सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति में उप-वर्गीकरण के निर्णय पर चर्चा जारी है। इस बीच पसमांदा समेत कई मुस्लिम समूहों ने मांग की है कि SC quota for Dalit Muslims Christian का प्रावधान हो और कम से कम 12 मुस्लिम जातियों को अनुसूचित जाति यानी SC में शामिल किया जाए। हाल ही में इस मांग को लेकर मुस्लिम समूहों के एक प्रतिनिधिमंडल ने रिटायर्ड जस्टिस केजी बालकृष्णन कमेटी से मुलाकात की है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के पूर्व सांसद अली अनवर इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने कहा, “कम से कम 12 मुस्लिम जातियों को SC में शामिल किया जाना चाहिए। उनकी स्थिति कई हिंदू अनुसूचित जातियों से भी बुरी है। उनके साथ उन्हीं का समुदाय छूआछूत करता है।”
SC quota for Dalit Muslims Christian क्या है?
सवाल है कि केजी बालकृष्णन कमेटी कब बनी? किसने बनाई? कमेटी बनाने का उद्देश्य क्या है? इसके साथ ही बड़ा सवाल ये भी है कि क्या नए धार्मिक समूह को SC में शामिल करना संवैधानिक और तार्किक होगा? आइए, इन सभी सवालों का जवाब विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत ‘संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950’ में प्रावधान किया गया है कि हिंदू धर्म से अलग धर्म मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।
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बाद के वर्षों में इस कानून में संशोधन हुए और हिंदू धर्म के साथ सिख और बौद्ध धर्म भी इसमें जोड़ दिए गए। इसका अर्थ ये हुआ कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म मानने वाला व्यक्ति ही अनुसूचित जाति का हो सकता है, मुस्लिम और ईसाई मज़हबों को मानने वाला कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति का नहीं हो सकता।
अब चूंकि संविधान में आरक्षण का प्रावधान जाति के आधार पर है, ऐसे में मुस्लिम और ईसाई मज़हब मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण का लाभ नहीं मिलता।
याद रखिए इसी संवैधानिक प्रावधान के तहत वर्तमान में अगर कोई अनुसूचित जाति का सदस्य कन्वर्ट होकर इस्लाम या फिर ईसाई धर्म अपना लेता है तो कन्वर्ट होने के बाद उसे भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट में इसी को लेकर याचिका दायर की गई थी। Centre for Public Interest Litigation नाम के एक NGO ने 2004 से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर रखी थी कि मुस्लिम और ईसाई दलितों को भी अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए, जिससे कि उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिल सके। इसके साथ ही मांग की गई कि अनुसूचित जाति के जो सदस्य इस्लाम या फिर ईसाई धर्म में कन्वर्ट हो चुके हैं या भविष्य में कन्वर्ट हों उन्हें भी अनुसूचित जाति के तहत पूर्ववत आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
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2004 से SC quota for Dalit Muslims Christian मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग था। 2022 में कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार का जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा कि समय आ गया है जब हमें इस पर निर्णय करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 6 अक्टूबर, 2022 को केंद्र सरकार ने जाँच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत एक जांच आयोग गठित करने की अधिसूचना जारी की।
जांच आयोग का अध्यक्ष देश के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन को बनाया गया। सदस्यों में सेवानिवृत्त आईएएस डॉ. रविन्दर कुमार जैन और यूजीसी की सदस्य डॉ. सुषमा यादव को शामिल किया गया। इसी जांच आयोग को केजी बालकृष्णन आयोग कहा जाता है।
अब सवाल है कि केजी बालकृष्णन जांच आयोग क्या जांच करेगा? तो देखिए केंद्र सरकार ने जांच आयोग को निर्देश दिए हैं कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों के अलावा किसी अन्य धर्म में धर्मान्तरित और जो व्यक्ति ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति से संबंध होने का दावा करते हैं, उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं इसकी जांच आयोग को करनी है।
SC quota for Dalit Muslims Christian गैर-संवैधानिक होगा?
अब सवाल है कि अगर जांच आयोग Dalit Muslims और Christian के लिए SC quota का प्रावधान करता है और अनुसूचित जाति से कन्वर्ट हुए व्यक्तियों को आरक्षण का लाभ दिए जाने के पक्ष में रिपोर्ट देता है तो क्या ये सही होगा?
देखिए, जांच आयोग क्या रिपोर्ट देगा ये तो भविष्य के गर्त में छिपा है लेकिन अभी इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि ईसाई और मुस्लिम जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करना कहीं से भी तार्किक नहीं होगा, वो इसलिए क्योंकि दोनों ही मजहबों में दावा किया जाता है कि जातियां नहीं होती।
दोनों ही मजहब के लोग दावा करते हैं कि हिंदू धर्म की तरह उनके यहां जातियों के आधार पर भेदभाव नहीं होता, जातियों के आधार पर वर्गीकरण नहीं होता। दोनों ही मज़हब के लोग दावा करते हैं कि उनका मज़हब जाति-विहीन है। लंबे समय से ऐसा दावा होता आ रहा है, ऐसे में सवाल उठता है कि जब दोनों मजहबों में जातियां ही नहीं हैं फिर अनुसूचित जाति में किसे शामिल करेंगे?
आप कहेंगे ग़रीबों को, तो आपको ये समझना होगा कि ऐसा करना गैर-संवैधानिक होगा, क्योंकि आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान EWS के लिए पहले से लागू है और धार्मिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान संविधान में नहीं है। संविधान में साफ-साफ मोटे-मोटे अक्षरों में जातिगत आधार पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
संविधान निर्माताओं का मानना था कि हिंदू धर्म में जाति के आधार पर भेदभाव के कारण कई जातियां समान अधिकारों से वंचित रहीं। इस कारण वे पिछड़ गईं, ऐसे में उन्हें समाज में बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण दिया जाना चाहिए। सवाल है कि जिन मजहबों में जातियां ही नहीं हैं उन्हें कैसे आरक्षण दिया जा सकता है?
गैर-कानूनी कन्वर्ज़न को मिलेगा बढ़ावा?
अब दूसरे सवाल पर आते हैं। मांग की जा रही है अनुसूचित जाति के धर्मांन्तरित लोगों जोकि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म छोड़कर ईसाई या फिर मुस्लिम बने हैं या बनेंगे उन्हें आरक्षण का लाभ पहले की तरह मिलते रहना चाहिए। सवाल है क्यों? क्या इससे धर्मांतरण को बढ़ावा नहीं मिलेगा?
ईसाई मिशनरियां और इस्लामिस्ट बड़ी संख्या में लोगों को छोटे-छोटे लालच देकर धर्मांतरण नहीं करवाएंगे? वर्तमान में इतने बड़े स्तर पर धर्मांतरण इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि अनुसूचित जाति के लोगों को ये पता है कि ईसाई या फिर मुस्लिम बने तो फिर आरक्षण नहीं मिलेगा।
ऐसे में अगर कन्वर्टिड के लिए आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया तो इससे धर्मांतरण का खुला खेल शुरू होगा, जिसे रोकना लगभग असंभव होगा।
निष्कर्ष के तौर पर एक बात स्पष्ट तौर पर कही जा सकती है कि जांच आयोग चाहे जो भी रिपोर्ट दे, केंद्र सरकार को निश्चित तौर पर इन सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए।