मांझी फिल्म का एक संवाद है, “जब तक तोड़ेगा नहीं तब तक छोड़ेगा नहीं।” कुछ-कुछ यही कर दिखाया है बंगाल के लिए क्रिकेट खेलने वाले एक गेंदबाज ने।
मूलतः बिहार के गोपालगंज से ताल्लुक रखने वाले बंगाल रणजी टीम के सितारा तेज गेंदबाज मुकेश कुमार पर आखिरकार किस्मत मेहरबान हो ही गई।
दाएं हाथ के मध्यम तेज गति के गेंदबाज मुकेश कुमार (Mukesh Kumar) के लिए कुछ भी कभी आसान नहीं रहा। जिंदगी से अपने हक की हर चीज उन्हें लड़ झगड़ कर लेनी पड़ी और इसके लिए सदैव उन्होंने बड़ी कीमत भी चुकाई। परन्तु कभी भी उन्होंने हार नहीं मानी।
परिवार में मुकेश से आगे एक भाई व चार बहनें हैं। उनके पिताजी कलकत्ता की सड़कों पर टैक्सी चलाया करते थे। निश्चित तौर पर इतना बड़ा परिवार होने के चलते उनके लिए घर चलाना कभी भी आसान न रहा, लेकिन यही तो हर मध्यमवर्गीय भारतीय घर की कहानी है। मुकेश भी हर मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार के किसी बच्चे की तरह दिन दोपहरी में क्रिकेट खेलता रहता। खेल, कुछ पल के लिए ही सही, उसको जिंदगी के तनावों से दूर रखता था।
सर्दी हो या गर्मी, मुकेश सायकिल उठाता और 15-20 किलोमीटर दूर तक चला जाया करता मैच खेलने। क्रिकेट का मैदान उसे सुकून दिया करता था। कितनी दफा माँ पिता से डांट भी खाने को मिलती, मगर मुकेश के कदम भला कहाँ रुकने वाले थे। यह सफर तो अभी कई उड़ानें देखने वाला था।
धीरे धीरे मुकेश बड़ा होने लगा। क्रिकेट का मोह न छूट रहा था। घर की माली स्थिति ठीक न थी, सो कुछ करना भी जरूरी था। मुकेश अक्सर ऐसे टूर्नामेंट खेला करता जहाँ अच्छा प्रदर्शन करने व जीतने पर अच्छी इनामी राशि मिला करती। इससे उसका खर्च निकल जाता करता।
मगर पिता सदैव चिंतित रहते। उनकी चिंता भी जायज थी। इतने छोटे शहर कस्बों के लड़के भला कहाँ क्रिकेट में कुछ अच्छा मुकाम हासिल कर पाते हैं। वह चाहते थे कि मुकेश कोई सरकारी नौकरी पकड़ ले। पिताजी क्रिकेट के खिलाफ न थे, बस अपने बालक को लेकर चिंतित थे।
मुकेश ने तीन चार बार CRPF में भर्ती होने के लिए इम्तिहान दिए। कभी लिखित तो कभी शारीरिक दक्षता की परिक्षा में छंट जाया करते। वहाँ उनका चयन नहीं हो सका।
मुकेश की इच्छा को देखते हुए पिताजी ने उसको कुछ समय दिया। पिताजी मुकेश को अपने पास कलकत्ता ले आए। यहाँ पहले मुकेश ने बड़े क्रिकेट क्लबों के लिए कोशिश की। उन्होंने प्रतिष्ठित कालीघाट क्रिकेट क्लब का दरवाजा खटखटाया मगर उन्हें यह बताया गया कि यहाँ तो दो तीन वर्षों तक खिलाड़ियों को पानी ही पिलाते रह जाओगे। नए घोड़े पर भला कोई दांव क्यों लगाएगा। यहाँ सिर्फ बड़े खिलाड़ियों पर दांव लगाया जाता है।
मुकेश ने फिर बानी निकेतन स्पोर्ट्स क्लब का रुख किया। यहाँ उनकी भेंट हुई कोच बिरेंद्र सिंह से। वह उनकी छांव तले क्रिकेट की बारीकियाँ सीखने लगे। बानी निकेतन स्पोर्ट्स क्लब की टीम के लिए पर्दापण करते हुए अपने पहले ही मैच में मुकेश ने छः विकेट लिए थे।
