The PamphletThe Pamphlet
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
What's Hot

मौद्रिक नीति समिति ने दर्शाया सप्लाई साइड सुधारों में विश्वास

December 11, 2023

भारत के मैन्युफैक्चरिंग और उपभोक्ता बाजार में बढ़ी जापान की पहुँच, आर्थिक सहयोग में आई तेजी

December 9, 2023

पश्चिम बंगाल : मुर्शिदाबाद अस्पताल में 24 घंटे में 9 नवजात शिशुओं की मौत, जांच के आदेश

December 8, 2023
Facebook X (Twitter) Instagram
The PamphletThe Pamphlet
  • लोकप्रिय
  • वीडियो
  • नवीनतम
Facebook X (Twitter) Instagram
ENGLISH
  • राजनीति
  • दुनिया
  • आर्थिकी
  • विमर्श
  • राष्ट्रीय
  • सांस्कृतिक
  • मीडिया पंचनामा
  • खेल एवं मनोरंजन
The PamphletThe Pamphlet
English
Home » भारतवर्ष के इतिहास में माँ: भीष्म पितामह से लेकर आज के मदर्स डे तक
सिविलाइजेशन स्टोरीज

भारतवर्ष के इतिहास में माँ: भीष्म पितामह से लेकर आज के मदर्स डे तक

आशीष नौटियालBy आशीष नौटियालMay 17, 2023No Comments5 Mins Read
Facebook Twitter LinkedIn Tumblr WhatsApp Telegram Email
mother day india
भारत में मातृत्व का इतिहास सर्वाधिक समृद्ध रहा है
Share
Facebook Twitter LinkedIn Email

मनुष्य को इस संसार में लाना तो कठिन हैं लेकिन उसे भला आदमी बनाना और भी कठिन है। ये पंक्तियाँ मैं आपको रूसी उपन्यासकार मैक्सिम गोर्की के उपन्यास माँ से सुना रहा हूँ। 14 मई को सभी लोगों ने मदर्स डे मनाया। जिसके पास जैसे शब्द थे उसने उस तरह से बताया कि ‘माँ’ कितना खूबसूरत शब्द है। उस से भी खूबसूरत होते हैं माँ के साथ के हमारे छोटे-बड़े अनुभव, उनका हर वक्त अपने बच्चे के लिये चिंतित होना, यहाँ तक ध्यान रखना कि उसे क्या ख़ाना और पहनना पसंद है।

भारत में जितने भी वेद-शास्त्र एवं साहित्य आदि लिखे गये या फिर यहाँ का जो इतिहास है, वहाँ आप हर जगह माँ की भूमिका देखते हैं- चाहे भीष्म पितामह की माँ गंगा हों, भरत की माँ शंकुन्तला हो, एक मां वीरांगना लक्ष्मीबाई थी, जिन्होंने दुधमुंहे बच्चे को पीठ में बांधकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, एक माँ पन्ना भी थी जिन्होंने अपनी मिट्टी के लिए अपने बच्चे का भी बलिदान स्वीकार किया, पन्ना के लिए उसकी मिट्टी यानी मेवाड़ ही उसकी माँ थी।

ये भारत की बात है, इसके अलावा एक प्रसिद्ध रूसी उपन्यास भी रहा है जिसे लिखा था मैक्सिम गोर्की ने, ये उपन्यास सोवियत के साहित्य का नींव का पत्थर कहा जाता है। वैसे तो वो एक कम्युनिस्ट साहित्यकार थे लेकिन फिर भी उनकी इस पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिये। ओशो का भी कम्युनिस्टों के बारे में यही विचार था, कम्युनिस्ट उन्हें भी पसंद नहीं थे। गोर्की के इस उपन्यास का मुख्य पत्र पाविल वलासोव है, लेकिन पुस्तक के पन्नों में जाने पर पता चलता है कि मुख्य पात्र पाविल वलासोव की माँ है। केवल पाविल की ही नहीं, बल्कि सारे श्रमिकों के लिए वो माँ जैसा महत्व रखती हैं।

मैक्सिम गोर्की का उपन्यास माँ
मैक्सिम गोर्की का उपन्यास माँ

पूरी दुनिया में इस उपन्‍यास के 28 भाषाओं में 106 संस्‍करण छपे। लेकिन इस उपन्यास में रूसी क्रांति के साल 1902 से 1917 तक का ही कथात्मक विवरण मिलता है। मैं आपको ले कर चलता हूँ महाभारत के दौर में, और देखते हैं कि युधिष्ठिर और भीष्म पितामह के बीच क्या बातचीत हुई थी।

