केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 16 अक्टूबर, 2022 के दिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ मध्य प्रदेश में हिंदी माध्यम से मेडिकल की पढ़ाई का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर अमित शाह ने हिंदी में लिखित MBBS कोर्स की तीन पुस्तकों का विमोचन किया।
मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने अंग्रेजी के अतिरिक्त किसी स्थानीय भाषा में मेडिकल की पढ़ाई प्रारम्भ की है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने तीन पुस्तकों, मेडिकल बायोकेमिस्ट्री, मेडिकल फिजियोलॉजी और ऐनाटॉमी का विमोचन किया। ये पुस्तकें MBBS के प्रथम वर्ष की पढ़ाई में उपयोग की जाएंगी। इसी के साथ मध्य प्रदेश में नए एडमिशन लेने वाले विद्यार्थियों का हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने का रास्ता सुगम हो गया।
इन पुस्तकों को भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत 97 विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा अनुदित किया गया है। अब द्वितीय वर्ष की पुस्तकों पर काम चल रहा है एवं तृतीय वर्ष की पुस्तकों को भी हिंदी माध्यम में अनुदित करने के लिए योजना बनाई गई है।
मध्य प्रदेश में उठाया गया यह छोटा सा कदम भविष्य में हिंदी भाषी अन्य राज्यों के लिए मेडिकल शिक्षा में हिंदी के प्रयोग के लिए प्रेरित करेगा। हिंदी माध्यम में मेडिकल की पढ़ाई दूर-दराज से आने वाले ऐसे छात्रों के लिए सहायक सिद्ध होगी, जिनकी पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी नहीं है।
मातृभाषा में पढ़ाई आसान, विदेशों में मातृभाषा का ही उपयोग
देश की कुल जनसंख्या में से लगभग 45% लोग हिंदी भाषी प्रदेशों में निवास करते हैं। इन राज्यों में अधिकांश प्राथमिक शिक्षा का माध्यम हिंदी है। अंग्रेजी मात्र एक विषय के रूप इनके समक्ष अधिकतर कक्षा 6 से आती है। ऐसे में उच्च शिक्षा में एकाएक अंग्रेजी का सामना इन छात्रों के लिए कठिन होता है और एक भाषाई अवरोध के रूप में प्रकट होता है। अंग्रेजी में असहजता अधिकांश हिंदी-भाषी छात्रों के मन में अक्सर हीनभावना पैदा करती है।
मेडिकल एवं इंजीनियरिंग उच्च शिक्षा के लिए सबसे बड़े विकल्प के तौर पर देखे जाते हैं, परन्तु हिंदी में इनके पाठ्यक्रम की अनुपलब्धता हिंदी माध्यम में शिक्षित छात्रों के लिए एक कठिनाई बन कर सामने आती है। व्यक्ति अपनी मातृभाषा में ही विचार करता है और उसी को माध्यम बनाकर अपनी सोच अधिक अच्छे ढंग से प्रस्तुत करने में सक्षम होता है। सीखी गईं अन्य भाषाओँ का व्यक्तिगत शब्दकोश तुलनात्मक रूप से सीखी गई भाषा से छोटा होता है।
मेडिकल की पढ़ाई में माध्यम के रूप में मातृभाषा का उदाहरण विदेशों से भी लिया जा सकता है। नॉर्वे में रह रहे भारतीय डॉक्टर प्रवीण झा के अनुसार, नॉर्वेजियन भाषा ही यहाँ की चिकित्सकीय भाषा है। उनके अनुसार, भले ही काफी शब्द सभी भाषाओं में समान रूप से लिखे जाएं परन्तु स्थानीय स्तर पर सीखी गई भाषा का रोगियों के साथ बातचीत करने में और उन्हें समझने तथा समझाने में अत्यंत सहायक सिद्ध होती है।
जर्मनी एवं फ्रांस जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई उनकी स्थानीय भाषा जर्मन या फ्रेंच में होती है। साथ ही, अंग्रेजी में भी अध्ययन का विकल्प खुला रहता है। ऐसे में भारत में भी स्थानीय भाषाओँ में उच्च शिक्षाओं का पढ़ाया जाना बहुत बड़े विद्यार्थी वर्ग के लिए सहायक सिद्ध होगा।
