दुनिया भर में सरकार और नागरिक के बीच के संबंध अधिकतर नियंत्रण पर जाकर रुकते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि सरकारें कालांतर में नागरिकों को उन पर निर्भर बनाने का प्रयास करती हैं। भारत भी इसका अपवाद नहीं रहा है। पिछले लगभग सत्तर वर्षों में शासन और प्रशासन का आधार आम नागरिक की सरकार पर निर्भरता पर जाकर ख़त्म हुई है। यह दृष्टिकोण आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के एकमात्र प्रदाता के रूप में सरकार की भूमिका के माध्यम से प्रकट हुआ।
पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने विशेष रूप से कोटा और लाइसेंस राज को लागू किया जिससे नागरिकों को सरकारी आवंटन और अनुमतियों पर निर्भर रहना पड़ता था। इन प्रणालियों को लोगों के कुछ समूहों, जैसे कि गरीब और पिछड़े वर्गों को तरजीह देने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इन प्रणालियों ने भ्रष्टाचार और अक्षमता को तो जन्म दिया ही, व्यवसायों के संचालन और अर्थव्यवस्था के विकास को भी कठिन बना दिया।
पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के राजनीतिक दर्शन का असर था कि स्वतंत्रता के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की समाजवादी विचारधारा ने नागरिकों को सरकारी तंत्र और सरकारों पर आश्रित होने के लिए एक तरह से बाध्य कर दिया। समाजवादी विचारधारा सामाजिक न्याय को प्रमुखता तो देती है लेकिन इससे नागरिकों के स्वतंत्रता की सीमा भी बाँध दी जाती है।
इसके अलावा नौकरशाही ने सरकारी सेवाओं को नागरिकों तक पहुंचाने के लिए लालफीताशाही को एक प्रणाली की तरह न केवल विकसित किया बल्कि उसे बनाये रखने की पूरी कोशिश की। दरअसल सरकारी तंत्र द्वारा बनाई गई ये प्रथाएं अंग्रेजों द्वारा शुरू किये गए औपनिवेशिक प्रशासन के आधार स्तंभ थे।
भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार एक तरह से केंद्रीकृत नौकरशाही थी। अंग्रेजों का मानना था कि भारत जैसे बड़े और विविध देश को नियंत्रित और प्रशासित करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। नौकरशाही को कई विभागों में विभाजित किया गया था। प्रत्येक सरकार के एक अलग क्षेत्र के लिए जिम्मेदार था। विभागों का नेतृत्व ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा किया जाता था, जिन्हें भारतीय सिविल सेवकों द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी।
ब्रिटिश औपनिवेशिक नौकरशाही का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। नौकरशाही चलाने वाले ब्रिटिश अधिकारी अक्सर भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ने में मदद करने के बजाय खुद के लिए पैसा बनाने में अधिक रुचि रखते थे। वे अक्सर भारतीयों और व्यवसायों पर उच्च कर लगाते थे। उन्होंने अक्सर भारत में व्यापार और निवेश को भी प्रतिबंधित कर दिया।
ब्रिटिश औपनिवेशिक नौकरशाही भारतीय विकास के लिए एक बड़ी बाधा थी। यह एक ऐसी प्रणाली थी जिसे भारतीयों को नियंत्रित करने और उनका शोषण करने के लिए डिजाइन किया गया था। यह एक ऐसी प्रणाली थी जो लोगों की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी नहीं थी।
1947 में, जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के पास 20 लाख से भी अधिक लोगों की नौकरशाही थी। यह उस समय भारतीय सेना के आकार से अधिक था। ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के पास कानूनों और विनियमों की एक जटिल व्यवस्था थी। यह अनुमान लगाया गया था कि 1947 में भारत में कानून और विनियमों के एक लाख से भी अधिक पृष्ठ लागू थे। लोगों के लिए सरकारी सेवाओं तक पहुँचना अक्सर मुश्किल होता था। उदाहरण के लिए, बिल्डिंग परमिट या पासपोर्ट प्राप्त करने में महीनों या साल भी लग सकते हैं। ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार प्राय: भ्रष्ट थी। यह अनुमान लगाया गया था कि 1947 में सरकार के राजस्व का 10% से भी अधिक भ्रष्टाचार में खो जाता था।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की विशेषता उच्च स्तर की नौकरशाही, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार थी। इससे भारत के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और भारतीय लोगों के लिए सरकारी सेवाओं तक पहुँच बनाना मुश्किल हो गया।
लगभग सत्तर वर्षों तक नागरिकों पर कानून तथा अन्य प्रशासनिक तरीक़ों से लगाया गया नियंत्रण अब धीरे-धीरे कम होना शुरू हुआ है। मोदी सरकार ने सरकार पर नागरिकों की निर्भरता को कम करने को प्राथमिकता दी है। 15 अगस्त को लिए गए प्रधानमंत्री मोदी के पंच प्रणो में गुलामी की ऐतिहासिक जंजीरों के प्रतीकों को तोड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। इसे प्राप्त करने के लिए सरकार ने जन धन खाते, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT), स्व-सत्यापन, और कई सौ कानूनों को निरस्त्र करने जैसे कई कदम उठाए हैं।
सरकार ने व्यवसाय शुरू करने और संचालन की प्रक्रिया को सरल बनाने के उपायों को लागू किया है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरूआत और निवेश और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए “मेक इन इंडिया” जैसी पहल की है। योग्यता आधारित अवसरों को बढ़ावा देते हुए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। कौशल विकास कार्यक्रमों, छात्रवृत्ति और लक्षित कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से वंचित समुदायों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
कुछ वर्षों पूर्व तक नौकरशाही से नागरिकों तक खुद पहुँचने की कल्पना करना लगभग असंभव था पर अब तकनीकि के इस्तेमाल के साथ ऐसा होने लगा है कि आम नागरिकों के जीवन में सरकार और नौकरशाही का हस्तक्षेप कम हुआ है। यह औपनिवेशिक तरीक़ों को कम करने या उनसे छुटकारा पाने की दिशा में सशक्त कदम है।
जन धन योजना, डीबिटी, स्व सत्यापन या पुराने क़ानूनों को ख़त्म करने की प्रक्रिया वर्तमान सरकार के ऐसे कदम हैं जिनका दूरगामी परिणाम दिखाई दे रहा है। इसके साथ ही सरकारी कामकाज में तकनीक के इस्तेमाल का असर दिखाई देता है। आम नागरिक की सरकारी तंत्र पर निर्भरता लगातार कम हो रही है। इन योजनाओं के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार में कमी देखी जा रही है।
हालांकि, अभी और काम किया जाना बाकी है। सरकार को सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार जारी रखने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, लोगों को अर्थव्यवस्था में भाग लेने के लिए अधिक अवसर प्रदान करने और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर सरकार आम नागरिकों की सरकार पर निर्भरता कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति कर सकती है।
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