इंडि गठबंधन के जरिए कांग्रेस नीतीश कुमार को यह संदेश देने में करीब–करीब कामयाब हो गई है कि वो केंद्र मे किसे देखना चाह रही है। नीतीश कुमार की स्थिति के बारे में हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं कि उनके लिए राज्य और केंद्र दोनों ही स्तर पर राजनीतिक स्थितियां कठिन बन गई हैं। ऐसे में जिसको इसका फायदा सबसे अधिक मिल रहा है वो है लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल। आरजेडी के मनोज झा को देखकर लग रहा है कि वो इंडि गठबंधन के प्रवक्ता के रूप में उभर रहे हैं।
हालांकि मनोज झा का आगे आना और बिहार में जातिगत सर्वेक्षण का जारी होना उस राजनीतिक घटनाक्रम को साफ कर रहा है जो इंडि गठबंधन ने मुंबई बैठक में संभवत तय कर लिया था।
मुंबई में हुई इंडि गठबंधन की बैठक के बाद से विपक्ष के नेताओं ने हिंदू धर्म विरोधी बयान देना शुरू किया। हिंदू औऱ सनातन को अलग-अलग करके इसे मिटाने की बात कही गई। जो काम उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्या ने श्रीरामचरितमानस को जलाकर औऱ बिहार में वहां के शिक्षा मंत्री डा. चंद्रशेखर ने इसे जहरीला रसायन बताकर किया उसको कथित एलीट क्लास तक पहुँचाने का काम तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को मिटाने के आह्वान के साथ किया।
सनातन धर्म मिटेगा कैसे? नरसंहार को यहां विकल्प न बनाकर ऐसे राजनीतिक हथियार का ईजाद किया गया जिससे विपक्षी दल अपने कथित समाजवाद और सामाजिक न्याय के दम पर धर्म को गौण कर जातियां पैदा कर दें औऱ यही बात पहले से चली आ रही जातिगत जनगणना के साथ जोड़ दी जाए। मनोज झा ने बड़े सलीके से ठाकुरों पर कविता पढ़कर सदन में एक पूरे समुदाय को कठघरे में खड़ा कर दिया पर कोई उनपर प्रश्न नहीं लगा सकता क्योंकि कविता पढ़ रहा आदमी तो कथित रूप से हेट स्पीच की श्रेणी में आ ही नहीं सकता।
खैर, मनोज झा को समाजवाद का ब्राह्मण चेहरा बनाने के पीछे की कहानी बहुत पहले लिखी गई थी और उसका अंत जातिगत सर्वे के निष्कर्ष को सार्वजनिक करने के साथ पूरा हुआ है।
इसी जातिगत सर्वे का संदेश साफ है कि बिहार में 17 प्रतिशत विशेष समुदाय से आते हैं और हिंदुओं की संख्या 0 प्रतिशत है। इसके अलावा यह सर्वे कोई उद्देश्य पूरा नहीं करता है। इसी एजेंडे के साथ मनोज झा कथित दार्शनिक बनकर सामाजिक न्याय की मांग कर रहे थे और इसी एजेंडे के पीछे बहुसंख्यकों को हाशिए पर खड़ा दिखाया जा रहा था।
समाजवादी पार्टियों ने जातिगत राजनीति का सहारा लेकर वर्षों से जिस सामाजिक न्याय की बात की उसे कभी प्राप्त करने की दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाए। आज आगामी चुनावों के लिए फिर से जातिगत जनगणना की मांग के साथ इस मुद्दे को फिर से हवा दी जा रही है। मनोज झा कविताएं ढूंढ-ढूंढ कर ठाकुरों पर प्रश्न लगाते रहेंगे पर यह नहीं बताएंगे कि समाजवाद की बात करने वाले दल परिवारवाद का गढ़ बनकर क्यों बैठे हैं? जिस वर्ग को आगे लाने का वादा किया गया था वो आजतक पिछड़ा क्यों बना हुआ है? और जातिगत जनगणना के नाम पर कौनसे धर्म का तुष्टिकरण किया जा रहा है?
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