रक्षा मंत्रालय ने 19,000 करोड़ रुपये की कीमत पर भारतीय नौसेना के लिए 5 फ्लीट सपोर्ट जहाजों के निर्माण के लिए हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड के साथ एक ऐतिहासिक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। यह सौदा रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम है।
इसके पहले देश इतने बड़े जहाजों के लिए आयात पर निर्भर हुआ करता था। पिछले जहाजों को विदेशी मुद्रा रूपांतरण के बाद विदेशी शिपयार्डों से बहुत अधिक कीमतों पर खरीदा जाता था। इससे रक्षा वित्त पर भारी बोझ पड़ता था। ऐसी स्थिति में नौसेना के लिए आवश्यक जहाजों के निर्माण के लिए स्वदेशी क्षमता को विकसित करना आवश्यक हो गया था।
एचएसएल द्वारा बनाए जा रहे पांच फ्लीट सपोर्ट जहाज भारतीय नौसेना की लॉजिस्टिक सपोर्ट क्षमताओं को बढ़ाएंगे। लगभग 44,000 टन वजन वाले ये जहाज समुद्र में अन्य जहाजों को ईंधन, पानी, गोला-बारूद और आवश्यकता की अन्य वस्तुओं की सप्लाई सुनिश्चित करेंगे। इससे बार-बार पोर्ट कॉल के बिना बेड़े की सहनशक्ति और परिचालन पहुंच को बढ़ावा मिलेगा। स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित होने के कारण, नौसेना परिचालन आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलन का सुझाव दे सकती है। इससे रणनीतिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा मिलेगा।
जहाजों की लागत पर विदेशी विनिमय दर का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि भविष्य में विनिमय दर कैसे बदलती है। अगर डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होता है तो भारतीय रुपये के हिसाब से जहाजों की कीमत कम हो जाएगी। वहीं, अगर डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है तो भारतीय रुपये के हिसाब से जहाजों की कीमत बढ़ जाएगी।
हालाँकि, जहाजों की लागत पर विदेशी विनिमय दर का समग्र प्रभाव छोटा होने की संभावना है। जहाजों की लागत अभी भी एक महत्वपूर्ण निवेश है, लेकिन यह इतनी बड़ी नहीं है कि विनिमय दर में बदलाव इसे अप्राप्य बना दे।
भारत में जहाजों की लागत निर्धारित करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक सामग्री और श्रम की लागत है। भारतीय जहाज निर्माण उद्योग अभी भी विकसित हो रहा है, और सामग्री और श्रम की लागत अपेक्षाकृत अधिक है। हालाँकि, उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, और भविष्य में सामग्री और श्रम की लागत में कमी आने की उम्मीद है।
पांच फ्लीट सपोर्ट जहाजों का निर्माण भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के लिए एक बड़ा कदम है। इससे उद्योग को विकसित करने और सामग्री एवं श्रम की लागत कम करने में मदद मिलेगी। इससे भविष्य में भारत के लिए अपने युद्धपोत और अन्य रक्षा उपकरण बनाना अधिक किफायती हो जाएगा।
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने 16 अगस्त को अपनी बैठक में जहाजों के अधिग्रहण को मंजूरी दे दी थी। एचएसएल 19,000 करोड़ रुपये की कुल लागत से 8 वर्षों में 5 एफएसएस डिजाइन और निर्माण करेगा। इससे आपदाओं के दौरान निकासी सहित एचएडीआर संचालन के लिए भी जहाजों को तैनात किया जा सकता है।
घरेलू निर्माताओं से प्राप्त अधिकांश प्रणालियों के साथ स्वदेशीकरण को बढ़ावा मिलेगा। इस परियोजना से 168.8 लाख मानव रोजगार सृजित होगा। एफएसएस भारतीय नौसेना बेड़े को बिना पोर्ट कॉल के लंबे समय तक संचालित करने में सक्षम बनाएगा। इससे भारतीय नौसेना की नीले पानी की क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
यह कई वर्षों में भारत में युद्धपोतों के निर्माण के लिए पहला बड़ा अनुबंध और भारतीय शिपयार्डों की क्षमता में विश्वास का पहल भी है।
देखा जाए तो रक्षा उपकरणों के स्वदेशी निर्माण से देश को कई लाभ होंगे। यह राजनीतिक या आर्थिक कारकों के कारण आपूर्ति में व्यवधान के जोखिम को कम करता है। एक ग्राहक के रूप में नौसेना को अपनी रक्षा आपूर्ति श्रृंखला पर अधिक नियंत्रण देता है। भविष्य में ऐसे और अनुबंधों का असर यह होगा कि देश में शिप बिल्डिंग को लेकर तकनीकी क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा जिसके परिणामस्वरूप देश रक्षा सहयोग के लिए एनी देशों के लिए अधिक आकर्षक भागीदार बनेगा।
रक्षा मंत्रालय और एचएसएल के बीच समझौता भारतीय जहाज निर्माण उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है। यह अनुबंध ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को प्रमुख प्रोत्साहन देने का काम करेगा। इससे भविष्य में बड़े फ्लीट सपोर्ट जहाजों के सफल निर्माण से भारत की समुद्री नौसेना क्षमताओं में वृद्धि होगी और अधिक जटिल युद्धपोतों के स्वदेशी निर्माण का खाका उपलब्ध होगा। यह रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के एक नए युग की शुरुआत है।
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