हाल ही में देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के ‘पंच प्रणों’ की चर्चा की थी। पंच प्रण वह पाँच प्रतिज्ञाएं हैं, जिन्हें अगले 25 सालों में पूरा करना है जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे कर रहा होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “हमें इन पंच प्रणों को लेकर आजादी के दीवानों के सपनों को पूरा करना होगा, जब 2047 में आजादी के 100 साल हो रहे होंगे।”
आज़ादी के अमृत महोत्सव के पंच प्रण
- पहला प्रण– देश अब बड़े संकल्प लेकर चलेगा क्योंकि छोटे-छोटे संकल्प का अब समय नहीं है। यह बड़ा संकल्प है विकसित भारत।
- दूसरा प्रण– दासता के एक एक चिह्न से पूरी तरह मुक्ति। अपने अंदर और आसपास गुलामी की छोटी से छोटी चीजों से 100 फीसदी छुटकारा पाना है।
- तीसरा प्रण– हमें अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए। इसी विरासत ने भारत को कभी स्वर्ण काल दिया था। हमें अपनी पारिवारिक व्यवस्था और जीवनशैली पर गर्व करना है। हमारी विरासत को दुनिया को सराह रही है। हम वो लोग हैं जो जीव में शिव देखते हैं। हमें अपनी जमीन से जुड़ना है।
- चौथा प्रण– एकता और एकजुटता। 130 करोड़ देशवासी मिलकर ही ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ बना सकते हैं।
- पांचवा प्रण– प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री समेत हर किसी को ‘नागरिक कर्तव्यों’ का पालन करना है।
हाल ही में आपने हमारे यूट्यूब चैनल ‘The Indian Affairs’ पर वरिष्ठ शिक्षाविद् और विचारक पवन गुप्ता का ‘मसूरी संवाद’ कार्यक्रम देखा होगा। पवन गुप्ता ने इस कार्यक्रम में जो कहा उसे हम प्रधानमन्त्री द्वारा घोषित किए गए ‘पंच प्रणों’ की पूर्व भूमिका की तरह देख सकते हैं कि, आखिर इन खास प्रणों के पीछे कौनसी राष्ट्रीय परिस्थितियाँ और मानसिकताएं काम कर रही हैं।
पवन गुप्ता ने कहा,
“आज राज्य और राष्ट्र की जो व्यवस्था है उसकी जड़ें कोलोनियल स्टेट (औपनिवेशिक शासन) से मिलती हैं। जहाँ पर समाज खत्म और राजकीय व्यवस्थाओं का बोलबाला चालू हो जाता है, आज अगर हम अपने जीवन में देखें तो समाज नाम की कोई चीज नहीं है। हमारी शिक्षा हो, हमारा स्वास्थ्य हो, हमारी न्यायिक व्यवस्था हो, कोई भी चीज हम देखें तो वह नेशन स्टेट संचालित करता है, समाज नहीं संचालित करता है। ये एक बड़ा परिवर्तन हुआ है।”
ये वह बात है जो प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे और चौथे प्रण का आधार बनती है, जब वो कहते हैं कि हमारी अपनी व्यवस्था ने हमें स्वर्णकाल दिया था। दूसरों की व्यवस्था से हम स्वर्णकाल नहीं पा सके हैं। इस प्रण में समाज की ईकाई परिवार पर जोर डालते हुए पारिवारिक व्यवस्था को मजबूत करने का आह्वान किया जो पोस्ट ग्लोब्लाइज़ेशन की दुनिया में तेज़ी से बिखर रही है।
आज गाँव के पंचायत चुनावों में भी राजनीति इतनी हावी हो चुकी है कि सामाजिक सम्बन्ध तार तार हो रहे हैं। जाति, क्षेत्र, भाषा जैसे मुद्दों पर की गयी राजनीतिक तकरीरें समाज में स्थायी ज़हर घोल रही हैं। उस विष को समाज से निकालना है, एक देश है, और सबको रहना यहीं है, इसलिए एकजुट रहना है।
आत्मनिर्भर होने का अर्थ
पवन गुप्ता कहते हैं, “आज जब हम एक शब्द यूज़ करते हैं ‘आत्मनिर्भरता’ तो अधिकतर लोगों के दिमाग में जो तस्वीर आती है, वो ये आती है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता लेकिन आत्मनिर्भरता एक बहुत बड़ा शब्द है उसके बहुत बड़े मायने हैं। उसमें इमोशनल, मेंटल, ये भी आत्मनिर्भरता आती है। आप मानसिक रूप से, आप भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर हैं कि नहीं? आज उसकी बात ही नहीं हो रही है।”
“मैं ये मानता हूँ कि आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है। भारत आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है या नहीं बढ़ रहा है ये एक अलग सवाल है, लेकिन क्या हम मानसिक रूप से स्वतंत्र हो रहे हैं ये एक बड़ा सवाल है और मुझे लगता है उस ओर हमें काम करने की आवश्यकता है”
अंग्रेज चाहते थे कि भारत पश्चिम की धुरी पर रहे
रूज़वेल्ट ने कहा था कि, भारत पश्चिमी धुरी पर रहे, कहीं न कहीं ये सिर्फ आर्थिक रूप से बात नहीं हो रही है। ये वैचारिक और मानसिक रूप से बात हो रही कि भारत कहीं मानसिक रूप से स्वतंत्र हो गया तो फिर अपनी जड़ों से जुड़ जाएगा और अगर अपनी जड़ों से जुड़ गया तो वह अपना समाज, अपनी वैश्विक दृष्टि के आधार पर अपना विकास करेगा और वो हमको चुनौती दे सकता है।
इस पर पवन गुप्ता कहते हैं, “मुगलों ने तो हमें हिंसा दी, लेकिन अंग्रेजों ने हमें हीनभावना भी दी।” यही वह वजह है जिसे मोदी गुलामी का एक एक चिह्न हटाने के प्रण में एड्रेस करते हैं। इसी पर पहला काम जो सामने आ रहा है वह है भारतीय नौसेना के निशान से क्रॉस का औपनिवेशिक निशान पूरी तरह हटाना।
इसका अंदाजा अमेरिकी और पश्चिम की व्यवस्था के रूज़वेल्ट और हेनरी केसिंजर जैसे बड़े लोगों को है, उन्हें इस बात का अहसास है, पर हमको नहीं है। हम बहुत भावुक लोग हो गए हैं, हम हर चीज़ भावना में सोचते हैं, तुरंत। परन्तु हम बहुत निष्ठुर होकर इन चीजों को नहीं देख पा रहे हैं और मुझे लगता है कि अब ये समय आया कि हम इन चीजों को ठीक से देखकर के अपना आगे का रास्ता तय करें, जो कि पंचप्रणों में बखूबी पेश किया गया है।