बढ़ते लिबरलिज्म के साथ रावण के महिमामंडन का फैशन भी कुछ सालों से प्रगति पर है, हालाँकि सच तो इससे उल्टा ही है। खैर! भगवान राम के जीवन पर सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है वाल्मीकि रामायण, जो कि भगवान राम के समकालीन ऋषि वाल्मीकि ने लिखा है।
वाल्मीकि रामायण में रावण को एक क्रूर, अत्याचारी और अधर्मी राजा बताया गया है। यहाँ पर वह सभी अवगुणों की खान था, वह यज्ञों में मांस फिंकवाता था, ऋषियों की हत्याएं कराता था, स्त्रियों के शील भंग जैसे अपराध करता था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार वह कतई भी चरित्रवान नहीं था। इसीलिए तो भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार ग्रहण किया, ताकि पीड़ितों की राक्षसों से रक्षा कर सकें।
वाल्मीकि रामायण में माँ सीता ने रावण की कुछ खास जानवरों से तुलना की है, उन्होंने उसे उन जानवरों के समान कहा है, आइए देखते हैं वाल्मीकि रामायण से ही :-
1. सियार
सियार एक धूर्त जानवर है, यानि कि कपटी और धोखेबाज। कपट और धोखे के लिए सबसे बड़ी मिसाल धूर्त सियार की दी जाती है। ‘रंगा सियार’ कहावत भी प्रसिद्ध है। सीताजी का धोखे से अपहरण करने वाला रावण भी इसीलिए सियार के समान धूर्त कहा गया है। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड में हरण करने आए रावण को माँ सीता बहुत डांटती फटकारती हुई कहती हैं,
यदन्तरं सिंहसृगालयोर्वने यदन्तरं स्यन्दिनिकासमुद्रयोः ।
सुराग्य्रसौवीरकयोर्यदन्तरं तदन्तरं वै तव राघवस्य च ।।
– वाल्मीकि रामायण, 3.47.45
माँ सीता कहती हैं, “वन में रहनेवाले सिंह और सियार में, समुद्र और छोटी नदी में तथा अमृत और सुरा में जो अंतर है, वही अंतर दशरथनंदन श्रीराम में और तुझ में है।”
इसके अलावा वो एक और बार रावण को सियार कहती हैं,
त्वं पुनर्जम्बुकः सिंहीं मामिच्छसि सुदुर्लभाम् ।
नाहं शक्या त्वया स्प्रष्टुमादित्यस्य प्रभा यथा ।।
– वाल्मीकि रामायण, 3.47.37
“पापी निशाचर! तू सियार है और मैं सिंहिनी हूँ। मैं तेरे लिए पूरी तरह दुर्लभ हूँ। क्या तू यहाँ मुझे प्राप्त करने की इच्छा रखता है। अरे! सूर्य की प्रभा पर कोई हाथ नहीं लगा सकता, उसी प्रकार तू मुझे छू भी नहीं सकता।”
2. बिल्ली
बिल्ली एक डरपोक जानवर है। इसलिए डरपोक या दब्बू के लिए बिल्ली का उदाहरण दिया जाता है, जैसे वह तो बिल्ली की तरह दुम दबाकर भाग गया। रावण भी अंत तक मारीच, मेघनाद, कुम्भकर्ण की आड़ में छुपता बचता रहा। इसलिए उसे बिल्ली के समान कहा है।
यदन्तरं काञ्चनसीसलोहयोर्यदन्तरं चन्दनवारिपङ्कयोः ।
यदन्तरं हस्तिबिडालयोर्वने तदन्तरं दाशरथेस्तवैव च ।।
– वाल्मीकि रामायण 3.47.46
“सोने में और सीसे में, चन्दनमिश्रित जल और कीचड़ में और वन में रहने वाले हाथी और बिल्ली में जो अंतर है, वही अंतर दशरथनंदन श्रीराम में और तुझ में है।”
3. कौआ
कौआ एक कर्कश, ढीठ पक्षी है, इसे शुभ भी नहीं माना जाता। यह काँव काँव करके सबको परेशान कर देता है। रावण भी ऐसी ही कठोर और गलत बातें बोलने वाला ढीठ था। वाल्मीकि रामायण में उसे कोयले की तरह काला बताया गया है, रूप से भी कर्म से भी। इसलिए माँ सीता ने उसे कौए के समान कहा है।
यदन्तरं वायसवैनतेययोर्यदन्तरं मद्गुमयूरयोरपि ।
यदन्तरं सारसगृध्रयोर्वने तदन्तरं दाशरथेस्तवैव च ।।
– वाल्मीकि रामायण 3.47.47
“गरुड और कौए में, मोर और बगुला (मद्गु) में तथा वनवासी हंस और गिद्ध में जो अंतर है, वही अंतर दशरथनंदन श्रीराम में और तुझ में है।”
4. गिद्ध
गिद्ध को बहुत ही अशुभ माना जाता है क्योंकि यह लाशों के मांस पर पलता है। यह मृत्यु और शोक का प्रतीक माना जाता है। रावण भी ऐसा ही था जो ऋषियों तक की हत्या करता था, उसका हत्याओं का दौर पूरे विश्व में चल रहा था। इसलिए माँ सीता ने उसकी तुलना गिद्ध से की है।
इसके आलावा उन्होंने रावण को मोर जैसे श्रीराम के सामने बगुले जैसा कहा था, मोर को देखकर जहाँ मन प्रसन्न हो जाता है, वहीं बगुले को देखकर शायद ही कोई खुश होगा।
5. कुत्ता
कुत्ते को एक वफादार व पालतू जानवर माना जाता है, पर वह एक दम्भी पशु भी है जो अपने अधिकार के बाहर के कामों को करने में रुचि लेता है। इसलिए सभी संस्कृतियों में अपमानसूचक शब्दों में “कुत्ता” शब्द मशहूर रहा है। आज भी किसी को कुत्ता बोलने पर अपमान ही समझा जाता है।
इसका दूसरा कारण यह है कि देखा जाता है कि कुत्ता हमेशा साफ और स्वच्छ स्थान को गंदा जरुर करता है। रावण में भी यह दोनों गुण थे, वह अपने अधिकार से बाहर, विष्णु की लक्ष्मी का हरण करने चला था, और पवित्र यज्ञों में मांस भी फिंकवाता था। इसीलिए माँ सीता ने लंकेश की तुलना इस जानवर से की है। अशोक वाटिका में प्रलोभन देने आए रावण को माँ सीता बहुत डांटती हुई कहती हैं :-
नहि गन्धमुपाघ्राय रामलक्ष्मणयोस्त्वया ।
शक्यं सन्दर्शने स्थातुं शुना शार्दूलयोरिव ।।
– वाल्मीकि रामायण 5.21.31
“श्रीराम और लक्ष्मण की तो गंध पाकर भी तू उनके सामने नहीं ठहर सकता। क्या कुत्ता कभी दो दो बाघों के सामने टिक सकता है?”
माँ सीता ने बहुत ही बुद्धिमत्ता से दुष्ट राक्षस रावण की तुलना इन पशुओं से की है, इससे सब साफ हो जाता है कि रावण कैसा था।
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