“मणिपुर मामले में अगर भारत अमेरिका से मदद माँगेगा तो हम ज़रूर भारत की मदद करेंगे।” 6 जुलाई, 2023 को कोलकाता में अमेरिकन सेंटर में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी (Eric Garcetti on Manipur Crisis) ने ऐसा कहा है। उनकी ऐसी क्या मजबूरी थी इस बात पर हम आएँगे, लेकिन पहले इस बात पर दिल खोल कर हंस लीजिए कि समाचार पत्र ‘द टेलीग्राफ़’ (The Telegraph) का एक पत्रकार अमेरिकी राजदूत के मुँह में कुछ प्रश्न ठूँसता है और एक विदेशी अधिकारी को भारत के अंदरूनी मामले पर बोलने को मजबूर करता है और फिर ये बन जाता है ‘अंतरराष्ट्रीय मामला’।
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मणिपुर मामले में कहाँ से आया अमेरिकी राजदूत
कोलकाता में अमेरिकन सेंटर में अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे और इसी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में एक पत्रकार ने उनसे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के संबंध में एक प्रश्न पूछा। इसके लिए ‘द टेलीग्राफ’ के देवदीप पुरोहित ने भूमिका बनाई और हाल ही में सीएनएन को दिए गए बराक ओबामा के साक्षात्कार का हवाला दिया। इस बयान में ओबामा ने भारत में मुस्लिमों को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि ‘भारत को एक और विभाजन का सामना करना पड़ सकता है’।
टेलीग्राफ के पत्रकार ने अपने सवाल में कहा कि पूर्वोत्तर भारत का मणिपुर कुछ महीनों से ‘जल रहा’ है। अमेरिकी राजदूत से सवाल में वो इसे ‘ईसाई अल्पसंख्यकों’ पर हमले के रूप में रखते हैं और पूछते हैं कि ‘क्या यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय है?’
कितनी अजीब बात है कि एक भारतीय पत्रकार अपने देश के मामले के समाधान के लिए उस अमेरिका के एक अधिकारी को चुनता है जिस अमेरिका का ख़ुद ही ब्लैक्स पर अत्याचार का इतिहास रहा है। जो रोज़ ही गन वायलेंस (Gun Violence) की घटनाओं से गुजर रहा है। लेकिन भारत में लोकतंत्र है, इसलिए शायद टेलीग्राफ के पत्रकार ने अपनी बोलने की आज़ादी का फ़ायदा उठाकर ये सवाल पूछ भी लिया।
अब जब ये सवाल उठा ही लिया गया तो अमेरिकी राजदूत गारसेटी ने भी इसके जवाब में कहा कि ‘अगर भारत मदद की माँग करेगा, सिर्फ़ तभी अमेरिका इसमें कुछ कर सकता है’।
“अगर पूछा गया तो हम किसी भी तरह से सहायता करने के लिए तैयार हैं। हम जानते हैं कि यह एक भारतीय मामला है और हम शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और यह जल्दी होगा। क्योंकि अगर वे (मणिपुर के लोग) शांति कायम करते हैं हम अधिक सहयोग, अधिक परियोजनाएं, अधिक निवेश ला सकते हैं।”
एरिक गारसेटी
यहाँ से टेलीग्राफ का पत्रकार अपने मक़सद में कामयाब हो गया, अमेरिकी राजदूत का यह बयान देखते ही देखते सभी मीडिया संस्थानों की हैडिंग बन गया। अब क्योंकि अमेरिका का नाम इसमें शामिल हो गया तो कांग्रेसी इकोसिस्टम ने भी इस एक बयान पर प्रॉपगैंडा शुरू कर दिया।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी इस खबर को ट्वीट करते हुए लिखा कि देखो अमेरिका ने आज तक भारत के अंदरूनी मामलों पर ऐसा नहीं कहा था और ये तो भारत के लिए बड़ी शर्मिंदगी की बात हो गई।
अब जैसे ही कांग्रेस और उनके पत्रकारों ने इस एजेंडा को हवा दी, वैसे ही कुछ सवाल हमारे दिमाग़ में आते हैं-
- पहला: आख़िर अमेरिका को मणिपुर के मुद्दे पर घसीटने की क्या ज़रूरत आ गई थी?
- दूसरा: मणिपुर की घटना ‘ईसाइयों की सुरक्षा’ का मुद्दा कैसे हो गया? जबकि वहाँ पर तो झगड़ा उनके बीच का है जो अधिकांश मैतेई हिंदू हैं, इनके बाद मुस्लिम, जो क़रीब 8% हैं और फिर म्यांमार के कूकी अप्रवासियों की वजह से ये समस्या पैदा हुई है।
हाँ, ये इमिग्रेंट्स कूकी ईसाई ज़रूर हैं। तो इसका मतलब ये हुआ कि एक ओर से जो लोग भारत को अपने अमेरिकी मालिकों के सामने मुस्लिम विरोधी बताना चाहते हैं, वही अब भारत की छवि ‘ईसाई-विरोधी’ की बनाने की भी कोशिश कर रहे हैं? कहीं उनका मक़सद दुनिया को ये संदेश देना तो नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में अब ईसाइयों पर भी ख़तरा है?
