मोदी सरकार 150 वर्षों से भी अधिक पुराने कानूनों में बदलाव कर रही है। इसके लिए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन तीनों विधेयकों को लोकसभा के पटल पर रखा। गृह मंत्री शाह ने भारतीय न्याय संहिता (पहले भारतीय दंड संहिता), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (दंड प्रक्रिया संहिता) और भारतीय साक्ष्य संहिता (एविडेंस एक्ट) ड्राफ्ट को संसद के पटल पर रखा।
गृह मंत्री ने इन विधेयकों को पटल पर रखते हुए बताया कि ये कानून अंग्रेजों की औपनिवेशिक मानसिकता के परिचायक हैं और इन्हें हम अभी तक ढोते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं सदन को यह विश्वास दिलाता हूँ कि इन नए कानूनों में भारतीयता की झलक होगी और ये कानून हमारे न्याय व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाएंगें।
क्यों ला रही है सरकार यह कानून?
नए कानूनों का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों के समय से चले आ रहे कानूनों को बदलना है। इनमें सबसे प्रमुख इंडियन पीनल कोड है जिसे थॉमस बौबिंगटन मैकाले द्वारा बनाया गया था। इसे वर्ष 1862 में लागू किया गया था। इसके अतिरिक्त सरकार क्रिमिनल प्रोसीजर कोड को भी बदल रही है। यह सर्वप्रथम अंग्रेजों के राज में 1882 में लाया गया था जबकि इसमें समय-समय पर बदलाव किए गए और इसे 1974 में संशोधित करके लागू किया गया था। इसके अतिरिक्त, एविडेंस एक्ट में बदलाव किए जा रहे हैं।
इन कानूनों को बदलने के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य इन कानूनों की मानसिकता को बदलना है। जब ये कानून अंग्रेजों द्वारा लाए गए थे तब उनका उद्देश्य इसके जरिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था। इसलिए इसमें उन कानूनों पर विशेष बल दिया गया था। तब इनका उद्देश्य दंड था जबकि अब सरकार चाहती है कि इन कानूनों से अधिकाधिक लोगों को न्याय दिलाए।
इसके अतिरिक्त, कई कानून ऐसे हैं जो कि आज के समय में प्रभावी नहीं है और न ही उनकी आवश्यकता है। अगर साक्ष्य कानूनों की बात कि जाए तो यह आज की तकनीकों जैसे कि वीडियोग्राफी, फोटो एविडेंस, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एवं अन्य का भी प्रावधान इनमें नहीं है। कानूनों में आज के समय के साथ ताल-मेल न होने के कारण कई बार अपराधी बच जाते हैं। ऐसे में यह सभी कमियां अब इन नए कानूनों में बदलाव के जरिए पूरी की जाएंगी।
दंड से न्याय की यात्रा
तीनों संहिताओं और अधिनियमों के नामों में बदलाव किए गए हैं। भारतीय दंड संहिता को न्याय संहिता के नाम से जाना जाएगा, इसका अर्थ यह है कि देश की न्याय व्यवस्था का जोर लोगों को दंड देने पर नहीं बल्कि न्याय देने पर होगा। एविडेंस एक्ट को भी साक्ष्य अधिनियम से बदला गया है। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता से बदला गया है, जिसका अर्थ है कि अपराधियों को सजा देने कि जगह इसका जोर आम भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करना होगा।
सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह को खत्म करने का है। वहीं, गैंगरेप की सजा 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष कर दी गई है। नाबालिग से गैंगरेप में सजा को फांसी तक बढ़ा दिया गया है। सबूत ढूँढने के समय वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर दिया गया है। अगर यह नहीं होता तो चार्जशीट नहीं मानी जाएगी। हर थाने में एक पुलिस अधिकारी ऐसा होगा जो किसी के गिरफ्तार किए जाने की पुष्टि करेगा।
मुकदमों का आसानी से और जल्द निपटारा हो, इसके लिए पुलिस को 90 दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी। 90 दिन की मोहलत कोर्ट दे सकता है। सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध मामला दर्ज होने पर 120 दिनों के अंदर मामला चलाने की अनुमति देनी होगी अथवा यह स्वत: ही अनुमति प्रदान की हुई मान ली जाएगी।
अब सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों को अपना बयान दर्ज करवाने के लिए कोर्ट के चक्कर नहीं काटने होंगे। इसकी जगह वर्तमान में पुलिस अधीक्षक ये काम कोर्ट के समक्ष रख सकेगा। यदि किसी मुकदमे पर बहस पूरी हो जाती है तो उसमें 30 दिन के भीतर निर्णय दिया जाएगा। खुद की पहचान छुपा कर किसी महिला के साथ सम्बन्ध स्थापित करना, अब अपराध होगा। इसके लिए कड़ी सजा का प्रवाधान किया गया है। भीड़ द्वारा हत्या को लेकर भी नए कानून स्थापित किए गए हैं।
कितने कानून बढ़े, कितने हटे?
भारतीय दंड संहिता (IPC) 1862 को बदल कर 356 धाराएं रखी गई हैं, इसमें भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत 175 धाराओं को बदल दिया गया है। 8 नई धाराओं को जोड़ा गया है जबकि 22 धाराओं को हटा दिया गया है। इसी तरह क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (दंड प्रक्रिया संहिता) को बदल कर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में बदला गया है जिसमें 533 धाराएं हैं, जिनमें से 160 को बदला गया है जबकि 9 को हटाया और 9 को जोड़ा गया है।
एविडेंस एक्ट (साक्ष्य अधिनियम) में भी बड़े बदलाव किए गए हैं। नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत इसमें अब 170 धाराएं हैं, जिसमें 23 को बदला गया है जबकि 1 को हटा दिया गया है। इसी तरह इसमें 9 नई धाराओं को जोड़ दिया गया है।
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