मुकेश इस बीच चोटिल हो गया। पिताजी की चिंता बढ़ती जा रही थी। पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था। चीजें मुश्किल होती जा रही थीं।

आगे डगर मुश्किल दिख रही थी। मुकेश ने एक दफा फिर पिताजी से एक साल का वक्त मांगा। उन्होंने अपने पिताजी से कहा, “मैं आपको एक साल के भीतर रणजी टीम के लिए सेलेक्ट होकर दिखाऊंगा।” पिताजी तो मान गए, मगर स्वयं मुकेश जानता था यह कहना आसान है परन्तु कर पाना बेहद मुश्किल।
यह साल 2014 के आसपास की बात है। पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली क्रिकेट असोशिएशन ऑफ बंगाल के सेक्रेटरी थे। उन्होंने ‘विज़न 2020’ नामक प्रोग्राम लॉन्च किया/ मकसद था जमीनी स्तर से खिलाड़ियों को तलाशना, तराशना व वापस एक दफा बंगाल को क्रिकेट के राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित करना। मुथैया मुरलीधरन, लक्ष्मण व वकार युनुस को इस प्रोग्राम के लिए कलकत्ता लाया गया।
यहाँ कुछ चमत्कार हुआ। अंतिम दस खिलाड़ियों में मुकेश ने अपनी जगह बना ली थी। परन्तु वकार युनुस को उनमें कोई विशेष स्पार्क नजर नहीं आ रहा था। मगर बंगाल के पूर्व तेज गेंदबाज, राणादेब बोस को उस दोपहर मुकेश में कुछ तो दिखा था। राणादेब बोस वकार युनुस से बहस करने लगे। अंततः वकार युनुस को उनकी जिद के आगे झुकना ही पड़ा। मुकेश का चयन हो गया था।
सफर फिलहाल खत्म नहीं हुआ था। आगे पथ कुछ और कठिन था। गलियां संकरी थीं। मुकेश अक्सर चोटिल हो जाया करते। घुटने में तकलीफ रहा करती जिससे उनकी फिटनेस पर भी सवाल उठा करते।
“इलाज में काफी खर्चा भी होता। कई दफा मन होता कि वापस लौट जाऊँ और खेती कर लूँ। मगर बंगाल के क्रिकेट असोशिएशन ने मेरा हाथ न छोड़ा। उन्होंने मेरे इलाज में मदद की व मुश्किल समय में मुझे रहने के लिए जगह भी उपलब्ध कराई।”
मुकेश
लेकिन मुकेश कुमार एक जुझारू इंसान थे। वो गोपालगंज से कलकत्ता यूँ ही एक रोज हार कर लौट जाने के लिए नहीं आए थे। वह संघर्ष करते रहे। पसीना बहाते रहे। क्लब क्रिकेट में लगातार अच्छा खेलते रहे और फिर, एक रोज, मेहनत रंग लाई। साल 2015 में हरियाणा के खिलाफ लाहली के स्पोर्ट्स ग्राउंड में बंगाल क्रिकेट की रणजी टीम में उन्होंने पर्दापण किया।
एक बाहरी खिलाड़ी, वह भी जो अक्सर चोटिल रहता है, टीम में कैसे ले लिया गया। कई सवाल थे जिनके जवाब दिए जाने थे। मुकेश ने हार मानना सीखा ही नहीं था। मुकेश कुमार ने हरियाणा के खिलाफ लाहली स्पोर्ट्स ग्राउंड में अपने रणजी डेब्यू मैच में कुल पांच विकेट लिए। इसमें से एक विकेट विरेंद्र सहवाग का भी था।
यहाँ से उन्होंने फिर कभी मुड़कर नहीं देखा क्योंकि तब बंगाल की टीम में मोहम्मद शमी व अशोक डिंडा जैसे गेंदबाज थे, एक मध्यम गति के तेज गेंदबाज के लिए टीम में जगह बना पाना आसान न था। उन्हें जितने भी मौके मिलते वह कभी टीम को निराश नहीं करते। 2018-19 के रणजी सीज़न में उन्होंने पांच मैचों में बाइस विकेट चटकाए।
