कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की गारंटी का बोझ Karnataka की आम जनता पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अब राज्य के सरकारी अस्पतालों में मेडिकल सेवाओं का शुल्क बढ़ा दिया है।
राज्य सरकार के आदेश के अनुसार ओपीडी रजिस्ट्रेशन फीस 10 रुपये से बढ़ाकर 20 रुपये की गई है। इनपेशेंट एडमिशन चार्ज 25 रुपये से बढ़ाकर 50 रुपये किया गया है। ब्लड टेस्ट की फीस 70 रुपये से बढ़ाकर 120 रुपये की गई है। इसी तरह से अस्पताल की दूसरी सेवाओं का शुल्क भी बढ़ाया गया है।
Karnataka की कांग्रेस सरकार के इस आदेश के सामने आने के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस सरकार क्या अपनी चुनावी गारंटी पूरी करने के लिए इसी तरह से लोगों के ऊपर बोझ डालती जाएगी?
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यह सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि इससे पहले राज्य की सिद्धारमैया सरकार बस का किराया बढ़ा चुकी है। राज्य में दूध के दाम भी बढ़ गए हैं। पानी और बिजली के दाम भी लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। आम जनता के ऊपर इतना बोझा डालने के बाद भी राज्य का खजाना खाली होता जा रहा है।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि चुनाव जीतने के लिए अव्यवहारिक वादे कांग्रेस पार्टी करती है, फिर उसका बोझ जनता पर क्यों डाला जा रहा है? राज्य के बजट को देखते हुए अगर कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने गारंटी दी होती तो शायद आज ये स्थिति ना होती।
समृद्ध अर्थव्यवस्था होने के बावजूद Karnataka को लेकर हर रोज सवाल खड़े हो रहे हैं। राज्य की आय कांग्रेस की चुनावी गारंटियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में निश्चित तौर पर राज्य और देश के लोगों को कांग्रेस पार्टी से पूछना चाहिए कि क्या इस तरह से कोई देश, कोई राज्य या फिर कोई समाज तरक्की कर सकता है?
याद रखिए, एक तरफ केंद्र की भाजपा सरकार है जो आयुष्मान भारत योजना के तहत लोगों का 5 लाख तक का मुफ्त इलाज करवा रही है। तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी ने योजना का विस्तार करते हुए इसमें 70 वर्ष से ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों को भी शामिल किया है। अब 70 वर्ष से ऊपर के बुजुर्ग भी बिना एक भी रुपया दिए सरकारी अस्पताल में मुफ्त इलाज करवा सकते हैं।
दूसरी तरफ कर्नाटक की कांग्रेस सरकार है जो लगभग सभी आधारभूत आवश्यकताओं को महंगा करती जा रही है। चाहे वो बिजली, पानी, दूध या फिर सरकारी अस्पताल में इलाज की बात हो।
सरकार बनाने के ठीक बाद राज्य के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने साफ़ बता दिया था कि चुनावी वादों को पूरा करने के लिए बहुत पैसे लगेंगे इसलिए राज्य में विकास के कार्य नहीं हो सकेंगे। जनता यह मान कर चल रही थी कि सरकार विकास न कर सकेगी पर चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कृत संकल्प है पर उसे यह नहीं पता था कि विकास भी नहीं हो सकेगा और तमाम सरकारी सुविधाओं की कीमतें भी बढ़ जाएंगी।
वैसे देखा जाए तो कांग्रेस के वादे और उसकी सरकार पिछले लगभग डेढ़ वर्षों से अव्यावहारिक चुनावी वादों और उन्हें निभाने की स्टडी के लिए एक मॉडल केस है। अब यह शोधार्थियों पर निर्भर करता है कि वे इस स्टडी के लिए आगे आते हैं या नहीं।