कुछ तो बात है भारतीय संस्कृति में कि हर त्योहार और पर्व किसी न किसी प्रकार प्रकृति से जुड़ जाते हैं। अब साल की शुरुआत के साथ ही सूर्य उत्तरायण में और मकर संक्रांति का त्योहार आ गया। मकर संक्रांति, पोंगल, बीहू, खिचड़ी या माघी इसे जो भी पुकारें, हर त्योहार हमें प्रकृति के साथ रहने के महत्व को थोड़ा और समझा देता है। सूर्य की पूजा हो या पतंग का आसमान के साथ प्रेम, सब इस महत्व को ही रेखांकित करते हैं।
आज पतंग उड़ाने का दिन है, इसका भान शायद हवा को भी है जो मध्यम बयार के साथ हमारी पतंग का साथ देती थी। रेत उड़ा कर हम हवा की दिशा तय करते और फिर पतंग को एक बच्चे से छुट्टी (15-20 मीटर की दूरी से पतंग को हवा में ऊपर उछालना) दिलवा दी जाती। इसके बाद क्या, बस पतंग दूर आसमान से मिलने पहुंच जाती। ऐसा लगता कि एक वर्ष के अंतराल के बाद अपने प्रेमी से प्रेमिका का मिलन हो रहा हो। ऊपर एक प्रेम कहानी चलती और नीचे हम उसके दर्शक ‘वो काटा’ के उद्गारों के साथ इस मिलन को और रोमांचक बनाते रहते थे।
इस रोमांच के बीच बालपन में तो कभी ध्यान ही नहीं गया कि मकर संक्रांति का महत्व पतंग तक सीमित नहीं है बल्कि इसके सांस्कृतिक और प्राकृतिक मूल्य उसके आगे दूर तक जाते हैं। मकर संक्रांति देश के अधिकांश हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाई जाती है। दक्षिण के पोंगल, पंजाब में माघी और गुजरात में उत्तरायण, उत्तराखंड में घुघुती, केरल में मकर विलक्कु, आंध्र में संक्रांति एवं असम में माघ बिहू या भोगली बिहू कहते हैं। सभी आयु वर्गों के प्रतिनिधित्व वाला त्योहार है। बच्चों के लिए पतंग, माता-बहनों के लिए पूजा दान-दक्षिणा तो किसानों के लिए पहली फसल की पूजा और सभी के लिए गंगा स्नान।
मकर संक्रांति वैसे सौर चक्र पर आधारित त्योहार है। सूर्य नारायण इस दिन मकर राशि में उत्तरायण के जरिए प्रवेश करते हैं और इसी से एक माह से बंद शुभ कार्य भी शुरू हो जाते हैं। यानी इस दिन मलमास की समाप्ति हो जाती है। मलमास की समाप्ति पर सबसे अधिक महत्व है गंगा स्नान और दान का। दरअसल, मकर संक्रांति के दिन ही मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी इसलिए इस दिन स्नान का महत्व बहुत अधिक है। सर्द हवाओं के बीच ठंडे-ठंडे पानी में स्नान करने के बाद जो श्रद्धालु दान-दक्षिणा करते हैं वो पुण्य भागी होते हैं।
उत्तरायण को हमारे यहाँ नदी-घाटों पर दिखाई देता है, जिसमें श्रद्धालु सूर्य को नमस्कार कर पानी में डुबकी लगाते हैं और इस श्रद्धा के साथ बाहर आते हैं कि मां गंगा और सूर्य नारायण उनके पथ को सही दिशा में प्रकाशित करेंगे। उत्तरायण में प्रकाशित होने के साथ ही सूर्य से प्रेरणा लेकर इस दिन प्रकाश का दान किया जाता है, अर्थात शनि देव को दीप अर्पण किया जाता है। त्योहार के महत्व और कार्य मौसम के अनुरूप ही बनाए गए हैं, जिसमें सर्द मौसम में जरूरतमंदों को मंगलकामनाओं के साथ गुड़, घी, कंबल और वस्त्रों का दान किया जाता है।
सुबह-सुबह स्नान और दान के बाद बारी आती है पतंग की। पतंग उडाने का धार्मिक कारण तो ये है कि भगवान श्रीराम ने ये परंपरा शुरू की थी और इसका शारीरिक महत्व ये है कि उत्तरायण का सूर्य शरीर के लिए औषधि की तरह कार्य करता है। त्वचा व हड्डियों के लिए इसकी रोशनी बहुत फायदेमंद होती है इसलिए खुले मैदान और छतों पर पतंग उड़ाई जाती है। साथ ही पूरे परिवार के साथ त्योहार का आनंद लेने का ये अद्भुत अवसर है।
पतंगबाजी की देश में कई प्रतियोगिताएं भी होती हैं। वैसे पतंगबाजी भारत में ही नहीं बल्कि चीन में भी काफी प्रचलित हैं। वहाँ भी हर वर्ष पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं होती हैं जिसमें कई आकार की पतंगे उड़ाई जाती है। चीन के ‘काइट फेस्ट’ में भाग लेने के लिए देश दुनिया से लोग आते हैंं। जापान में भी पतंगबाजी बड़े स्तर पर की जाती है। जापान के हमामात्सू के शिजुका प्रान्त में पतंग उत्सव मनाया जाता है जिसमें नीला आसमान विभिन्न रंगों से भर जाता है। जापानी लोगों में प्राचीन मान्यता है कि पतंग की डोर वो जरिया है जो पृथ्वी को स्वर्ग से मिलाती है।
भारत विविधताओं से भरा देश है लेकिन संस्कृति के मूल में बसे सिद्धांत और त्योहार एक ही है। देश का अलग-अलग हिस्सा मकर संक्रांति को अलग-अलग नाम देकर मनाए लेकिन परंपराएं एक ही है। ये पूरे देश में शुभ कार्यों की शुरुआत लेकर आता है और सबसे महत्वपूर्ण ये किसानों के लिए है जो फसलों के आगमन का जश्न मनाते हैं। भारत से लेकर नेपाल तक फसल आगमन की खुशी मनाई जाती है। फसलों की पूजा की जाती है। किसान इस दिन अपनी गाय-बैल, फसल और खेतों की पूजा करते हैं और उनको तरह-तरह का भोजन खिलाते हैं।
देश के हर हिस्से में मनाए जाने वाला ये सांस्कृतिक पर्व कहीं एक दिन चलता है तो कहीं 3-4 दिन तक मनाया जाता है। परंपराएं करीब-करीब समान ही रहती है। प्रकृति को पूजने और धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए मकर संक्रांति से अच्छा दिन नहीं हो सकता जब देश का अधिकांश हिस्सा सूर्य की गोद में पतंग उड़ा रहा हो, किसान खेत पूज रहे हों और नदी-घाटों पर माताएं दान कर रही हो।
इसी पर्व पर सूर्य को प्रणाम करते हुए द पेंफलेट परिवार की ओर से आप सभी को मकर संक्रांति की शुभकामनाएं!