महाराष्ट्र के रत्नागिरी में एक सभा को संबोधित करते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने विवादित बयान दिया। सभा में ठाकरे ने कहा, “क्या देश को आजादी गोमूत्र छिड़कने से मिली थी? सिर्फ गोमूत्र छिड़का और आजादी मिल गई ऐसा तो कुछ नहीं हुआ। स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी जब जाकर हमें आजादी मिली थी।”
इस दौरान चुनाव आयोग द्वारा शिंदे धड़े को ‘धनुष और तीर’ चिह्न देने के आदेश पर भी उद्धव ठाकरे ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा कि शिवसेना का नाम और इसका प्रतीक चुनाव आयोग द्वारा छीन लिया गया है। चुनाव आयोग को कहिए कि अगर उन्हें मोतियाबिंद नहीं है तो आकर देखे कि वास्तविक शिवसेना कौन है। शिवसेना की स्थापना मेरे पिता द्वारा की गई थी चुनाव आयोग के पिता के द्वारा नहीं। साथ ही उद्धव ने शिंदे और उनके समर्थकों पर ‘धनुष और तीर’ प्रतीक की चोरी करने का इल्जाम भी लगाया।
सभा में ठाकरे ने कहा कि; ‘धनुष और तीर’ के चिह्न के साथ जो भी आपसे वोट मांगने आता है वो चोर है। आप लोग ‘धनुष और तीर’ लाओ और मैं मशाल लेकर आऊंगा। मुझे जो चाहिए वो चुनाव आयोग तय नहीं करेगा। यह जनता द्वारा तय किया जाएगा।
कपिल सिब्बल का जिक्र करते हुए ठाकरे ने बताया कि; उनको (कपिल सिब्बल को) हमारी चिंता है। उन्हें जीत हार की चिंता नहीं रही वह कोर्ट में बस इस बात की चिंता कर रहे थे कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा होगी या नहीं।
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उद्धव ठाकरे ने सभा में भाजपा पर देश के महानुभावों को सम्मान देने पर भी निशाना साधा और कहा कि भाजपा ने सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और बाला साहेब ठाकरे जैसे हस्तियों को चोरी कर लिया है। उद्धव का कहना है कि सरदार पटेल ने आरएसएस पर बैन लगाया था फिर भी उन्होंने पटेल को ‘चुरा’ लिया और ऐसा ही सुभाष चंद्र बोस एवं बाला साहेब ठाकरे के साथ किया। उद्धव ठाकरे ने भाजपा को चुनौती दी है कि वो प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट मांगे और उसमें शिवसेना एवं ठाकरे साहब की तस्वीर का इस्तेमाल न करे।
बता दें कि 17 फरवरी, 2023 को चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुट को पार्टी का नाम “शिवसेना” और प्रतीक “धनुष और तीर” आवंटित किया था। इस पर शिंदे और उनके समर्थकों ने फैसले का स्वागत किया तो उद्धव ठाकरे के गुट ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का फैसला किया है।
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग का यह फैसला विचारधारा और पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को ध्यान में रखकर दिया गया है। चुनाव आयोग के फैसले ने अन्य वंशवादी पार्टियों में हलचल मचा दी थी। आयोग द्वारा अपने आदेश में बताया गया कि शिवसेना पार्टी का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है और बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई है।
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आयोग ने सलाह दी है कि सभी राजनीतिक दल लोकतांत्रित लोकाचार और आतंरिक लोकतंत्र के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान करे। साथ ही अपनी संबंधित वेबसाइटों पर नियमित रूप से पार्टी के कामकाज का खुलासा करें। इनमें संगठनात्मक विवरण, चुनाव करवाना, संविधान की प्रति एवं पदाधिकारियों की सूची उपलब्ध करवाना शामिल है।
ज्ञात हो कि बीते माह ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे और शिवसेना के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुटों ने पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न पर अपने दावों के समर्थन में अपने लिखित बयान चुनाव आयोग को सौंपे थे जिसके बाद यह फैसला सामने आया था।
इससे पहले वर्ष 2022 में शिवसेना ने उद्धव ठाकरे को महा अघाड़ी सरकार से इस्तीफा देने के लिए कहा था। इसके बाद शिंदे ने राज्य में भाजपा की मदद से अपनी सरकार बनाई थी।