आज 11 अगस्त है। आज से ठीक 44 साल पहले मोरबी में मछु नदी में एक ऐसी भीषण घटना घटी थी जिसने पूरे गुजरात को हिला कर रख दिया था। लगातार हो रही बारिश के कारण मोरबी में मच्छु नदी पर बना बांध टूट गया था जिसके चलते लगभग 1,439 मानवीय क्षति व 12 हजार, 849 जानवरों की मौत हो गई थी। ये वो सरकारी आँकड़ें हैं, जो दर्ज हैं। मृतकों के अनुमान 25,000 तक भी लगाए जातें हैं।
उस दिन सुबह से लगातार चली आ रही बारिश का कहर उस वक्त टूटा जब मच्छु नदी में बना बांध दोपहर सवा तीन बजे ओवेरफ़्लो कर गया। बांध टूटने के कारण मात्र 15 मिनट में ही ऐसी त्रासदी आई कि लगभग पूरा मौरबी शहर तहस नहस हो गया। पानी का वेग इतना गहरा था कि कुछ ही समय के भीतर सैकड़ों घर व इमारतें जमींदोज हो गए। ना स्थानीय लोगों को संभलने का मौका मिला और ना ही पशुओं को।
यहाँ पर ये जानना आवश्यक हो जाता है कि उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे बाबू भाई पटेल जो जनता मोर्चा पार्टी के सदस्य थे। वही जनता पार्टी, जो 70 के दशक में इंदिरा गांधी के आपातकाल व सर्वसत्तात्मक तेवर के खिलाफ एक मजबूत पार्टी बन के उभरी थी। तो वहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री थे चौधरी चरण सिंह। आधिकारिक आँकड़े संकेत करते हैं कि लगभग 7 हजार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था परंतु बांध टूटने के कारण लगभग 100 करोड़ की क्षति सरकार को हुई थी।
2005 के ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में दर्ज यह घटना एक बाँध फटने से होने वाली समूचे विश्व की अब तक की सबसे भीषण आपदा मानी जाती है । चूंकि बड़ी संख्या में शव सड़ रहे थे इसलिए महामारी भी फैल रही थी। महामारी का ये आलम इस प्रकार था कि नेताओं से लेकर राहत बचाव कार्य की टीम तक, सभी इसके प्रकोप से प्रभावित होते दिख रहे थे। स्थिति इतनी भयावह थी कि चारों तरफ सिर्फ लाशें ही नजर आ रही थीं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि मच्छु नदी मूलतः सुरेन्द्रनगर, राजकोट और मोरबी से होती हुई बहती है। इस नदी पर एक बांध पहले से था। वहीं 1969 से 1972 तक लगातार 3 साल के निर्माण कार्य के बाद मच्छु नदी पर दूसरा बड़ा बांध संचालित हुआ था। बांध की ऊंचाई लगभग 60 फीट व लंबाई लगभग 12 हजार 700 फुट के करीब थी पर कुदरत के कहर के आगे मोरबी शहर एक झटके में शमशान बन चुका था।
11 अगस्त से ठीक एक दिन पहले 10 अगस्त,1979 को भारी बारिश के कारण बांध नंबर 1 का पानी छोड़ दिया था। तत्पश्चात बांध नंबर 2 के द्वार भी खोलने का प्रयत्न किया गया परंतु तकनीकी कारणों से वह खुल ना सके जिस कारण जल भंडार में अतिरिक्त पानी जमा हो गया और कुछ ही क्षण में इसने उफान मार दिया जिसने पूरे शहर को डुबो दिया।
यहाँ पर जो बात आश्चर्यचकित करती है वह यह है कि स्थानीय प्रशासन बांध टूटने के 15 घंटे बाद भी इस बाबत अवगत नही था। उन्हें यह लगा शायद लगातार चल रही बारिश के कारण ही रुकावटें आई हैं। घटना के 24 घंटे बाद 12 अगस्त को इस त्रासदी के समाचार पहली बार रेडियो में प्रसारित हुए । चूंकि मोरबी क्षेत्र के अधिकांश टेलीफोन खम्भे बाड़ मे बह चुके थे, इस वजह से टेलीफोन सेवा भी ठप्प थी । यही कारण रहा कि भारतीय सेना के जवान भी मोरबी घटना के 2 दिन बाद (13 अगस्त) को ही पहुँच पाए।
त्रासदी के कुछ दिनों बाद, 16 अगस्त को हालातों की समीक्षा करने स्वयं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी वहाँ पहुंची थी पर महामारी का प्रकोप इस प्रकार था कि शवों की दुर्गंध से उन्हे अपनी नाक तक ढकनी पड़ी। परंतु हैरान कर देनी वाली बात यहाँ पर यह थी कि कीचड़ व गंदगी के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता सेवाभाव से लगातार अपना काम कर रहे थे। उन्ही स्वयंसेवकों में से एक थे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। मोदी निस्वार्थ भाव से राहत बचाव कार्य में अपनी भूमिका अदा कर रहे थे ।
एक सुखद खबर इस बीच यह भी थी कि राहत बचाव कार्यों में कोई रुकावट नहीं आई। और चूंकि मंत्रिमंडल में भारतीय जनसंघ के बड़े नेता केशु भाई पटेल सिंचाई मंत्री थे अतः आरएसएस स्वयंसेवक राहत बचाव कार्यों में बढ़ चढ़ के हिस्सा ले रहे थे।
पिछले साल अक्टूबर 2022 में मोरबी ब्रिज टूटा था तो मोदी स्वयं 1979 के हादसे का किस्सा बताते हुए भावुक हो गए । उन्होंने कहा कि किस प्रकार वह भावुक पत्र लिखकर पीड़ित लोगों को ढांढस`बांध रहे थे । मोदी का प्रभाव देखकर स्वयं गुजरात सरकार राहत बचाव कार्य के अधिकारियों ने उन्हे लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनकी प्रशंसा की थी ।
मोरबी, मच्छु और मोदी । ये तीनों नाम एक ही पंक्ति में आयें तो कोई हैरानी वाली बात नही होगी। दरअसल मोरबी ही उन जगहों में से एक है जहां से नरेंद्र मोदी के सार्वजनिक जीवन में एक नया बदलाव आया। उन दिनों मोदी आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक थे । जिस समय ओवेरफ़्लो के कारण ये बांध तबाह हो गया था, मोदी वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख के साथ चेन्नई प्रांत में शाखा में थे। जैसे ही उन्हे स्थानीय संघ कार्यकर्ताओं से इस दुखद खबर का पता चला, वे तुरंत गुजरात लौटे और राहत बचाव कार्य में बड़े साहस से हिस्सा लेने लगे ।
मोरबी बांध दुर्घटना में की गई हर संभव सहायता का ही फल था कि समस्त देश में आरएसएस के प्रति स्वीकार्यता बढ़ी तथा भारतीय जनता पार्टी एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। इतना ही नही , यह पहला क्षण था जब नरेंद्र मोदी सार्वजनिक रूप से सबसे परिचित हुए। इसके बाद मानो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और इसके ठीक 22 वर्ष बाद गुजरात के मुख्यमंत्री बने और आज वर्तमान में एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री के रूप में उभरे हैं ।
80 का दशक खत्म होते होते मच्छु बांध का पुनर्निर्माण हो चुका था । मणि मंदिर का भी कायाकल्प हो गया था और मंदिर परिसर के बाहर ही दुर्घटना में मारे गए लोगों की स्मृति में एक स्मारक बन दिया गया जिसे देखने हर वर्ष 11 अगस्त को लोग श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्रित होते हैं परंतु इस पूरी आपदा के बीच देश को एक ऐसा नायक मिला जो भविष्य में देश का प्रधानमंत्री बना।
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