महाभारत, शांति पर्व से ये क़िस्सा है। युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से प्रश्न पूछा था कि पितामह! धर्म का रास्ता बहुत बड़ा है और उसकी अनेकों शाखाएँ हैं। इनमें से किस धर्म को आप सबसे प्रधान एवं विशेष रूप से आचरण में लाने योग्य समझते हैं, जिसका अनुष्ठान करके मैं इहलोक और परलोक में भी धर्म का फल पा सकूँगा।”

इसके जवाब में भीष्म ने कहा था:

“मातापित्रोर्गुरूणां च पूजा बहुमता मम
इह युक्तो नरो लोकान् यशश्च महदश्नुते”

यानी मुझे तो माता-पिता और गुरुजनों की पूजा ही अधिक महत्व की वस्तु नज़र आती है। इस लोक में इस पुण्यकार्य में संलग्न होकर मनुष्य महान यश और श्रेष्ठ लोक पाता है । यानी माता, पिता गुरु, ईश्वर, यही हमारी संस्कृति की क्रोनोलॉजी या सीक्वेंस है। जब पश्चिमी देश इसे सिर्फ़ एक दिवस तक सीमित रखते हैं, आपने देखा भी होगा कि सोशल मीडिया पर RT और लाइक्स देखा रहा इंसान पड़ोस में बैठी अपनी माँ के लिए चाय बनाने तक को राज़ी नहीं होता। ये कल्चर अब रिल्स और इंस्टैग्राम जेनरेशन के ज़रिये यहाँ भी जगह बनाने लगा है।

हिंदुओं को क्यों नहीं चाहिए जन्नत?

जबकि प्राचीन भारतीय लोग सभ्यता की इस माता, पिता, गुरु, ईश्वर की क्रोनोलॉजी को अच्छी तरह समझते थे। आपकी माँ, परिवार, नैतिकता और सद्गुणों का प्रतिनिधित्व करती है, आपके जीवन (धर्म) में प्रमुख महत्व रखती है। आपके पिता, आपके कर्तव्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, आपके नैतिक दायित्वों के बाद वो दूसरे स्थान पर हैं। आपका शिक्षक, सत्य का प्रतिनिधित्व और उस सत्य को खोजने की खोज, उनका तीसरा स्थान है। ईश्वर और मोक्ष अंतिम हैं। यह आपको बताता है कि व्यर्थ की प्रार्थनाओं पर अपना जीवन बर्बाद न करें – एक अच्छा इंसान बनें, अपना कर्तव्य निभाएं और अपने सच्चे ‘स्व’ की खोज करें। अगर आप ऐसा करेंगे तो ईश्वर आपके साथ रहेंगे। अब देखते हैं कि अमेरिका का क्या सीन है।

अमेरिका में साल २०२२ का डेटा देखिए- 1.3 मिलियन से अधिक बुजुर्ग नर्सिंग होम में रहते हैं। जैसे जैसे वहाँ आबादी बढ़ रही है, वैसे वैसे अमेरिका में बुजुर्गों को ओल्ड ऐज होम में डालने का सिलसिला भी ज़ोर पकड़ रहा है। अमेरिका में 54.1 मिलियन से अधिक वयस्कों, जो 65 या उस से अधिक उम्र के हैं, उनमें से 1.3 मिलियन नर्सिंग होम में रहते हैं, यानी क़रीब 2.4% बुजुर्ग नर्सिंग होम में। इसके अलावा बाक़ी के 918,700 बुजुर्गों को उनके घरवाले किसी बाहरी फेसिलिटी में छोड़ आए हैं। वर्तमान में 65+ आयु वर्ग के 54.1 मिलियन अमेरिकी वयस्क हैं। 2060 तक यह संख्या बढ़कर 95 मिलियन होने की उम्मीद है।

यही कल्चर अब भारत में भी हावी हो रहा है। ओल्डऐज होम यहाँ बनाए जा रहे हैं। मेट्रो सिटी ही नहीं बल्कि छोटे शहरों में भी अब लोग अपने माँ-बाप को अपने घर पर नहीं रखना चाहते। अगर पहाड़ों की बात करें तो उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में पहाड़ ही अब ओल्ड ऐज होम बन चुके हैं। क्यों? क्योंकि लोग अपने बुजुर्ग माँ-बाप को वहीं छोड़ कर अच्छी लाइफस्टाइल के लिए शहरों की ओर भाग चुके हैं। उन शहरों में जा कर वो लोग मदर्स डे पर निबंध लिख रहे होते हैं अपने सोशल मीडिया पर।

