नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई (Malala Yousafzai) ऑस्कर पुरस्कार वितरण समारोह के 95 वें संस्करण में वे भी पहुँची थीं जहाँ उन्होंने क्या पहना था, इस बात को लेकर बहस हो रही है।
उनके गहनों में एक चीज ऐसी थी जिस पर सभी का ध्यान नहीं गया और वो थे उनके झुमके। मलाला यूसुफजई ने अपने झुमके/बालियों के बारे में कहा कि ये अफ़ग़ान रानी सोराया की बालियां थीं जो उन्होंने अपनी बेटी आबिदा बीबी को दी थीं और इसके बाद यह उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित आगे बढ़ती रहीं। अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि मलाला युसुफजई को ये झुमके कहां से और कैसे मिले?
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रानी सोराया अमानुल्ला ख़ान की पत्नी थीं। साल 1919 में जब अमानुल्ला ख़ान ने अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता संभाली तब उनकी पत्नी सोराया तार्ज़ी के महिलाओं से संबंधित प्रगतिशील विचार बेहद लोकप्रिय हुए थे। कई सदियों से क़बीलाई एवं रूढ़िवादी जीवन जीने वाले अफ़ग़ानों के लिए यह एकदम हैरान करने वाले क्रांतिकारी विचार थे।
अफ़ग़ानिस्तान में बादशाह के रूप में शासन शुरू करने वाले अमानुल्ला ने बाद में बतौर ‘शाह’ साल 1929 तक शासन किया और इस बीच उन्होंने और रानी सोराया ने अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा के लिए बहुत काम किया। इसका पता अमानुल्ला ख़ान के ही एक बयान से चलता है जिसमें उन्होंने कहा था, “मैं भले ही जनता का राजा हूँ, लेकिन शिक्षा मंत्री मेरी पत्नी ही है।”
मलाला ने ऑस्कर समारोह में हीरे की जो अंगूठी भी पहनी थीं, वो 1920 के दशक में बनी थीं और वो भी रानी सोराया की थीं।
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मलाला ने अपने एक बयान में कहा कि ये झुमके पहनकर वो रानी सोराया के अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहती थीं। आपको बता दें कि तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद से वहाँ महिलाओं पर एक बार फिर से तरह-तरह की पाबन्दियाँ लगा दी गई हैं, जैसे उन्हें स्कूल जाने से रोकना, उन्हें नौकरी करने जाने से रोकना, मीडिया में काम करने वाली महिलाओं को घर पर बिठा देना आदि आदि।
मलाला के पिता ने मलाला के झुमकों के संबंध में कहा कि तालिबान की मौजूदा सरकार द्वारा अफगानिस्तान में जो चल रहा है, मलाला ने उसका सांकेतिक विरोध करने के लिए ये झुमके चुने। वर्तमान में तालिबान में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं है, उन्हें काम करने का अधिकार नहीं है, वे विरोध करने के अधिकार से वंचित हैं और 2 करोड़ महिलाएं मौलिक अधिकारों से वंचित हैं। मलाला के पिता ने तालिबान को ग़ैर इस्लामी बताया है। उन्होंने ये भी कहा कि इस्लामी जगत के जो बड़े स्कॉलर्स हैं उन्हें तालिबान सरकार के इन नियमों को चुनौती देनी चाहिये।
दूसरी तरफ़ मलाला युसुफजई के रानी सोराया के झुमके पहनने से अफ़ग़ान तालिबान नाराज़ हैं और इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये झुमके अफगान राष्ट्र की ऐतिहासिक संपत्ति हैं और इन पर किसी और का अधिकार नहीं हो सकता।
मलाला के पिता ने भी ये बात गोपनीय ही रखी है कि मलाला के कानों तक ये झुमके आख़िर कैसे पहुंचे। हालाँकि, मुजाहिदीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने काबुल संग्रहालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार की प्राचीन ऐतिहासिक वस्तुओं, मूर्तियों, आभूषणों, हस्तलिखित पांडुलिपियों, पुस्तकों और अन्य दस्तावेजों को लूट लिया था।
अब सवाल यह है कि मलाला यूसुफजई रानी सोराया के झुमके की मालकिन कैसे बनीं? क्या ये झुमके मलालाई को किसी ने तौहफ़े के रूप में दिए हैं। क्या ऐसा करने वाले वो लोग हैं जो काबुल संग्रहालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राचीन और ऐतिहासिक कलाकृतियों की लूट में शामिल थे? या ये भी हो सकता है कि काबुल के संग्रहालय से अन्य कीमती ऐतिहासिक सामान के साथ-साथ इन बालियों की भी काला बाज़ारी हुई हो?
पश्तूनों की माँग है कि मलाला परिवार को इसका खुलासा करना चाहिए कि मलाला को ये बालियां कैसे मिलीं। अगर उन्होंने इसे कहीं से इस तरह से ख़रीदा भी है तब भी वे मलाला परिवार की निजी सम्पति नहीं बन जाती। अफ़ग़ानों का कहना है कि यह सरासर अपराध है और इन बालियों को जल्द से जल्द अफ़ग़ान यानी तालिबान राष्ट्र को सौंप दिया जाना चाहिए।