मेघालय में चुनाव प्रचार शुरू होते ही राजनीतिक दलों के बीच हिंसक झड़पें भी सामने आने लगी हैं। हाल ही में मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स जिले में विपक्षी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के समर्थकों के बीच झड़प हुई। इसके बाद केंद्रीय सशस्त्र पुलिसबलों की तीन कंपनियों को जिले में तैनात किया गया।
आपको बता दें, मेघालय की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए आने वाली 27 फरवरी को मतदान होना है जिसकी 2 मार्च के दिन मतगणना होगी। अन्य राज्यों के मुकाबले पूर्वोत्तर राज्यों में हो रहे चुनावों पर मीडिया में चर्चा कम ही दिखती है इसलिए हम बात कर रहे हैं आज मेघालय विधानसभा चुनाव पर।
मेघालय राज्य, जिसके अलग राज्य की मांग वर्ष 1960 में शुरू हुई और 12 वर्षों के संघर्ष के बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम 1971 के तहत, 21 जनवरी 1972 को अस्तित्व में आया। मेघालय का गठन असम राज्य के दो जिलों को मिला कर किया गया था। एक जिला खासी पहाड़ों और जयंतिया पहाड़ों से मिल कर बना था, तो वहीं दूसरा जिला गारो पहाड़ों से मिलकर बना था।
बात करें चुनावी इतिहास की तो मेघालय विधानसभा का पहला चुनाव साल 1972 में ही हुआ था। जिसमें विलियम्सन ए संगमा के नेतृत्व में ऑल पार्टी हिल कॉन्फ्रेंस ने सरकार बनायी। इस दल ने लगभग 10 वर्षों तक शासन किया। मेघालय में वर्ष 1978 से कांग्रेस पार्टी मजबूती से उभरी और इसके बाद से लेकर साल 2018 तक यानी कुल 40 साल तक राज्य की सत्ता में अहम भूमिका निभाती रही। लेकिन आज मेघालय कांग्रेस मुक्त है।
आइए जानते हैं क्यों
वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 29 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। और क्षेत्रीय दलों के समर्थन से सरकार बनाई जिसमें कांग्रेस नेता मुकुल संगमा पहली बार मुख्यमंत्री बने। वहीं पहली बार चुनाव लड़ रही एनपीपी को दो सीटें मिली। पर मेघालय की राजनीति में बड़ा बदलाव देखा गया पिछले यानी वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में।
इस चुनाव में राज्य के 59 सीटों पर चुनाव हुए थे। कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत हासिल की वहीं एनपीपी-19 भाजपा 2, यूडीपी 6, पीडीएफ 2, और डेमोक्रेटिक पार्टी को 2 सीटें मिली थी।
चूँकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भी बहुमत से दूर थी। इस कारण भाजपा ने आगे बढ़ते हुए बाकी सभी पार्टियों को एकजुट किया और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ मिलकर सरकार बनाई। सीएम की कुर्सी NPP के कॉनराड संगमा को मिली।
सत्ता से दूर होते ही कांग्रेस बिखरती चली गयी। वर्ष 2021 में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा समेत कांग्रेस के 13 विधायक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
फरवरी 2022 में कांग्रेस के 5 विधायकों ने भी सत्ताधारी गठबंधन में शामिल होने का फैसला किया और वर्तमान स्थिति यह है कि कांग्रेस के पास अब मेघालय में एक भी विधायक नहीं हैं।
इन घटनाक्रमों के बाद 2018 के चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस अचानक मेघालय विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। अब बात करते हैं मेघालय के चुनावी मुद्दों पर।
क्या हैं यहाँ के मुख्य मुद्दे
मेघालय एक जनजातीय बहुल राज्य है। जिसमें खासी समुदाय की जनसँख्या सबसे अधिक 34 प्रतिशत है। इसके बाद गारो समुदाय 30 प्रतिशत और जयंतिया लगभग 19 प्रतिशत हैं। यहाँ मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषाओं में खासी, गारो, प्नार, बियाट, हजोंग और बांग्ला हैं। इन भाषाओं के अलावा मेघालय में हिंदी भी बोली जाती है। हिंदी भाषी लोग मुख्यत: शिलांग में रहते हैं।
यहाँ अवैध प्रवासन और सीमा विवाद मुख्य मुद्दों में से एक है। यहाँ के समीकरण एवं मुद्दे भाजपा को अन्य पार्टियों के मुकाबले आगे खड़ा करते हैं। आपको बता दें, मेघालय बांग्लादेश के साथ 443 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है, इसमें से 20 प्रतिशत दुर्गम इलाके के कारण बिना बाड़ के हैं। अवैध घुसपैठ और शरणार्थियों के मुद्दे पर भाजपा हमेशा ही इसके विरोध में मुखर रही, चाहे फिर वह केंद्रीय नेतृत्व हो या भाजपा की राज्य इकाई।
