शक्तिशाली, विध्वंसक, भीषण योद्धा एवं भावुक प्रेमी महादेव शिव की बारात कैलाश से हिमालय की राजकुमारी पार्वती को ब्याहने निकली तो सृष्टि का कण-कण इसमें सम्मिलित हो गया। यह एक विशाल बारात थी। भगवान शिव नंदी पर सवार होकर दूल्हा बने तो बारातियों में त्रिदेवों की शान भगवान ब्रह्मा और विष्णु तो स्वाभाविक साथ थे ही, बाकी बारातियों में शामिल हुए भूत, राक्षस, नागा, देवता, पर्वत, नदियां, प्रकृति, जीव–जंतु और वह सभी प्राणी जो सशरीर आकार ले सकते हैं।
आज शिवरात्रि है और शिवभक्त अपने आराध्य को मना रहे हैं।
आज शिवरात्रि है और शिवभक्त अपने आराध्य को मना रहे हैं। हिंदू देवताओं में सबसे सरल ह्रदयी एवं भयंकर विध्वसंकर्ता के रूप में शिव भगवान पूजनीय हैं। इनकी दो रूपों में पूजा की जाती है, एक शिव भगवान की सप्राण मुर्ति की, दूसरा शिवलिंग की जो कि ऊर्जा का स्त्रोत माना गया है। साथ ही किसी भी रूप में भगवान शिव अकेले नहीं होते हैं। उनके साथ उनका संपूर्ण परिवार होता है। वो अर्द्धनारीश्वर का आधा अंग हैं और उन्हें पूरा करने के लिए उनकी भार्या उनके साथ रहती हैं। नंदी के रूप में उनकी सवारी हमेशा सेवा में उपस्थित रहती है। उनके दो गुणी पुत्रों के साथ ही उनके गले में वासुकि, माथे पर च्रंदमा, जटाओं में मां गंगा निवास करती हैं। शायद यही कारण है कि भगवान शिव सभी के प्रिय हैं।
वे श्मशानवासी कहलाते हैं तो उनका निवास कैलाश पर भी है। वे राक्षसों की प्रार्थनाएं भी सुनते हैं तो भूतों के भी प्रिय हैं। मां गंगा और चंद्रमा को सरंक्षण देने वाले शिव प्रकृति के देवता हैं। समाधि एवं योग का ज्ञान देनेवाले आदियोगी हैं। भयंकर नृत्य के लिए विख्यात नटराज महान नर्तक हैं। आंखों में अग्नि को वश में रखते हैं और जटाओं में जल को। वह विनाश के देवता कहलाते हैं पर हैं सबसे शांत, सरल ह्रदय इसलिए भोलेनाथ भी नाम मिला है।
देखें तो जीवन का ऐसा पहलू मिलेगा ही नहीं जहाँ भगवान शिव की स्वीकार्यता नहीं हो। वे कण-कण में समाहित हैं। शिव का अर्थ ही शाश्वत है। हर जीव की संरचना में वे समाहित हैं इसलिए उनके विरुद्ध प्रोपगेंडा फैलाने वाले वामपंथी अक्सर तथ्यों से छेड़छाड़ करते नजर आते हैं। आपको याद होगा पवित्र कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में मांस के प्रतिबंध लगाने पर वामपंथियों ने झूठे तथ्यों से भगवान शिव को बाह्मणवाद से ग्रसित होकर मांसाहार का त्याग करना बताया था। ब्राह्मणवाद और शिव को जोड़कर वो हमेशा की तरह वर्ण व्यवस्था को लक्ष्य बनाना चाह रहे थे पर उन्हें पहले शिव को पढ़ लेना चाहिए जो किसी वर्ण, प्रजाति एवं आकारों में बंधे नहीं हैं और जो उन्हें पूजते हैं वो ये जानते हैं।
भगवान शिव नियमों से परे माने जाते हैं। वो सबसे सुंदर हैं पर शरीर पर भस्म लगाते हैं। पारंपरिक देवताओं की तरह वे स्वर्ण आभूषणों से आभूषित नहीं हैं पर उनकी स्वीकार्यता हर वर्ग में है। इसी स्वीकार्यता को समाप्त करने के लिए विरोधियों द्वारा जमकर नरैटिव भी चलाया जाता है पर दुखद है कि वो वर्ण व्यवस्था, धार्मिक मान्यताओं में भेदभाव को इंगित कर सकें, ऐसा उन्हें कुछ मिलता नहीं है।