इसके अलावा ऐसे मेधावी छात्र जो मातृभाषा के बंधन के कारण आगे नहीं बढ़ पाते एवं अंग्रेजी ना जानने के कारण उनमें हीनभावना बनी रहती है, उनके लिए हिंदी में व्यावसायिक शिक्षा का प्रारम्भ किया जाना एक वरदान साबित होगा। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी हिंदी को बढ़ावा देने से वह अपने कार्यक्षेत्र में भी आत्मविश्वास के चलते अधिक उन्नति प्राप्त कर सकेगें।
देश को अंग्रेजो से मुक्त हुए बीते 75 साल, देश अब भी अंग्रेजी का बंधक
भले ही भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए 75 साल हो गए हों परन्तु विभिन्न आयामों में अब भी उपनिवेशवाद का बोलबाला है। उच्च शिक्षा इसमें एक प्रमुख आयाम है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई स्थानीय भाषाओं में हो सके इसके लिए पिछले दशक तक कोई प्रयास नहीं किए गए।
कई दशकों से देश में उच्च शिक्षा में माध्यम के तौर पर मात्र अंग्रेजी के प्रयोग और माध्यम के तौर पर स्थानीय भाषाओं का प्रयोग न करने को लेकर बहस तो होती रही पर सरकार और शिक्षा सम्बंधित फैसले लेने वाले कोई ठोस कदम उठाने से बचते रहे।
उच्च शिक्षा में दशकों तक हिंदी एवं स्थानीय भाषाओँ को लाने के लिए कोई प्रयास न करना भाषाई राजनीति और औपनिवेशिक सोच के हावी होने का परिचायक है। इस बीच आई शिक्षा नीतियों में भी इस बात के कोई प्रयास नहीं किए गए कि उच्च शिक्षा में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी के साथ समान रूप से जगह दी जाए जिससे एक बड़ा वर्ग जो अभी उच्च शिक्षा से वंचित है, मुख्यधारा की उच्च शिक्षा से जोड़ा जा सके।
नई शिक्षा नीति, नए प्रयास
उच्च शिक्षा में हिंदी एवं अन्य स्थानीय भाषाओं को जोड़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रयास नई शिक्षा नीति-2020 के द्वारा हुआ है, इसके अतिरिक्त, राजभाषा समिति की सिफारिशों ने भी हिंदी एवं स्थानीय भाषाओं में उच्च शिक्षा दिए जाने की वकालत की है। इसी क्रम में मध्य प्रदेश सरकार का यह प्रयास सामने आया है।
मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग एवं मेडिकल के जैसी उच्च शिक्षाओं में हिंदी को माध्यम के रूप में शामिल किया जाना इसी क्रम में एक प्रयास है। इसके लिए प्रस्ताव काफी पहले तैयार हो गया था जिसके पश्चात पुस्तकों का अनुवाद एवं अन्य व्यवस्थाओं के बाद अब इसे मूर्त रूप दिया जा सका है।
इसके अतिरिक्त संसदीय राजभाषा समिति ने गत 9 अक्टूबर को देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को सौंपी 11वीं रिपोर्ट में भी हिंदी एवं स्थानीय भाषाओं के संवर्धन के लिए कई सुझाव दिए। इसमें सरकारी दफ्तरों से लेकर उच्च शिक्षा के महत्वपूर्ण संस्थानों आइआइटी एवं आइआइएम आदि में भी हिंदी माध्यम में पढ़ाई का सुझाव दिया।
गृहमंत्री श्री अमित शाह ने पुस्तकों का विमोचन करते हुए यह जानकारी भी दी कि मोदी सरकार पूर्व में ही JEE और NEET जैसी परीक्षाओं को 12 स्थानीय भारतीय भाषाओं में आयोजित करा रही है। इससे इन बड़े संस्थानों में अध्ययन की इच्छा रखने वाले राज्य शिक्षा बोर्ड एवं स्थानीय भाषा में पढ़े छात्रों को इन प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने में सरलता होगी।