यही कारण है कि ममता बनर्जी की बांग्लादेश प्रेमी छवि उनकी पार्टी टीएमसी को आगामी विधानसभा चुनाव में नुकसान पंहुचा सकती है। बीजेपी के मेघालय इकाई के अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी ने भी ममता बनर्जी को बांग्लादेशी समर्थक करार दिया उन्होंने कहा कि मेघालय के लोग अपने राज्य में पश्चिम बंगाल स्थित राजनीतिक दल को स्वीकार नहीं करेंगे।
अवैध प्रवासन के अलावा दूसरा मुद्दा है सीमा विवाद
सीमा विवाद की बात करें तो असम और मेघालय, दोनों राज्य 885 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। फिलहाल उनकी सीमाओं पर 12 बिंदुओं पर विवाद था। सीमा विवाद के कारण दोनों राज्यों के बीच कई हिंसक झड़पें हो चुकी थीं। परन्तु पिछले वर्ष गृहमंत्री अमित शाह के प्रयासों के बाद असम और मेघालय के बीच 50 साल पुराना लंबित सीमा विवाद सुलझा लिया गया विवाद के 12 में से 6 बिंदुओं को सुलझा लिया गया है, जिसमें लगभग 70% सीमा शामिल है।
इस सीमा विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने।
मेघालय विधानसभा चुनाव में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का अहम रोल रहने वाला है। यह सरमा ही थे जिनके कारण 47 सीटों पर लड़कर सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा मेघालय में सरकार बना पायी। वहीं हिमंता ने ही असम से लगी विवादित सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले मतदाताओं को मेघालय में आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डालने की अनुमति दी है।
इन मुद्दों के अलावा मेघालय की जनसँख्या का एक पहलू भाजपा को फ़ायदा पहुँचा सकता है।
दरसअल पिछले कुछ वर्षों के चुनावी ट्रेंड में देखा गया है कि पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा महिला कल्याण की योजनाएं लागू करने के कारण पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं के वोट भाजपा के पक्ष में अधिक जाते हैं। उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव परिणाम इस तथ्य का उदाहरण हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्यसभा में अपने भाषण में महिला उत्थान पर किए जा रहे प्रयासों पर अपनी बात रखी। इस दौरान भावुक होते हुए उन्होंने कहा कि मां-बहन बीमारी की पीड़ा सहतीं, लेकिन कभी बच्चों को दर्द नहीं बतातीं। उन्हें चिंता होती थी कि कर्ज हो जाएगा उन्हें आयुष्मान कार्ड देकर हमने अस्पतालों के दरवाजे खोल दिए।
ऐसे ही मेघालय मुख्यतः एक महिला प्रधान राज्य माना जाता है। यहाँ का जनजातीय समाज मातृसत्तात्मक समाज है, मेघालय की 60 में से 36 ऐसी विधानसभा की सीटें हैं जहां महिलाओं की जनसंख्या पुरुषों से अधिक है। ऐसे में भाजपा को इन महिला वोटर्स से जरूर उम्मीदें होंगी। ये उम्मीदें भाजपा को अधिक इसलिए भी रहेंगी क्योंकि केंद्र सरकार ने मेघालय सहित सभी पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिए अच्छा खासा कार्य किया है।
मेघालय में भाजपा किन कार्यों के बल पर आत्मविश्वास में नज़र आ रही है?
वर्ष 2014 के बाद से ही पूर्वोतर राज्यों में बड़ा राजनीतिक बदलाव देखने को मिला। वहां भाजपा का जनाधार बढ़ने लगा। वर्ष 2016 तक भाजपा आठ पूर्वोत्तर राज्यों में से कहीं भी सरकार नहीं बना पाई थी, लेकिन आज आठ में से छह राज्यों में भाजपा सत्ता में है। यह रुझान सिर्फ विधानसभा तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि आम चुनावों में भी भाजपा अप्रत्याशित तरीके से आगे बढ़ी।
वर्ष 2014 में भाजपा ने पूर्वोत्तर में महज 32 फीसदी लोकसभा सीटें जीती थीं वहीं 2019 में यह आंकड़ा 56 फीसदी पहुंच गया। जातीय, धार्मिक एवं भाषाई विविधता होने के बाद भी भाजपा का पूर्वोत्तर में सफल होना सभी राजनीतिक पंडितों के लिए एक बड़ा सन्देश था।
लेकिन भाजपा ने यह सब कैसे किया?