ज्यादातर ज्योतिर्लिंग मन्दिरों पर विदेशियों ने किए थे हमले
भगवान शिव और उनका पूजनीय स्थल हमेशा से ही विरोध का केंद्र रहे हैं। समाज में व्याप्त उनके दर्शन को समाप्त करने के लिए उनके मंदिरों को हमेशा से ही निशाना बनाया है। मुगल आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए 60,000 से अधिक मंदिरों में शिव मंदिरों की दीवारें सबसे अधिक दिखाई देती हैं। बात सोमनाथ की हो या काशी विश्वनाथ, मुगल आक्रांताओं को भान था कि शिव समाज के हर वर्ग को संगठित रखते हैं और उनकी इसी ऊर्जा एवं शक्ति पर प्रहार करने की आवश्यकता है।
ये मात्र मुगलकाल तक सीमित नहीं है। वर्तमान में भगवान शिव और उनके मंदिरों के विरुद्ध जिस प्रकार का दुष्प्रचार सामने आया वो सोचने पर विवश कर देता है कि क्या हिंदुओं के देवी और देवताओं के विरुद्ध बयानबाजी की स्वतंत्रता ही धर्मनिरपेक्षता कहलाती है?
ज्ञानवापी प्रकरण तो सभी के ध्यान में होगा। ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में जो शिवलिंग मिला था उस स्थान पर बाबा विश्वनाथ के अविमुक्त रूप में स्थापित होने का प्रमाण है। इतिहास में इसके सबूत व ‘मा-असीर-ए-आलमगीरी’ नाम की पुस्तक में मिलता है। यह पुस्तक औरंगज़ेब के दरबारी लेखक सकी मुस्तईद ख़ान द्वारा 1710 में लिखी थी। साथ ही इसी किताब में उस शाही फरमान का उल्लेख है, जिसमें औरंगज़ेब ने विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए जारी किया था।
ज्ञानवापी – शिव जिसमें जल बनकर रहते हैं
इसके बाद भी ज्ञानवापी में शिवलिंग के विरोध में कैसे वामपंथियों एवं धर्म विरोधियों द्वारा हिंदू देवता के प्रति अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया था। विडबंना ये है कि इन्हीं विरोधियों द्वारा भगवान शिव की भर्त्सना करने के बाद उन्हें अपना बनाने के लिए नई-नई कहानियों का प्रचार भी किया जाता है। हाल ही में मुस्लिम नेता द्वारा कहा गया कि ॐ ही अल्लाह है और देवभूमि में स्थित हिंदू तीर्थ बद्रीनाथ उनके मुस्लिम प्रीचर बदरुद्दीन शाह हैं। अगर उनकी भगवान शिव में इतनी आस्था हो गई है तो क्यों न जहाँ-जहाँ शिवलिंग के प्रमाण मिले हैं वो वहाँ उनके ऊपर जलाभिषेक करके नतमस्तक हो जाएं।
हालाँकि ये वर्ग नतमस्तक नहीं होता, मात्र सर्वधर्म सभाओं में स्वनिर्मित ‘तथ्यों’ पर भ्रमित करता है। ये कहते हैं कि दुनिया में पैदा होने वाला हर व्यक्ति मुसलमान है। इस पर मात्र इतना कहा जा सकता है कि हिंदू धर्म ये निर्देशित करता है कि कण-कण शंकर हैं। दुनिया नहीं, ब्रह्मांड में उपस्थित अंधेरा भी शिव का अंग है। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग एक ब्रह्मांड का प्रतीक है और देश में उनकी संख्या 12 हैं। शिव से ही धर्म भी हैं और शिव से प्रलय भी। ऐसे में कभी एडम-ईव को शिव-पार्वती बताकर ईसाई बनाने वाले और ॐ को अल्लाह बनाकर उनका इस्लामीकरण करने वाले कहीं इस मसोस के साथ तो नहीं जी रहे कि शिव उनके देवता नहीं हैं।
यह भगवान शिव की नहीं, स्वयं की स्वीकार्यता के रूप में अधिक है। शिव के नाम से वो समाज में स्वयं का स्थान ढूँढ रहे हैं क्योंकि शिव सभी वर्गों में सर्वमान्य हैं।