जब तृणमूल कॉन्ग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा अडानी पर हमलावर हैं ठीक उसी समय तृणमूल कॉन्ग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी 12 दिन के लिए स्पेन यात्रा पर निकल रही हैं। ममता की इस यात्रा की वजह कथित तौर पर इन्वेस्टमेंट और बिजनेस सम्मेलन बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि स्पेन से जो निवेश अब बंगाल में आने वाला है, उससे बंगाल में खुशहाली आएगी और इस प्रदेश का भाग्य बदल जाएगा।
ममता बनर्जी अपने प्रदेश में निवेश और रोज़गार के अवसरों के लिए कितनी संवेदनशील हैं, इसका उदाहरण टाटा नैनो के प्लांट के बंगाल से गुजरात पहुँचने से ही मिल गया था। इसके अलावा, देश की पहली टायर निर्माता कंपनी ‘डनलप’ की फैक्ट्री का बंगाल में नीलाम होना, सत्ता में आने के बाद ममता सरकार जिस कारखाने का अधिग्रहण करना चाहती थी, उस कारखाने की नीलामी के साथ ही देश में डनलप की फैक्ट्री का भी अंत हो गया और वजह बना श्रमिकों का बकाया वेतन। लेकिन ममता बनर्जी विदेश से निवेश लाने की गप्पों में मशगूल हैं।
ऐसी ही विदेश यात्राओं के शौक़ीन ज्योति बसु भी थे। अपने कार्यकाल में उन्हें भी विदेश यात्राओं का शौक़ चढ़ा था। उससे कभी एक पैसे का भी निवेश प्रदेश में नहीं पहुंच सका, ये और बात है! ममता बनर्जी कहीं ना कहीं ज्योति बसु के ही कदमों पर चल रही हैं। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि दीदी की यात्राओं के सिलसिले में अभी तक कोई अदालत नहीं पहुँचा है वरना बसु की लगातार विदेशी यात्राओं से तंग आ कर साल 1992 में एक NGO ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर पश्चिम बंगाल सरकार को ज्योति बसु के खर्चों की भरपाई करने से रोकने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि मुख्यमंत्री विदेशी मुद्रा और सार्वजनिक सम्पति की बर्बादी कर रहे हैं जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था। मार्क्सवाद विचारधारा से प्रभावित ज्योति बसु ने साल 1977 में सत्ता में आने से लेकर 1992 के बीच 22 बार समुद्र पार यात्राएँ कीं।
एक बार कांग्रेस विधायक सुदीप बंदोपाध्याय ने भी आरोप लगाया था कि ज्योति बसु की विदेशी यात्राओं से राज्य में एक भी पैसे का निवेश नहीं आया। इस से पूर्व सीपीआई (मार्क्सवादी) सांसद सोमनाथ चटर्जी ने भी 1995 में इस बात का ज़िक्र किया था कि इन यात्राओं से इन्वेस्टमेंट चलकर नहीं आ जाता।
स्पेन और दुबई के लिए निकलने से ठीक पहले ममता बनर्जी ने 31 आईपीएस और 20 आईएएस अधिकारियों का फेरबदल किया है। जिन 20 आईएएस अधिकारियों का तबादला किया गया, उनमें से 13 जिला मजिस्ट्रेट के पद पर थे। इस फेरबदल की जद में सिलीगुड़ी में पुलिस कमिश्नर और जलपाईगुड़ी, मुर्शिदाबाद, बांकुरा, बारासात, मुख्यालय और पुरुलिया रेंज में डीआईजी भी आए हैं। कथित तौर पर ट्रांसफर के ये आदेश मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी यात्रा से ठीक पहले दिए।
निवेश लाने की उम्मीद में जो ये यात्रा हो रही है, इसमें ममता बनर्जी के साथ सौरभ गांगुली भी जा रहे हैं। सौरभ गांगुली, जो कि कभी भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान हुआ करते थे, इस से पहले ऐसे किसी बिजनेस समिट का हिस्सा रहे हैं और इन्वेस्टमेंट आदि के बारे में उनकी जानकारी कैसी है, ये ममता बनर्जी ही बता सकती हैं।
