ओखली में सिर देना या अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना। ब्यूटी ब्रांड ममाअर्थ (Mamaearth) ने ये दोनों ही काम बड़े अच्छे से कर लिए हैं।
लोग इस कंपनी के उत्पाद को देश-विरोधी बताकर बॉयकॉट करने के लिए ट्वीट पर ट्वीट कर रहे थे, इसी बीच कंपनी के मालिक का बयान आया कि भले ही वो आर्मी के लिए अपमानित बयान के समर्थन में उतरे हों लेकिन वो हैं ‘कट्टर देश प्रेमी’।
हमें तो यही समझ नहीं आ रहा है कि ये दोनों बातें साथ-साथ कैसे जा सकती हैं? दो विचारधाराओं की जब बात आए और आप दोनों पर ही हाथ उठा दें तो फिर हम तो यहीं कह सकते हैं कि आपका ‘कॉनसेप्ट’ ही क्लीयर नहीं है।
अब ‘ममाअर्थ’ ने भले ही ‘सॉरी’ बोल कर पल्ला झाड़ लिया हो, लेकिन ये सॉरी-सॉरी बोलने के इस खेल में जरूर अंदर का भी कोई मामला तो है क्योंकि ये पहली बार और संभवत: आखिरी बार भी नहीं है, जब किसी ने देश विरोधी या धर्म विरोधी टिप्पणी के बाद सॉरी बोला हो। अगर अंत में अपनी बात पर पछताना ही है तो क्यों ना पहले ऐसा कुछ बोले ही ना।
हालाँकि, ऐसा हो नहीं सकता। इस पूरे प्रगतिशीलता के खेल के पीछे सिर्फ ध्यानाकर्षण ही नहीं बल्कि ब्रांड के प्रमोशन के लिए पूरी मार्केटिंग टीम काम करती है। बात ममाअर्थ, मान्यवर, तनिष्क या किसी भी ब्रांड की कर लें, इनके पास मार्केंटिंग के लिए अलग टीम होती है, जिसमें कई विषयों से जुडे़ विशेषज्ञ होते हैं।
तो जब ममाअर्थ के फाउंडर या संस्थापक ये बोलते हैं कि ये एक ‘Poorly Drafted Tweet’ (ख़राब तरीक़े से लिखा गया ट्वीट) था तो ये हो कैसे सकता है। सोशल मीडिया या ऑनलाइन विज्ञापन के लिए बनाई गई अनुभवी टीम इस तरह बिना सोचे कोई ट्वीट कर ही नहीं सकती है जब तक कि वो ये रिसर्च ना कर लें कि कौन उनके टारगेट ऑडियंस या पाठक है और किसी ट्वीट का उनके उत्पादों पर क्या असर होगा।
तो यहाँ एक और बात सामने आती है ‘टारगेट एडवरटाइजिंग’ की। इसमें कंपनियाँ अपने टारगेट ग्राहकों की जानकारी के आधार पर ही विज्ञापन या ऑफर देती हैं। अब इससे आपको अंदाजा लग गया होगा कि तनिष्क का कथित सेक्युलर विज्ञापन और रिचा चढ्ढा के ट्वीट का ममाअर्थ द्वारा समर्थन क्यों किया जाता है। क्यों दिवाली, होली जैसे त्योहार आते ही इनमें सामाजिक सौहार्द की भावना जागृत होती है और जब कोई व्यक्ति इनपर सवाल खड़े कर देता है तो इनके पास होता है इसका जबरदस्त इलाज- सॉरी।
सेना का अपमान किया सॉरी बोल दो, किसी के धर्म का मजाक बनाया सॉरी बोल दो, हिंदू धर्म को तोड़-मरोड़ कर पेश किया सॉरी बोल दो। ये ट्रेंड ही बन गया है। जहाँ पहले हिंदू त्योहार आते ही ये ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ सक्रिय होते थे तो अब ये उसका भी इंतजार नहीं करते और जब इन सब के बाद ट्वीटर पर बॉयकॉट ट्रेंड करता है तो ये उसे भी अपने साथ हो रहे भयंकर ‘अन्यायों’ में जोड़ देते हैं।
बॉयकॉट ही किया है, सड़कों पर उतरकर हिंसा नहीं की है। बॉयकॉट मतलब विरोध का शांतिपूर्ण तरीका, ना कि किसी कट्टर विचारधारा के समर्थन करने के लिए आप एक टेलर की हत्या ही करे दें।
हम किसी बॉयकॉट या हिंसा के समर्थन में नहीं लिख रहे हैं। हम विरोध में है उस ‘सॉरी’ के जो हर गलत बयान के बाद सामने आ जाता है। ये शब्द उस बयान के प्रभाव को खत्म नहीं करता जिसका असर हजारों लाखों लोगों पर हुआ है। सॉरी न तो देश की संप्रभुता बनाकर रख सकता है और न ही देश की रक्षा कर सकता है।
सॉरी कहना हर बात का उपाय भले ही लगता हो पर यह उपाय है नहीं। यह बात इन कंपनियों को भी समझने की जरूरत है और कथित सितारों को भी। क्योंकि बॉयकॉट कितना भी गलत लगे, लेकिन कम से कम अक्खड़ बयानबाजी के बाद माफीनामा जारी करने की जरूरत तो नहीं रखता।