हम हर वर्ष सुरक्षा बलों का सम्मान करने के लिए 4 मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाते हैं। सुरक्षा दिवस का उद्देश्य पुलिस बल, पैरा-सैन्य बल, गार्ड, कमांडो, सेना के अधिकारी और अन्य सुरक्षा बल जो देश में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, उनका सम्मान करना है। वर्ष 1972 से मनाया जा रहा राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस की थीम वर्ष 2023 के लिए ‘युवा दिमाग का पोषण करने – सुरक्षा संस्कृति विकसित करने’ रखी गई है।
राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के जरिए दैनिक कार्य एवं सामान्य जीवन शैली में सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना है। महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य के अनुसार, प्रत्येक राजसत्ता का सर्वप्रथम उद्देश्य किसी भी प्रकार के आक्रमण से अपनी प्रजा की रक्षा करना होता है। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में आंतरिक खतरों, आंतरिक रूप से सहायता प्राप्त बाहरी खतरों एवं बाह्य आक्रमणों को जिक्र किया है।
देश ने स्वतंत्रता के बाद से बाहरी आक्रमणों के साथ ही आंतरिक विद्रोहों का सामना किया है। आंतरिक सुरक्षा में सेंध देश के लिए कितनी घातक हो सकती है उसका उदाहरण हमें जम्मू-कश्मीर के पंड़ितों पर हमला, मुंबई हमला, नक्सलवाद, अलगाववादी संगठनों को देखकर ही पता चलता है।
स्वतंत्रता के बाद से ही देश ने युद्धों की विभीषिका झेली जिसका भारतीय सेना द्वारा पर्याप्त जवाब दिया गया। पर आंतरिक खतरों ने देश को खोखला बनाने का काम किया। यूपीए सरकार में कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व की समस्याएं बनी रही पर सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। असम की जातीय हिंसा हो, कश्मीर में बढ़ता आतंक एवं उग्रवाद और नकस्लवाद की समस्या, देश ने हर मोर्चे पर संघर्ष किया। आतंकवाद संबंधित एक आरटीआई में जानकारी सामने आई थी कि सबसे अधिक आतंकवादी भारतीय सेना और सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए, जिन्होंने यूपीए सरकार के दौरान सबसे अधिक आतंकी हमलों का सामना किया था। मोदी सरकार स्पष्ट रूप से ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के द्वारा आतंकवाद पर गहरी चोट करने में कामयाब रही थी।
क्या इतना कठिन है राष्ट्रीय सुरक्षा का राजनीतिकरण न करना?
यूपीए सरकार द्वारा सुरक्षा एजेंसियों का उपयोग सही प्रकार से नहीं किया गया यही उसकी सबसे बड़ी असफलता भी रही। इसका जिक्र कॉन्ग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अपनी पुस्तक में भी किया था जिसमें मुंबई हमले के बाद मनमोहन सरकार द्वारा कार्यवाही नहीं करने को गलत ठहराया गया था। प्रश्न यह है कि क्या पूर्व में मनमोहन सिंह सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से इसपर चर्चा करके शांत रहने का निर्णय लिया था?
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद सर्वप्रथम वर्ष 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा सृजित किया गया था। वे देश की आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों को गंभीरता से ले रहे थे पर विडंबना यह है कि आने वाली सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
वर्ष 1998 से अबतक देश में 5 NSA की नियुक्ति की जा चुकी है। देश के पांचवें NSA अजीत डोभाल को उनकी कूटनीतिक एवं खुफिया शक्तियों के लिए जाना जाता है। अजीत डोभाल वर्ष 1989 में स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों को निकालने के लिए ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ का नेतृत्व कर चुके हैं जिसने बिना हिंसा के चरमपंथियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। वह 7 से अधिक वर्षों तक पाकिस्तान में खुफिया जासूस रह चुके हैं। भारत के साथ चीन के विवाद सुलझाने और सर्जिकल स्ट्राइक में NSA की भूमिका दर्शाती है कि किस प्रकार सुरक्षा सलाहकार और सरकार के संयोजन से देश की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जा सकती है।
वर्ष 2014 के बाद से मोदी सरकार के निर्णयों ने देश में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया है। सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार द्वारा आतंकवाद और आंतरिक सुरक्षा को गंभीरता से लिया गया है। इसी का परिणाम है कि वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74% की कमी आई है। साथ ही इस अवधि के दौरान सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की मृत्यु में भी क्रमश: 60% और 84% की कमी आई है।
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में सुरक्षा स्थितियों में सुधार के लिए सरकार द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों के कारण दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों को कम किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा न सिर्फ पूर्वोत्तर राज्यों में सुरक्षा पर ध्यान दिया गया बल्कि वहां संवाद भी बढ़ाया गया जिससे यह राज्य देश की मुख्यधारा से जुड़ सकें। इसी का परिणाम है कि लोगों ने वहां लोकतंत्र के नए स्वरूप को खुलकर अपनाया है और वर्ष 2014 के उपरांत करीब 7000 उग्रवादी सरेंडर कर चुके हैं। बोडो समझौता, करबी-आंगलांग समझौता, NLFT(SD) समझौता और ब्रु-रिआंग शरणार्थी संकट सुलझाने के लिए किए गए समझौतों ने पूर्वोत्तर राज्यों में संघर्ष तो समाप्त कर शांति और समृद्धि को बढ़ावा दिया है।
26/11: साल और सरकारें बदलीं, आंतरिक सुरक्षा में कितना बदलाव आया?
सुरक्षा क्षेत्र में मजबूती देश के विकास के लिए आवश्यक है और इसके लिए जरूरी है कि सभी सुरक्षा संस्थाओं में समन्वय बना रहे। इसी दूरदर्शिता के साथ मोदी सरकार द्वारा सीडीएस पद का सृजन किया गया। जनरल बिपिन रावत देश के पहले CDS थे और उन्हें 31 दिसंबर, 2019 को नियुक्त किया गया था। CDS की मुख्य भूमिका मुख्यतः त्रि-सेना सहयोग को बढ़ाना देना है। साथ ही CDS रक्षा मंत्रालय, नौकरशाही एवं सशस्त्र सेवाओं के बीच भी सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
देश के पहले CDS रहे जनरल बिपिन रावत का संबंध गोरखा रेजीमेंट से रहा। बिपिन रावत का कहना था कि उनकी जिंदगी में उन्होंने गोरखा में रहते हुए जो भी कुछ सीखा वो कहीं और सीखने को नहीं मिला है। बिपिन रावत ने पुलवामा आतंकी हमले के बाद सेना प्रमुख के रूप में वर्ष 2019 में पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ट्रेनिंग सेंटर को निशाना बनाकर किए गए हवाई हमलों का निरीक्षण किया था।
बहुसंस्कृतिवादी देश में अक्सर अतिवादी एवं उग्रवादी संगठनों की समस्याएं देखी जाती है। लोकतंत्र में इनका प्रभाव कम करने के लिए दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता होती है। निश्चित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, एवं रक्षा नियोजन समिति जैसी संस्थाओं का निर्माण कर सरकार ने सुरक्षा क्षेत्र में कई सुधार किए हैं। देश की सुरक्षा को वास्तविक खतरा आंतरिक उग्रवादी गतिविधियों से है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार सुरक्षा विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करे और इसका बेहतरीन उदाहरण मोदी सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया है।