसते थे और खुद को एक्टिविस्ट बताते थे।
आंतरिक सुरक्षा को लेकर यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल बनाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 8 साल के कार्यकाल पर बहस चलती रहती है।
साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2014 से पहले आतंकी घटनाओं का जो आंकड़ा हजारों में रहता था, वर्तमान में यह आंकड़ा सैकड़े तक सिमट गया है। गृह मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट भी यही कहती है कि देश में वर्ष 2017 से आतंकी घटनाओं का आंकड़ा शून्य पर सिमट गया है।
देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में भी उग्रवाद की घटनाओं में कमी आई है तटीय सुरक्षा प्रबंधन की बात करें तो वर्ष 2022 में भारत सरकार ने देश की पहली राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संबंधी की नियुक्ति की है।
वर्तमान सरकार के साथ भारतीय नागरिक आंतरिक सुरक्षा को लेकर आश्वस्त दिखता है। शायद इसलिए क्योंकि वह वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुई आतंकी घटनाओं पर राष्ट्र और सेना की प्रतिक्रिया देख चुका है।
वर्ष 2016 में उरी आतंकी हमला हुआ तब भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की। फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद सेना ने बालाकोट एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया। भारतीय वायुसेना ने 48 वर्षों में पहली बार पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट में जैश के ठिकानों को तबाह कर दिया था।
इंटेलिजेंस शेयरिंग के मोर्चे पर भी भारत अभूतपूर्व तरीके से आगे बढ़ रहा है।
भारत वर्तमान में कई देशों के साथ ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप के मेकैनिज्म के माध्यम से जुड़ा हुआ है। समय समय पर इन ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप की बैठक आतंक की रोकथाम पर चर्चा करने के लिए होती रहती हैं। हाल ही में नई दिल्ली में नो मनी फॉर टेरर के तीसरे संस्करण की मेजबानी भारत ने की।
इसके साथ ही काउंटर टेरर कमेटी की बैठकों की विदेश मंत्रालय ने सह अध्यक्षता की। यह मंथन कई मायनों में अहम रहा। इसमें नए और उभरते प्रौद्योगिकियों के आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की वारदातों से निपटने पर जोर दिया गया। इसमें सबसे अहम रहा दिल्ली घोषणा पत्र। घोषणा पत्र में आतंकी वित्त के प्रभाव को रोकने की अहमियत पर जोर दिया गया।
ऐसे वैश्विक जमावड़े हिंदुस्तान को सुरक्षा और कानून का पालन सुनिश्चित करने वाली दूसरे एजेंसियों के साथ आतंक की रोकथाम में सहयोग मजबूत करने का मौका देते हैं। इतना ही नहीं भारत अपने कार्यक्रमों की ओर उनका ध्यान खींचने में कामयाब होता है।
किसी भी राष्ट्र पर आतंकी हमला न सिर्फ अर्थव्यवस्था या जान माल के नुकसान तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि आतंकी घटनाएं उस राष्ट्र की संस्कृति एवं देश के मनोबल पर भी हमला करती हैं।
किसी भी सरकार में हुई पहली आतंकी घटना दुश्मन की साजिश का हिस्सा या सरकार द्वारा स्वयं किसी मोर्चे पर मानवीय भूल मानी जा सकती है, लेकिन बार-बार ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति शासन-प्रशासन की कमियों को उजागर करती हैं। साथ ही ऐसी घटनाओं पर की गई कार्रवाई भी आतंकवाद के खिलाफ सरकार की नीति को स्पष्ट करती है।
कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में कमी आना इसका श्रेय NSA अजीत डोभाल को जाता है। फिर चाहे साल 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक या 2019 का बालाकोट एयर स्ट्राइक। Doval Doctrine के चलते भारत ने अपने आतंकवादी विरोधी नीति को और आक्रामक बनाया। 370 का हटना और घाटी में शान्ति बने रहना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
सुरक्षा को लेकर सरकारों का तुलनात्मक अध्ययन उचित नहीं पर इस बात की चर्चा अवश्य होनी चाहिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सरकारों की अपनी सोच और दर्शन क्या है? तुष्टिकरण राष्ट्रीय सुरक्षा के आड़े आता है, यह हम केवल अपने देश में ही नहीं बल्कि यूरोप के भी कई देशों में देख चुके हैं। यह देखते हुए कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए योजनाएँ बनाते हुए आतंकवाद का लगातार बदल रहा परिदृश्य वर्तमान सरकार की प्राथमिकता है और आगे भी रहेगी।
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