जबकि भारत का इतिहास श्रवण कुमार का रहा है, जो अपने अंधे माँ-बाप को कंधों पर तीर्थ करवाने निकलता है। हरिशंकर परसाई भी जब लिखते हैं कि दिवस सिर्फ़ कमजोर का होता है तब वो भी यही संदेश देना चाहते हैं कि माता-पिता-गुरु देवता की सभ्यता वाले भारत में माँ की भूमिका को आप सिर्फ़ एक दिन में नहीं

यह भी पढ़ें: लोकतंत्र के सर्टिफिकेट देने वाले ब्रिटेन को भारत से क्या सीखना चाहिए

Author

  • आशीष नौटियाल
    आशीष नौटियाल

    राजनीति, समाज, अर्थ एवं दर्शन के अलावा किताब, फिल्म और पल्प फिक्शन

    View all posts

Featured
Share. Facebook Twitter LinkedIn Email
आशीष नौटियाल
  • Facebook
  • X (Twitter)

राजनीति, समाज, अर्थ एवं दर्शन के अलावा किताब, फिल्म और पल्प फिक्शन

Related Posts

भारत में विवाह समारोहों की अर्थव्यवस्था

December 7, 2023

सौगत रॉय जी, देश की अखंडता ‘राजनीतिक स्लोगन’ नहीं बल्कि लोकतंत्र की आवाज है

December 7, 2023

सनातन के अनुयायियों ने उदयनिधि स्टालिन की राजनीतिक जमीन हिला दी है

December 5, 2023

राजस्थान में सत्ता परिवर्तन को क्यों किया जा रहा है कन्हैया लाल को समर्पित?

December 5, 2023

आलाकमान के कारण नहीं अपनी आत्ममुग्धता में हारे हैं अशोक गहलोत

December 4, 2023

भारत की GDP में उद्योग क्षेत्र का बढ़ता योगदान

December 1, 2023
Add A Comment

Leave A Reply Cancel Reply

Don't Miss
आर्थिकी

मौद्रिक नीति समिति ने दर्शाया सप्लाई साइड सुधारों में विश्वास

December 11, 20234 Views

मौद्रिक नीति समिति बैठक में मजबूत घरेलू मांग के कारण 2023-24 के लिए जीडीपी की वृद्धि का अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 7% कर दिया गया है।

भारत के मैन्युफैक्चरिंग और उपभोक्ता बाजार में बढ़ी जापान की पहुँच, आर्थिक सहयोग में आई तेजी

December 9, 2023

पश्चिम बंगाल : मुर्शिदाबाद अस्पताल में 24 घंटे में 9 नवजात शिशुओं की मौत, जांच के आदेश

December 8, 2023

AI Summit 2023: प्रधानमंत्री मोदी ने किया ग्लोबल पार्टनर्स को आमंत्रित, एआई के सकारात्मक प्रभाव पर दिया जोर

December 8, 2023
Our Picks

‘मोदी जी’ कहकर मुझे जनता से दूर ना करें: पीएम मोदी की पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील

December 7, 2023

सौगत रॉय जी, देश की अखंडता ‘राजनीतिक स्लोगन’ नहीं बल्कि लोकतंत्र की आवाज है

December 7, 2023

भारी विरोध के बाद गोमूत्र के ताने पर डीएमके सांसद सेंथिलकुमार ने मांगी माफी

December 6, 2023

सनातन के अनुयायियों ने उदयनिधि स्टालिन की राजनीतिक जमीन हिला दी है

December 5, 2023
Stay In Touch
  • Facebook
  • Twitter
  • Instagram
  • YouTube

हमसे सम्पर्क करें:
contact@thepamphlet.in

Facebook X (Twitter) Instagram YouTube
  • About Us
  • Contact Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • लोकप्रिय
  • नवीनतम
  • वीडियो
  • विमर्श
  • राजनीति
  • मीडिया पंचनामा
  • साहित्य
  • आर्थिकी
  • घुमक्कड़ी
  • दुनिया
  • विविध
  • व्यंग्य
© कॉपीराइट 2022-23 द पैम्फ़लेट । सभी अधिकार सुरक्षित हैं।

Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.