गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत की यात्रा पर आए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या धाम के राम मंदिर की प्रतिकृति भेंट की है। यह प्रतिकृति भारतीय सांस्कृतिक चेतना का प्रतिनिधित्व तो कर ही रही है, साथ ही इस भेंट ने राम मंदिर के इर्द गिर्द चल रहे कई प्रोपगेंडा को ध्वस्त कर दिया है।
22 जनवरी को हुई रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से देश ही नहीं विदेशी मीडिया द्वारा भी राममंदिर और बीजेपी सरकार को लेकर हिंदू धर्म के वर्चस्व का प्रोपगेंडा चलाया गया। भारत को तीसरी दुनिया का देश मानकर इसे अभी भी औपनिवेशिकता की बेड़ियों में देखने वाले देश इसे स्वीकार कर पाने में संघर्ष कर रहे हैं कि भारत अपनी गौरवशाली विरासत को फिर से हासिल कर रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति को भेंट ये राममंदिर की प्रतिकृति इस बात का प्रमाण है भारत न सिर्फ अपने हर काल में जकड़ी हुई औपनिवेशिक बेड़ियों को तोड़ रहा है बल्कि इसे छुपाने में भी उसे अब कोई दिलचस्पी नहीं रही है।
आज मैक्रों भारतीय विरासत को देख रहे हैं, कुल्हड़ में चाय का स्वाद ले रहे हैं और रोड शो के दौरान जय श्री राम के नारों का अभिवादन कर रहे हैं…। यह उन विदेशी बुद्धिजीवियों के लिए समझना मुश्किल है जो भारत को उसकी वास्तविकता के साथ कभी नहीं अपना पाए। उनके लिए यह स्वीकार करना कठिन है कि भारत अपने सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत पर गर्व कर रहा है आखिर वे तीसरी दुनिया के देशों को तभी ‘मान्यता’ देते हैं जब वे अपनी सभ्यता का ‘विदेशीकरण’ कर दें।
राजकीय दौरे पर राममंदिर की प्रतिकृति को भेंट किए जाने ने यह संदेश दिया है कि जिन देवी-देवताओं को भारतीय संविधान में भी जगह दी गई है उन्हें तथाकथित रूप से सेक्यूलर दिखने के लिए छुपाने की आवश्यकता नहीं है। भारत अपने गौरव को शान से दिखाने को सज्ज है और जिन विदेशी बाबूओं को इससे दिक्कत हो रही है उन्हें बता दें कि वे अपने बबल से बाहर आ जाएं क्योंकि दुनिया बहुध्रुवीकरण की ओऱ बढ़ गई है और भारत इसका महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभर रहा है।
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