इसके अलावा ममता बनर्जी के साथ तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव एवं प्रवक्ता कुणाल घोष भी हैं। कुणाल घोष का भी इतिहास बताता है कि बिज़नेस समिट का हिस्सा बनने के लिए वो कितने उपयुक्त आदमी हो सकते हैं। 2017 से जमानत पर चले रहे घोष को कलकत्ता हाईकोर्ट ने शारदा चिट-फंड घोटाले के आरोपित होने के चलते जमानत शर्तों में छूट के साथ स्पेन जाने की अनुमति दे दी है।
ममता बनर्जी की स्पेन यात्रा में मोदी-विरोधी गठबंधन की बैठक और उसकी टाइमिंग भी देखी जा रही है। ममता बनर्जी वैसे भी G20 सम्मलेन में राष्ट्रपति के न्योते पर रात्रिभोज में जाने के बाद इस गठबंधन की नजरों में चढ़ी हुई हैं।
जब ममता बनर्जी स्पेन की यात्रा पर निकली हैं तब मोदी विरोधी गठबंधन की आज नई दिल्ली में कोऑर्डिनेशन कमेटी की पहली बैठक होगी। इस कमेटी में 14 मेंबर्स हैं और एक सदस्य को छोड़कर बाकी सभी इस मीटिंग का हिस्सा हैं। इसमें ममता की पार्टी TMC को छोड़कर सभी लोग बैठक में शामिल हुए।
अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर स्पेन में ममता बनर्जी को इन्वेस्टमेंट एवं व्यापार से जुड़ी ऐसी कौनसी संभावना नजर आ गई है जो उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच 12 दिन इन निवेशकों के बीच बिताने का फैसला लिया है। खुद स्पेन की भी अगर बात करें तो यूरोपियन यूनियन में बेरोजगारी के मामले में स्पेन ही सबसे ज्यादा बुरी स्थिति में है। इसके कुछेक हिस्सों को छोड़कर ये बहुत विकसित नहीं है।
जिस बंगाल की पहचान ही उसकी सांस्कृतिक विरासत थी, जिसके इतिहास में इंडस्ट्रीज़ की उपलब्धियां दर्ज हैं, उसकी पहचान आज मात्र पलायन, अतिक्रमण, घुसपैठ, आतंकवाद, बमबारी, में सिमट चुकी है। जो गरीब थे वे और गरीब होते चले गए, रोजगार की उम्मीद में लोग बंगाल से पलायन करने लगे।
बंगाल कभी भारत में सबसे खुशहाल एवं समृद्ध भौगौलिक इलाकों में गिना जाता था, लेकिन उसके बाद कांग्रेस, कम्युनिस्ट विचारधारा और फिर ममता बनर्जी की तानाशाही ने इसे एक असफल प्रयोग में तब्दील कर दिया। वहां का बौद्धिक संसाधन आज विलुप्त है, श्रमिक वर्ग बंगाल में अनस्किल्ड है। ऐसे में ब्रिटिश तुल्य जलवायु क्षेत्र में अपनी छुट्टियों को निवेश का नाम देना कोरी हवाबाजी से अधिक और कुछ नहीं!
साल 2015 में भी ममता बनर्जी ने यूरोप यात्रा को इन्वेस्टमेंट डील का नाम दिया था। तब भी ममता का यही कहना था कि बंगाल इन्वेस्टमेंट और उद्योग के लिए सबसे आदर्श जगह है , लेकिन इसका क्या नतीजा हुआ ये आज भी अज्ञात है। साल 2018 में ममता बनर्जी इटली और जर्मनी की ट्रिप पर थीं, नाम इन्वेस्टमेंट डील्स का ही था। मगर वो भी कोरी लफ्फाजी से अधिक कुछ नहीं निकले।
अब ममता बनर्जी ने एक कदम आगे चलकर दलीलें दी हैं कि स्पेन ने उनके फिल्म फेस्टिवल में बहुत योगदान दिया है। कभी वे मोहन बागान की तस्वीर सुधारने का दावा कर रही हैं। उनकी यात्रा में स्पेनिश फुटबॉल लीग के अध्यक्ष जेवियर टेबास के साथ बैठक भी शामिल है। कहा जा रहा है कि कोलकाता में फुटबॉल को बेहतर बनाने के लिए उनके बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है।
राज्य में हर दूसरे दिन कहीं भी बम-बारूद फट रहे हैं, क़ानून व्यवस्था का हाल ममता के बंगाल में चरमराया हुआ है। इंडस्ट्री, व्यापार, वाणिज्य, रोज़गार, ममता के प्रदेश में चौपट हैं। जो कुछेक अवसर वहाँ पर रोज़गार के शेष हैं उन पर घुसपैठियों की दखल है, मगर ममता ने तय किया है कि बंगाल का भाग्य अब स्पेन का निवेश बदलेगा, वैसे ही जैसे बसु ने बदली, जैसे ममता की इस से पूर्व की यात्राओं ने बदली।