प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम ने हाल ही में अपना 100वां एपिसोड पूरा किया है। वर्ष 2014 में शुरू होने के बाद एक लंबा सफर तय करने वाले इस कार्यक्रम की चर्चा इसके प्रभाव के कारण की जानी चाहिए। प्रधानमंत्री एवं जनमानस के बीच संवाद के लिए शुरू किए गए कार्यक्रम ने एक ऐसी परंपरा की शुरुआत की है जिसने आम भारतीय को राष्ट्रीय पटल पर पहचान दी है।
कार्यक्रम की अवधारणा बेहद सरल थी। संवाद की। यह बोझिल हो सकता था या फिर राजनीतिक मंशाओं को पूरा करने वाला। हालाँकि 100वें एपिसोड का सफर पूरा करना इसकी सफलता और निरंतरता का परिचायक रहा। इसकी निरंतरता बनाये रखने में संवाद का दोतरफा होना महत्वपूर्ण रहा। हर माह के अंत में देशवासियों ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उनके काम की पहचान के लिए एक मंच मिल गया है। आज कश्मीर से पेंसिल स्लेट का काम करने वाले मंजूर अहमद के बारे में देश जानता है तो मन की बात कार्यक्रम के कारण।
देखा जाए तो मन की बात जैसे कार्यक्रम सरलता से सुशासन की नींव को भी मजबूत कर रहे हैं। इसका असर आंकड़ों में तो है ही साथ ही देश के मेहनतकश लघु उद्योगकर्मी, कलाकार, किसान, महिलाओं की पहचान से भी यह सिद्ध हो रहा है।
100वें एपिसोड की शुरूआत में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी मुलाकात जनता से होती रहती थी पर प्रधानमंत्री पद के कार्यभार में यह संभव नहीं था ऐसे में मन की बात की बात ने यह संभव बनाया कि वो देशवासियों के संपर्क में रह सके।
हालांकि कार्यक्रम की रूपरेखा और इसके प्रभाव पर नजर डालें तो इसका असर संवाद तक सीमित नहीं है। यह एक संवाद कार्यक्रम से अधिक विचारों का मंच बनकर उभरा है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विचारों का आदान-प्रदान एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जनमत संग्रह, सर्वेक्षण कुछ ऐसे तरीकें हैं जिनसे जनता की राय जानी जाती है। हालांकि यह विशेष मुद्दों तक ही सीमित रहते हैं।
PM मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम से अब तक कितनी कमाई हुई?
मन की बात ने इस आदान-प्रदान को नियमित बना दिया है। अब सुदूर गांव में बैठे व्यक्ति को भी पता है कि वह अपने विचारों को राष्ट्रीय मंच पर भी प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही सभी देशवासी उसे सुनेंगे भी, पहचान भी मिलेगी और मशवरे भी।
प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यक्रम में आत्मनिर्भर भारत की चर्चा की, लघु उद्योगों और सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डाला तो इसका फायदा भी लघु उद्योगों को मिला है। मंजूर अहमद के काम को पहचान मिलने के बाद उनके कार्य का इतना विस्तार हुआ है कि वो 200 लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं। वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा दे रही विजयलक्ष्मी अब विदेश में भी लोटस फाइबर को एक्सपोर्ट करने को तैयार है। स्थानीय स्तर से शुरू हुआ उनका कार्य मन की बात से पहचान मिलने के बाद लोकल से ग्लोबल की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों पर नजर डालें तो जनवरी-नवंबर 2022 के दौरान एमएसएमई क्षेत्र की ऋण वृद्धि औसतन 30.6 प्रतिशत से अधिक रही है। महिला रोजगार की बात करें तो वर्ष 2014-15 के दौरान महिलाओं का एमएसएमई में योगदान 9.99 प्रतिशत था जो 2022-23 में लगभग 11.5 प्रतिशत पर पहुँच गया है।
मन की बात कार्यक्रम राजनीतिक लाभ से अधिक शिक्षा, संस्कृति एवं योजनाओं के प्रसार में महत्वपूर्ण रहा और यह ही इसकी उपलब्धि भी है। यूनेस्को की डीजी द्वारा शिक्षा एवं संस्कृति के प्रसार के लिए मन की बात के मंच का प्रयोग इस बात का द्योतक है कि विचारों के प्रसार एवं उनकी स्वीकार्यता के रूप यह प्रभावी माध्यम है।
स्टेट्समैनः बादशाही मानसिकता को समाप्त करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम पर अक्सर प्रश्न चिह्न लगते हैं। राजनीतिक गलियारों में इसकी महत्ता पर प्रश्न करना औचित्यपूर्ण नहीं है। इसका असर उत्तर-पूर्वी राज्यों से जानना चाहिए जिनका जिक्र अक्सर मन की बात में किया गया है। प्रधानमंत्री द्वारा उत्तर-पूर्वी राज्यों की संस्कृति, लोक कलाओं एवं लघु उद्योगों के विकास की दिशा में योजनाएं तो शुरू की ही है साथ ही मन की बात कार्यक्रम में इसकी निरंतर चर्चा से पहाड़ी राज्यों को मुख्यधारा से जोड़ दिया है।
संभव है कि मन की बात भविष्य में और माइलस्टोन बनाये, विचारों की शक्ति के प्रदर्शन, सुचारू संवाद एवं राष्ट्रीय मंच के रूप में। पर आज इसकी चर्चा एक ऐसे मंच के रूप में होनी चाहिए जो राजनीति के लिए नहीं बना बल्कि 140 करोड़ लोगों के देश के साथ उसके प्रधानमंत्री के बीच माध्यम है कही और अनकही बातों का।