दरअसल, केंद्र में भाजपा ने सरकार में आते ही पूर्वोत्तर को प्राथमिकता में रखा। पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केंद्र सरकार की कई योजनाएं चलाई गईं।
नेशनल कैपिटल कन्नेक्टीविटी प्रोजेक्ट्स एवं पीएम डिवाइन योजना के तहत अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट्स से लेकर रेलवे कनेक्टिविटी और राजमार्गों पर हज़ारों करोड़ की योजनाएं बनी और इम्प्लीमेंट की गईं। राजमार्गों से लेकर देश की सबसे लम्बी सुरंग तक, पूर्वोत्तर के राज्यों में बनाये जा रहे हैं।
शायद इसलिए हाल में गृहमंत्री अमित शाह ने गुवाहाटी में कहा था कि पूर्वोत्तर में ‘असली भारत जोड़ो’ 2014 में पीएम मोदी ने शुरू किया था।
इस बात को अधिक बल तब मिलता है जब आंकड़ें बताते हैं कि पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी 50 से अधिक बार उत्तर-पूर्व आ चुके हैं। उनसे पहले किसी दूसरे प्रधानमंत्री ने नॉर्थ ईस्ट का इतनी बार दौरा नहीं किया।
पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेघालय के दौरे पर थे जहाँ उन्होंने 4 सड़क परियोजनाओं की आधारशिला रखी, जो मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरेंगे। साथ ही, मेघालय में टेलीकॉम कनेक्टिविटी को और बेहतर बनाने के लिए राज्य को 4G टावर समर्पित किए थे। वहीं, स्पोर्ट्स को लेकर भी केंद्र सरकार ने नई अप्रोच दिखाई जिसका लाभ नॉर्थ ईस्ट के युवाओं को हुआ है। देश की पहली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी नॉर्थ ईस्ट में बनाई गयी।
इस दौरे के बीच पीएम मोदी ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया उन्होंने कहा हम नॉर्थ-ईस्ट में विवादों के बॉर्डर नहीं, विकास के कॉरिडोर बना रहे हैं।
कश्मीर से किबिथू तक: पर्वतीय राज्यों के विकास में कनेक्टिविटी की भूमिका
मेघालय चुनाव में विकास सबसे महत्वपूर्ण पहलू तो है ही लेकिन इसके साथ ही शांति स्थापना भी एक बड़ा मुद्दा है।
अगर हम 8 साल पहले के पूर्वोत्तर और आज के पूर्वोत्तर की तुलना करें तो हम पाते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों के कई जिले AFSPA मुक्त हुए। उग्रवाद में कमी आयी है। कई लोग जो उग्रवाद की तरफ मुड़ गए थे, वह अब मुख्यधारा में जुड़ चुके हैं। उग्रवाद की घटनाओं में ‘सत्तर प्रतिशत’ से ज्यादा की कमी आई है।
सुरक्षाकर्मियों पर हमलों की घटनाओं में ‘साठ प्रतिशत’ की कमी आई है, जहां तक नागरिक मौतों का संबंध है, यह 90% कम हो गई है और लगभग 8,000 युवाओं ने उग्रवाद का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए आत्मसमर्पण किया है।
पूर्वोत्तर को साउथ एशिया का मुख्य केंद्र बनाने का प्रयास भाजपा को इन चुनावों में मदद दे सकता है। मेघालय में भाजपा के पास पाने के लिए काफी स्कोप है। गठबंधन सरकार में रही एनपीपी अब अकेले ही चुनाव लड़ रही है जिसे एंटी इंकम्बेंसी के चलते नुकसान होने की संभावना है।
कांग्रेस जहाँ अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, वहीं दल बदल से मुख्य विपक्ष बनी तृणमूल कांग्रेस के पास हिंसा के अलावा कोई रास्ता नहीं नजर आता। गुरुवार 9 फ़रवरी को हिंसा के एक मामले में तृणमूल के 30 से अधिक कार्यकर्ता गिरफ्तार हो चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस शायद सिर्फ कांग्रेस के बचे हुए वोट काटने तक ही सीमित रहेगी। लेकिन इस चुनाव में सारी निगाहें भाजपा पर रहने वाली है। भाजपा 2 सीट से कितना आगे बढ़ पाती है यह तो 2 मार्च को ही तय होगा।