वर्ष 2020 के दौरान आई भयानक महामारी के परिणाम आज पूरा विश्व भुगत रहा है , विश्व भर में चीज़ों की अनुपलब्धता, मांग और आपूर्ति में भारी कमी और बदलती वैश्विक व्यवस्था के कारण पूरा विश्व और खास कर यूरोपीय देश आज भयानक मंदी की चपेट में है।
भारत एक नई वैश्विक महाशक्ति बन कर उभर रहा है, हाल ही में भारत ब्रिटेन को पछाड़ कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
इसी मुद्दे को लेकर ट्विटर पर भारत के कुछ अर्थशास्त्रियों के बीच तीखी बहस चल रही है कुछ अर्थशास्त्री मोदी सरकार के द्वारा कोविड महामारी के दौरान उठाए गए सही आर्थिक कदमों की प्रशंसा कर रहे हैं, वहीं कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस दौरान लिए गए निर्णयों से अपनी असहमति जताई है।
क्या है पूरा मामला ?
भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री राजीव मंत्री ने 2 सितम्बर को किऐ गए एक ट्वीट में लिखा कि फिलहाल यूरोप में देखी जा रही अप्रत्याशित मुद्रास्फीति के कारण उन देशों की सरकारों द्वारा कोविड महामारी के दौरान लिए गए निर्णयों पर प्रश्न उठने चाहिए।
आगे उन्होंने लिखा कि जहाँ ऊर्जा और खाद्य वस्तुओं के दामों में आई उछाल एक आकस्मिक घटना है, वहीं यूरोप की कोविड महामारी के दौरान बेतहाशा खर्च करने के कदम ने इन देशों की अर्थव्यवस्था को और नाजुक बना दिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटेन निकट भविष्य में 20 % तक की मुद्रास्फीति दर का सामना कर सकता है, ऐसी स्थिति में लोगों की कमाई और खर्च करने की क्षमता पर काफी फर्क पड़ेगा।
इसके पश्चात उन्होंने भारत के उन अर्थशास्त्रियों की आलोचना की, जिन्होंने भारत को भी यूरोपीय देशों की तरह भारी राजकोषीय घाटे में जाकर बड़े प्रोत्साहन पैकेज देने की सलाह दी थी।
उन्होंने मोदी सरकार की सभी स्थितियों को समझ के निर्णय लेने वाले दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हुए नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी, भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम जैसे अर्थशास्त्रियों की आलोचना की।
राजीव मंत्री ने आगे लिखा कि यूपीए सरकार के दौरान आर्थिक सलाहकार रहे कौशिक बासु ने कोविड महामारी के समय में कुछ ऐसे ही अवास्तविक सुझाव दिए थे। उनके द्वारा ही दी गई सलाहों के कारण कांग्रेस शासन काल की महँगाई को भी राजीव मंत्री ने जिम्मेदार बनाया।
क्यों मोदी सरकार की हो रही प्रशंसा?
राजीव मंत्री ने अमरीकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक खबर का संदर्भ भी दिया। इस खबर में था कि कोविड महामारी के दौरान अमेरिकी सरकार द्वारा दिए गए कोविड रहत पैकेज में 100 बिलियन डॉलर तक की धोखाधड़ी के संकेत मिले हैं। भारत ने ऐसा ना करके सही किया। इसी दौरान मोदी सरकार ने बड़े आर्थिक सुधार भी लागू कर दिए।
मोदी सरकार ने अपना पूरा ध्यान कोविड वैक्सीन के तेजी से पूरे देश में वितरण पर लगाया। इससे भारत महामारी से निबट भी सका और फिर भारत में कारोबार वापस अपनी राह पर लौटा।
उन्होंने NITI आयोग के पहले उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढ़िया के द्वारा लिखे गए एक स्तम्भ का हवाला दिया। अरविंद ने कहा था कि भारत का बड़े स्तर पर खर्चा करना आर्थिक स्थिति को नहीं सुधारेगा। हमें अपने द्वारा लिए जा रहे कर्ज को नियन्त्रण में रखना होगा तभी हम आने वाले समय में तेजी से आर्थिक तरक्की की तरफ बढ़ सकेंगे।
आज जब भारत ने भीषण महामारी और वश्विक समस्याओं से पार पाते हुए अपनी आर्थिक तरक्की को निरंतर बनाऐ रखा है तो यह उसी दूरदर्शी नीति का परिणाम है।
कांग्रेस ने किया देश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार
इसी के साथ ही एक और विख्यात अर्थशास्त्री और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार के वी सुब्रमण्यम ने यह भी लिखा कि कैसे अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने 1998 के एशिया के आर्थिक संकट का सामना दूरदर्शिता से किया जिससे भारत अगले कई सालों तक तरक्की करता रहा। उन्होंने लिखा कि अटल सरकार ने पूंजीगत खर्चे में बढ़ोत्तरी करके भारत में निवेश को न्योता दिया और बड़े प्रोजेक्ट चलाए, जिससे देश में आर्थिक तरक्की का माहौल बना।
इसके बाद आई मनमोहन सिंह की सरकार ने खर्चे में बढ़ोत्तरी की। इससे भारत का राजकोषीय घाटा बढ़ता गया और सरकार के 2009 के किसानों की कर्ज माफी के निर्णय ने इसको बढ़ाया।
इसी के साथ ही मनमोहन सरकार ने काफी समय से लंबित आर्थिक सुधार भी नहीं किये। छोटे और मध्यम वर्ग के कारोबार के लिए लंबित सुधारों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। कांग्रेस की सरकार ने अन्य देशों के साथ भारत के हितों को ताक पर रखके मुक्त-व्यापार-समझौते किऐ जिससे भारत के छोटे कारोबारियों को काफी क्षति हुई।
इन सब कारणों से देश की अर्थव्यवस्था पर कांग्रेस की सरकार के समय में विपरीत प्रभाव पड़ा और आर्थिक तरक्की काफी कम हो गई।