मणिपुर हिंसा को लेकर देशभर में हलचल है। संसद में इस मुद्दे पर बवाल जारी है तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस विषय को हाईलाइट करते हुए अपनी सक्रियता दिखाई।
इन सबके बीच एक घटना सामने आई है जिसने सभी को चौंका दिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में मणिपुर हिंसा पर निंदा प्रस्ताव पारित करवा डाला। वे इतने पर ही नहीं रुकीं। उन्होंने मणिपुर हिंसा से प्रभावित लोगों को पश्चिम बंगाल में आकर रहने का न्योता दे दिया। ममता बनर्जी ने कहा, “बंगाल आइए और हम आपको रहने के लिए जगह देंगे और खाने के लिए भोजन और आपके बच्चों के लिए स्कूल देंगे।”
इसके बाद ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि अगर सरकार मणिपुर में शांति बहाली नहीं कर सकती तो ये काम विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A करके दिखाएगा।
अब सवाल ये उठता है कि अगर ममता बनर्जी चाहती हैं कि मणिपुर हिंसा से पीड़ित पश्चिम बंगाल आएं तो फिर पश्चिम बंगाल में हिंसा से पीड़ित लोग कहाँ जाएंगे? लेकिन इससे ममता सरकार को फ़र्क़ नहीं पड़ता। उनका कार्य है, कहीं भी हिंसा हो तो उससे प्रभावित लोगों को अपने राज्य में आकर बसने का इनविटेशन देना।
“…उनको भोजन उपलब्ध कराएं, भले ही हम भूखे रह जाएँ”
वर्ष 2012 में असम में वहाँ की मूल निवासी जनजाति बोडो और बांग्लादेश से आए मुस्लिम अवैध शरणार्थियों के बीच विवाद हुआ, जिसने बाद में दंगो का रूप ले लिया। उस वक़्त पश्चिम बंगाल में नई-नई सरकार में आई ममता बनर्जी ने निर्देश दिए कि सीमावर्ती जिलों में प्रशासन असम से आने वाले मुस्लिम अवैध शरणार्थियों को आश्रय दे।
उस वक़्त ममता दीदी ने कहा था “यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है कि हम उन्हें आश्रय और भोजन उपलब्ध कराएं, भले ही हम भूखे रह जाएँ”
अब आप सोचिए कि एक राज्य सरकार की ये कैसी परम्परा है? जहाँ अपने रा ज्य के नागरिकों को तो राजनीतिक हिंसा से भरपूर पीड़ित किया जाता है पर दूसरे राज्य के लोगों को आश्रय देने की घोषणा की जाती है, फिर शरणार्थी वैध हों या अवैध, उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता। किसी को भी हिंसा से पीड़ित बता कर इन्वाइट कर डालो।
2021 में पश्चिम बंगाल से हुआ था पलायन
प्रश्न यह है कि क्या पश्चिम बंगाल में लोग हिंसा से पीड़ित नहीं हैं? यही पश्चिम बंगाल है, जहाँ वर्ष 2021 में विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने जीत के बाद ऐसा खेला किया कि कई लोगों को जान गंवानी पड़ी और सैकड़ों लोगों को जान बचाने के लिए असम भागना पड़ा था। असम के मुख्यमंत्री ने स्वयं इस बात की पुष्टि की थी।
लेकिन ममता दीदी अपने राज्य की हिंसा पर आँखे बंद कर देती हैं। ममता बनर्जी भले ही आँख बंद कर लें लेकिन अब देशभर में चर्चाएं हैं कि हर वर्ष पश्चिम बंगाल में कैसे चुनावी हिंसा में खुलेआम हत्याएं की जाती हैं। हाल में हुए पंचायत चुनाव में मौत का ये आँकड़ा 40 से ऊपर था।
इस आँकड़े के बाद तो जनता सवाल पूछेगी ही, जनता को चुप कराया जाएगा तो कलकत्ता हाईकोर्ट सवाल पूछेगा। यही, कि अपने राज्य की प्रशासन व्यवस्था काबू से बाहर है लेकिन फिर भी मणिपुर से लोगों को इन्वाइट क्यों किया जा रहा है?
राज्य की आर्थिक स्तिथि ख़राब
हाईकोर्ट संज्ञान ले या न ले लेकिन एक बात तय है कि ये इनविटेशन सिर्फ मणिपुर ही नहीं बल्कि अन्य राज्य चाहे असम हो या फिर बिहार हो, यहाँ बसे घुसपैठियों के लिए एक सुनहरा अवसर होगा। सुनहरा अवसर उन नेताओं के लिए भी होगा जो घुसपैठियों को वोट बैंक में तब्दील कर देते हैं।
नुकसान होगा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल के लोगों को… क्या ऐसा इनविटेशन बंगाल के लोगों के संसाधनों पर कब्जे करना नहीं है?
यहाँ पर आपको एक आँकड़ा बताते हैं, आपको जानकार हैरानी होगी कि वर्ष 1961 में बड़े राज्यों में पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक थी। उस समय यह भारत का सबसे अमीर राज्य था। महाराष्ट्र से भी ज्यादा अमीर। लेकिन, वर्ष 2018-19 में पश्चिम बंगाल एक गरीब राज्य की श्रेणी में आ गया। छत्तीसगढ़ से भी अधिक गरीब।
अब आप भी सोचिए कि जिस पश्चिम बंगाल की आर्थिक हालत पहले से ख़राब है, वहाँ ममता बनर्जी सबको बुलाकर अपने प्रदेश के नागरिकों के साथ अन्याय नहीं करेंगी?
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