अगले सीज़न में उन्होंने बंगाल की टीम के लिए बत्तीस विकेट लिए। उस वर्ष मुकेश कुमार ने केएल राहुल, मनीष पांडे, करुण नायर आदि मजबूत बल्लेबाजों से लैस कर्नाटक की टीम के विरुद्ध सेमीफाइनल मुकाबले की दूसरी पारी में छः विकेट चटकाए थे। यह वाकई बेहद शानदार प्रदर्शन था जिसने सभी खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया था।
सन् 2022 में मुकेश न्यूजीलैंड ‘ए’ के खिलाफ इंडिया ‘ए’ की टीम में जगह बनाने में सफल रहे थे। फिर दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध खेली गई एकदिवसीय श्रंखला का भी वह हिस्सा थे परन्तु वहाँ वह प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं बना सके। यह स्वयं में खास है क्योंकि गौरतलब है कि मुकेश अब तक किसी भी टीम के लिए IPL में नहीं खेले हैं। वह मात्र रणजी में अपने प्रदर्शन के दम पर यहाँ पहुंचे थे।
खैर, आगे, दिसंबर माह में ही, मुकेश बांग्लादेश में इंडिया ‘ए’ का हिस्सा थे और वहाँ मौका मिलने पर दूसरे अनाधिकारिक टेस्ट मैच में उन्होंने मात्र चालिस रन देकर छः विकेट लिए थे।
बीते रविवार हुई IPL की बोली में दिल्ली कैपिटल्स के मैनेजमेंट ने मुकेश कुमार पर दांव लगाया। उन्होंने उन्तीस वर्षीय मध्यम तेज गति के गेंदबाज मुकेश कुमार को 5.5 करोड़ की धनराशि चुका कर खरीदा। ऐसे अनकैप्ड प्लेयर्स (जिसने अब तक राष्ट्रीय टीम के लिए पदार्पण भी नहीं किया है), जिन पर किसी न किसी टीम ने दांव खेला, की सूची में मुकेश दूसरे सबसे महंगे खिलाड़ी साबित हुए।
रविवार के दिन मुकेश कुमार का फोन बजता रहा, बधाई संदेश रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। बड़े-बड़े न्यूज़ पोर्टल उनका इंटरव्यू करना चाहते थे। मगर हमेशा चट्टान की भांति उनके साथ खड़े उनके पिता आज यह दिन देखने के लिए उनके पास नहीं हैं। मुकेश ने दो वर्ष पूर्व अपने पिता व बीते नवंबर में अपने बड़े पिता को खो दिया। यह उनके बड़े पिता ही थे जो कलकत्ता के मुश्किल दिनों में मुकेश की आर्थिक सहायता किया करते थे। आज यह दिन देखने के लिए उनके दोनों हीरो उनके साथ नहीं।
मगर मुकेश कुमार के साथ उनकी माँ हैं जिन्हें वो सारा देश दिखाना चाहते हैं। मुकेश कुमार के पिताजी व बड़े पिता का हाथ सदैव उनके सिर पर रहेगा। यह ऐसे लोगों के मजबूत कंधों का सहारा ही होता है जिसके चलते मुकेश कुमार जैसे खिलाड़ी कभी हार नहीं मानते।
तमाम विषम परिस्थितियों से लड़कर, सदैव जूझते हुए, कभी भी हार न मान कर यहाँ तक पहुँचने की मुकेश कुमार की यह कहानी वाकई एक उम्मीद जगाती है।
उम्मीद है वो आने वाले IPL में तो बेहतरीन प्रदर्शन करें ही व जल्द ही भारतीय जर्सी पहन खेलते हुए हम सभी का दिल भी जीतें।