भारत में 15 वर्ष की समयावधि में 41 करोड़ से अधिक लोग निर्धनता की रेखा से बाहर आए हैं। असंभव सी दिखने वाली यह उपलब्धि भारत ने साल 2005-06 से 2019-21 के बीच हासिल की है।
यह जानकारी यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की रिपोर्ट ‘ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पोवेर्टी इंडेक्स 2022’ (Multi Dimensional Poverty Index 2022) में दी गई है। भारत के अतिरिक्त इस रिपोर्ट में अन्य विकासशील देशों में भी निर्धनता घटने की बात कही है। जिनमें भारत के अतिरिक्त अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के देश प्रमुख हैं।
क्या है ‘ग्लोबल मल्टी डायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स 2022’?
ग्लोबल MPI रिपोर्ट 100 से अधिक विकासशील देशों में बहुआयामी निर्धनता मापने का एक तरीका है। इसके अंदर शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर को प्रमुख आधार माना जाता है। बाल मृत्यु, स्कूली शिक्षा, भोजन पकाने के लिए ईंधन, स्वच्छता, साफ़ पीने का पानी और बिजली की आपूर्ति जैसे क्षेत्रों के आँकड़े इसमें प्रयुक्त किए जाते हैं।
इसका पहली बार प्रकाशन वर्ष 2010 में किया गया था। इसे यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम और मानव विकास रिपोर्ट के लिए ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) नाम की दो संस्थाएं मिल कर बनाती हैं। यह रिपोर्ट हर वर्ष प्रकाशित की जाती है। इससे विकासशील देशों में गरीबी के आयामों के विषय में जानकारी मिलती है।
क्या बताती है रिपोर्ट?
रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में 100 करोड़ से अधिक लोग वर्तमान में अत्यंत निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा सहारा मरुस्थल के दक्षिण में अवस्थित देशों का है। विश्व के कुल गरीबों का आधे से अधिक यानी 57.9 करोड़ लोग इन देशों में रहते हैं। कैमरून, बेनिन, सूडान और दक्षिण सूडान जैसे देश इस क्षेत्र में आते हैं।
इन देशों के बाद गरीबी का सबसे बड़ा हिस्सा दक्षिणी एशिया में निवास करता है, जिसमें पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और भारत जैसे देश हैं। इन देशों में लगभग 38.5 करोड़ निर्धन लोग निवास करते हैं। रिपोर्ट में कई देशों का अलग से ब्योरा दिया गया है जिनमें निर्धनता अप्रत्याशित रूप से काफी कम हुई है।
रिपोर्ट बताती है कि नेपाल, इथियोपिया और लाओस जैसे देशों ने अपने यहाँ निर्धनता को कम करने के लिए उचित प्रयास किए है और सफलता भी पाई है। रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में निर्धनता का प्रतिशत 39% से घटकर 17.7% तक आ गया है। इसी तरह लाओस में निर्धनता 40% से घटकर लगभग 23% तक आ गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई है। जहाँ पाकिस्तान में 38% वहीं अफगानिस्तान में 55% जनसंख्या अभी गरीबी का दंश झेलने को मजबूर है। रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में गरीबी उन्मूलन के प्रयासों को तालिबान द्वारा जबरन देश पर कब्जे के बाद गहरा धक्का लगा है।
पाकिस्तान में लगातार बढ़ता विदेशी कर्ज, बढ़ती महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता गरीबी न कम होने का कारण बने हुए हैं। इस प्रकार देखा जाए तो भारत दक्षिण एशिया के अंदर अकेला ऐसा देश है जिसने गरीबी दूर करने को लेकर गंभीर प्रयास किए और बड़ी संख्या में गरीबों को गरीबी की रेखा से ऊपर लाने में सफलता प्राप्त की है।
भारत की उपलब्धि ऐतिहासिक लेकिन अभी काफी काम बाकी
रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 15 वर्षों के दौरान 41 करोड़ लोगों को गरीबी के दंश से मुक्त किया है। देश में गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य 2030 तक प्राप्त किया जा सकता है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेशों ने राष्ट्रीय औसत से अधिक तेजी से गरीबी का उन्मूलन करने में सफलता पाई है।
रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में भारत की निर्धनता दर 16.4% है। भारत ने वर्ष 2005-06 से वर्ष 2019-21 के बीच में इसे 55% से 16% पर लाने में सफलता पाई है।
इस प्रकार यूपीए के शासन के दौरान 2.74 करोड़ लोग प्रति वर्ष गरीबी के दंश से बाहर आने में सफल रहे। वहीं, मोदी सरकार के 4 साल के शासन में (2015-16 से 2019 -21) करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया। यानी, प्रति वर्ष 3.5 करोड़ लोग निर्धनता से मुक्त हुए।
हालाँकि, रिपोर्ट के अनुसार अब भी भारत में 22 करोड़ से अधिक लोग निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जिस पर काफी काम करने की आवश्यकता है।