ईसाईयो की सुरक्षा के सवाल के लिए टेलीग्राफ का ये पत्रकार अमेरिकी राजदूत को पकड़ता है, जिसने भारत में नियुक्ति से पहले बयान दिया था कि उनका भारत में आना यहाँ पर मानवाधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा होगा। यानी इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पूरी तैयारी कर के गारसेटी को मणिपुर के मामले पर बोलने के लिए चुना गया ताकि केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ ग्लोबल प्रॉपगैंडा करने का उन्हें एक और मौक़ा मिल जाए।
अब आप म्यांमार में ये भी देखिए कि जिन अवैध कूकी अप्रवासियों के खिलाफ स्थानीय मेइती संघर्ष कर रहे हैं, वो मुख्य रूप से ईसाई जनजाति है। जबकि मैतेई समुदाय मुख्यतः हिंदू है। लेकिन अमेरिकी राजदूत से ‘ईसाई अल्पसंख्यक’ की सुरक्षा के बारे में सवाल किया जाता है।
विक्टिम कार्ड खेलते हुए कुकी सुप्रीम कोर्ट भी चले गए हैं। एक एनजीओ जिसका नाम ‘मणिपुर ट्राइबल फोरम’ है, उसने ईसाई कुकी आदिवासियों के लिए सैन्य सुरक्षा की मांग की थी। CJI चंद्रचूड़,जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने याचिका पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में कुकी समुदाय का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने किया।
अब ये कॉलिन गोंसाल्वेस कौन है? गोंसाल्वेस सुप्रीम कोर्ट के वकील और एक NGO ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के संस्थापक हैं। ये संगठन ‘सोशियो लीगल इंफॉर्मेशन सेंटर’ का हिस्सा है। इनकी वेबसाइट अब बंद हो चुकी है लेकिन इस वेबसाइट पर इन्होंने अपने ‘दानदाताओं’ की लिस्ट लगाई थी जिसमें अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस का ओपन सोसाइटी फाउंडेशन भी शामिल था। अबा आप सोच रहे होंगे कि ये जॉर्ज सोरोस कहाँ से हर जगह निकल आता है। तो आपका सूचना ग़लत नहीं है क्योंकि यही इसकी ख़ास बात है। अपने NGO के ज़रिए हर एंटी-इंडिया एलिमेंट तक पहुँचना ही इनका फ़ेवरिट टाइमपास है।
इस NGO के दानदाताओं की लिस्ट European Commission, Christian Aid, Ford Foundation, German Embassy, Sweden Embassy और American Embassy भी शामिल हैं
अब कुछ और जाने पहचाने नाम भी सामने आने वाले हैं।इस वकील के NGO यानी ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क की गुजरात ब्रांच को चलाने वाली वकील हैं निर्जरी सिन्हा , जो कि मोदी विरोधी विचारधारा के लिए भी जानी जाती हैं, और उससे भी important बात ये कि ये निर्झरी सिन्हा कथित फैक्ट चेकर वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ की भी डायरेक्टर हैं। यानी मोहम्मद ज़ुबैर के दोस्त प्रत्येक सिन्हा की मम्मी।
अब देखिए कि यही वकील गोंसाल्वेस जुलाई, 2022 में सुप्रीम कोर्ट में AltNews के फाउंडर मोहम्मद जुबैर के लिए खड़े हुए थे।
गोंसाल्वेस का कहना है कि वाई देशभर में हिरासत में लिए गए अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को मुफ्त कानूनी मदद दे रहा है। वो 2019 में CAA विरोधी दंगों में जामिया के पत्थरबाज दंगाइयों का भी बचाव कर चुके हैं।
इन CAA के ख़िलाफ़ जो आंदोलकनारी थे, उनमें भी ये वकील शामिल हुए थे, और सोचिए किसके साथ? कुख्यात आंदोलनजीवी योगेन्द्र यादव के साथ! ये योगेन्द्र यादव तो राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के मुख्य आकर्षण भी थे। योगेन्द्र यादव के भूतम भविष्य और वर्तमान से तो आप सभी परिचित हैं ही।
तो अब इन सभी नामों के सामने आने के बाद और इन सभी के एक ही रूट तक पहुँचने से हमें कुछ चीजें पता चलती हैं, जैसे-
- सुप्रीम कोर्ट के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ‘मानवाधिकारों’ के लिए लड़ते हैं, जिनमें अक्सर ईसाइयों के मानवाधिकार जुड़े होते हैं।
- म्यांमार से आए अवैध कुकी अप्रवासी मुख्यतः भी ईसाई हैं
- टेलीग्राफ के पत्रकार ने अमेरिकी राजदूत गार्सेटी से बात करते हुए भी ज़बरदस्ती ईसाई अल्पसंख्यकों की बात छेड़ी
- अमेरिकी राजदूत गार्सेटी के बयान में से ये तथ्य छिपा लिया जाता है कि ‘अगर अमेरिका से कोई पूछेगा तो’, यानी सिर्फ़ अख़बारों की एक हैडिंग से कलाकारी के लिए ये पूरा आयोजन किया गया
- कहीं ना कहीं, Colin Gonsalves के माध्यम से अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस भी अब स्पष्ट रूप से भारत के अंदरूनी मामलों में शामिल हो चुका है
अब ये आप भी जानते हैं कि कुछ ही दिन पहले जॉर्ज सोरोस के कौन कौन से सहयोगी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से मिले थे। हमारे चैनल पर आप इन सभी मामलों पर विस्तार से देख सकते हैं। इनमें सुनीता विश्वनाथ का नाम महत्वपूर्ण है, जो NGO के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ वही प्रॉपगैंडा कर रही हैं, जैसा जॉर्ज सोरोस चाहता है और जब ये बात सबके सामने आती है तब ख़ुद को सोरोस से अलग बताने के लिए आर्टिकल छापती हैं।