दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित हुई जमीयत उलेमा-ए-हिंद के 34वें सत्र में इसके प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि सरकार समान नागरिक संहिता के जरिए मुस्लिम पर्सलन लॉ को अप्रभावी करना चाहती है। उन्होंने कहा कि यह संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और सिर्फ वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है।
मौलाना महमूद मदनी का कहना है कि समान नागरिक संहिता मात्र मुसलमानों का मुद्दा नहीं है बल्कि यह देश के विभिन्न सामाजिक समूहों, समुदायों, जातियों एवं सभी वर्गों से संबंधित है। मदनी के अनुसार देश विविधता में एकता एवं बहुलतावाद का अच्छा उदाहरण है और सरकार बहुलवाद को अनदेखा करते हुए जो कानून पारित करना चाहते हैं उनसे देश की एकता, विविधता एवं अखंडता पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
मदनी ने कहा कि “मुस्लिम पर्सनल लॉ के लिए मुसलमान अधिक संवेदनशील हैं क्योंकि इस्लामी शरीयत जीवन के सभी क्षेत्रों और सामाजिक और नैतिक पहलुओं में अंतर्निहित है। पवित्र कुरान के आदेश इस ब्रह्मांड के निर्माता द्वारा बनाए गए हैं जिनमें बदलाव नहीं हो सकता है।”
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मुस्लिम पर्सनल लॉ एवं मुस्लिम परिवार कानूनों का खात्मा करना लोकतंत्र एवं संविधान के नियमों के खिलाफ है। जब इस देश का कानून लिखा गया तो संविधान सभा ने गारंटी दी थी कि मुस्लिमों के धार्मिक नियम विशेष रूप से मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। ये संविधान में निहित अनुच्छेद 25 से 29 का उल्लंघन करता है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के संबंध में वर्तमान सरकार द्वारा देश की अदालतों को गुमराह किया जा रहा है। वर्तमान में अदालतों ने तीन तलाक, हिजाब आदि मामलों में शरीयत के नियमों और कुरान की आयतों की मनमानी व्याख्या कर मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
ज्ञात हो कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद दिल्ली में तीन दिवसीय पूर्ण सत्र आयोजित कर रहा है जो शुक्रवार, 10 फरवरी से शुरू हुआ। हालाँकि इसमें मदनी द्वारा जो दावे संविधान और समान नागरिक संहिता को लेकर किए गए वे खोखले एवं बेबुनियाद हैं। मौलवी स्वयं मुसलमान वर्ग को अंधेरे में रखकर संविधान के प्रति भ्रम फैला रहे हैं।
संविधान में UCC का जिक्र
समान नागरिक संहिता (UCC) एक राजनीतिक कदम नहीं बल्कि प्रस्तावित विधिक ढ़ांचे का हिस्सा है जो देश के समस्त नागरिकों, चाहे वे किसी भी धर्म से संबंधित हो, को विवाह, तलाक, गोद लेने एवं उत्तराधिकार जैसे विषयों पर सार्वभौमिक यानि कि एक समान कानूनों को संहिताबद्ध करके लागू करने का पक्षधर है।
इस संहिता का जिक्र भारत के संविधान के निति निर्देशक तत्वों के तहत अनुच्छेद 44 में स्पष्ट है जहाँ कहा गया है कि राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
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देश की विविधताओं को देखते हुए समान नागरिक संहिता अपरिहार्य है ताकि सभी धर्मों के लोग बहुलता को आसानी से अपनाकर शांतिपूर्ण जीवन जी सकें। यही कारण है कि इसके समर्थनकर्ताओं में संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर एवं पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी थे।
संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर समान नागरिक संहिता को संविधान का अंग बनाना भी चाहते थे और लागू भी करना चाहते थे पर जब उनकी सरकार यह काम न कर सकी तो उन्होंने अपना पद छोड़ दिया। वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू UCC के समर्थक तो थे पर भारी विरोध के आगे उन्होंने राष्ट्रीय कानून की आहूति दे दी। उन्होंने हिंदू कोड बिल तो जारी कर दिया पर UCC नहीं ला पाए।