जोहार! के अभिवादन के साथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ की शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने कहा, हम ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के वर्ष भर चलने वाले समारोह की शुरुआत कर रहे हैं।
जाहिर है कि वर्ष 2021 से भारत सरकार ने हर साल 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाने की परंपरा शुरू की थी। मोदी सरकार ने ही देश को द्रौपदी मुर्मू के रूप में आजादी के 75 साल बाद पहली आदिवासी वाली राष्ट्रपति भी दी।
यह निर्णय विपक्ष द्वारा राजनीतिक बताया जाता रहा पर हकीकत तो यही है कि आदिवासी, जनजातीय समुदाय को देश के सर्वोच्च पद तक पहुँचाने का राजनीतिक निर्णय भी मोदी सरकार ने ही लिया है। और जब यहीं राष्ट्रपति हमें बताती हैं कि जनजातीय समुदाय के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम प्रशंसनीय हैं तो उसपर हमें एक बार गौर करना चाहिए।
देश में लगभग 750 जनजाती समूह हैं, पूर्ववर्ती सरकारों को इनके नाम..कल्चर और हैरिटेज को बढ़ाने का कभी प्रयास करते नहीं देखा गया। यहां तक कि 2023 में भगवान बिरसा की जन्मस्थली उलिहातु गांव का दौरा करने वाले नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने ही विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) का निर्माण किया था, जिनमें 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 75 PVTG बनाए गए। दरअसल यह जनजातियाँ बिखरे हुए, दूरदराज और दुर्गम बस्तियों में रहती हैं। इसलिए इनतक बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क और दूरसंचार संपर्क, बिजली, सुरक्षित आवास, स्वच्छ पीने का पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण तक बेहतर पहुंच आसान करने के लिए सरकार ने यह मिशन चलाया है।
इनके समग्र विकास के लिए सरकार ने लगभग 24,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम जनमन) का शुभारंभ किया है।
साथ ही इस वर्ष महात्मा गांधी की जयंती पर केंद्र सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की धरती से ‘धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान’ की शुरुआत की। 80 हजार करोड़ रुपए के इस अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर आदिवासी को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले। हर आदिवासी गांव सड़क और मोबाइल कनेक्टिविटी से जुड़े। सभी आदिवासी परिवारों के पास अपना घर हो। विकास और कल्याण के इस अभियान से लगभग 63 हजार आदिवासी गांवों को लाभ मिलेगा। इस देशव्यापी अभियान से पांच करोड़ से अधिक आदिवासी लोगों को लाभ मिलेगा।
जनजाति समुदाय तक शिक्षा पहुँचाने के मिशन को हम कैसे भूल सकते हैं। सरकार देश में 700 से अधिक एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय बना रही हैं। इन एकलव्य विद्यालयों की आधारशिला राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा ही रखी गई हैं।
शिक्षा की आसान पहुंच के लिए 30 लाख से अधिक आदिवासी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिल रही है। विदेश में भी पढ़ने के लिए भी स्कॉलरशिप दी जा रही है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार का ही असर है कि 2013-14 में स्कूलों में नामांकन 34,000 से बढ़कर 2023-24 में 130,000 से अधिक हो गया है। साथ ही एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों की संख्या केवल एक दशक में 123 से बढ़कर 476 हो गई है।
जनजातीय समाज से सिकल सेल एनीमिया को समाप्त करने का लक्ष्य वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के लक्ष्य में शामिल है। इस मिशन के तहत 46 मिलियन से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है, जिसका लक्ष्य तीन साल के भीतर 70 मिलियन तक पहुँचना है।
सरकार जनजाती समूहों के विकास के लिए कितनी गंभीर है ये आप इससे समझिए कि अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए ‘विकास कार्य योजना’ के लिए धनराशि में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है, जो 2013-14 में 24,600 करोड़ रुपये से पांच गुना बढ़कर 2024-25 में 1.23 ट्रिलियन रुपये हो गई है।
आदिवासी आबादी में उद्यमशीलता को बढ़ाने के लिए भी मोदी सरकार ने कई मिशन चलाए हैं। इनमें प्रमुख सुधारों में आदिवासी आबादी के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए 3,900 ‘वन धन विकास केंद्रों’ की स्थापना शामिल है। साथ ही प्रधान मंत्री आदिवासी न्याय महा अभियान योजना और आदिवासियों के समग्र विकास के लिए ‘धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान’ जैसी पहल भी सरकार की प्लानिंग का हिस्सा है।
आदिवासी आबादी की विशेषता उनकी सभ्यता उनका विरासत है और इसके प्रसार के लिए मोदी सरकार ने उन राज्यों में 10 आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्वीकृत किए गए हैं, जहाँ आदिवासी रहते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ धाम को विकसित किया है। राजस्थान-गुजरात सीमा के पास स्थित मानगढ़ धाम वह स्थल है जहाँ 1913 में अंग्रेजों द्वारा सामूहिक गोलीबारी में 1500 से अधिक भील स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान गंवाई थी।
रांची में भगवान बिरसा मुंडा का संग्रहालय बनाया गया जो अब एक तीर्थस्थल जैसा बन गया है। राष्ट्रपति भवन में भी ‘जनजातीय दर्पण’ नाम से एक संग्रहालय बनाया गया है। साथ ही जनजातीय समुदायों के गौरवशाली योगदान आने वाली पीढ़ी का परिचय करवाने के लिए सरकार ने जनजातीय लोकनाय़कों और वीरों को सिलेबस का हिस्सा बनाया है।
खासी-गारो आंदोलन, मिजो आंदोलन, कोल आंदोलन आदि आदिवासी आंदोलन भारत के इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम के अभिन्न अध्याय हैं। चाहे गोंड महारानी वीर दुर्गावती की वीरता हो या रानी कमलापति का बलिदान, वीर महाराणा प्रताप साथ संघर्ष करने वाले वीर भीलों की कहानियां, सभी को पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं।
इसके अलावा भी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में आदिवासी समुदायों के लगभग 100 लोगों को पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कारों से सम्मानित किया है। video कई राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य सरकारों में मंत्री और उच्च पदों पर आसीन कई लोग आदिवासी समुदायों से आते हैं।
ये सभी विकास विपक्ष देख पाता अगर वो जातियों की गिनती करने में व्यस्त नहीं होता। जनजाती समूह की जातियों को जिस दिन विपक्ष याद कर लेगा उस दिन इनका नाम भी राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बन जाएगा तब तक ये विपक्ष कि वनवासी राजनीति का हिस्सा ही रहेंगे।
यह भी पढ़ें-बिरसा मुंडा: ईसाई मिशनरियों को चुनौती देने वाले आदिवासी नेता, जो बन गए ‘भगवान’