ब्राज़ील में राष्ट्रपति पद हेतु पिछले एक माह से चली आ रही चुनावी जद्दोजहद अब समाप्त हो गई है। रविवार, 30 अक्टूबर को चुनावी परिणाम जारी किए गए। इस परिणाम के अनुसार वर्ष 2003 से 2010 तक ब्राज़ील के राष्ट्रपति रहे लुईज इनाशियो लूला डी सिल्वा एक बार फिर ब्राज़ील के राष्ट्रपति होंगे। उन्होंने निवर्तमान राष्ट्रपति जयेर बोल्सोनारो को एक कड़े मुकाबले में हरा दिया है।
लूला डी सिल्वा ने 50.9% मत हासिल किए। वहीं, निवर्तमान बोल्सोनारो को 49.17 % मत मिले। इससे पूर्व ,पहले राउंड की वोटिंग में कोई भी उम्मीदवार तय 50% के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया था।

ब्राजील के संविधान के अनुसार, चुनाव जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 50% वोट हासिल करने होते हैं। ऐसा न होने पर टॉप 2 उम्मीदवार के बीच वोटिंग का द्वितीय चरण होता है। 76 वर्षीय, लूला डी सिल्वा का फिर से राष्ट्रपति बनने का यह सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
लूला डी सिल्वा एवं विवादों से उनका नाता
वामपंथी विचारों के समर्थक लूला डी सिल्वा ने शुरुआती जीवन में फैक्ट्री के एक मेटल वर्कर के तौर पर काम किया। फिर यहीं से वे कामगारों के नेता के रूप में उभरे और इसके बाद उन्होंने वर्कर्स पार्टी की स्थापना की। पार्टी की मदद से वह वर्ष 2002 में पहली बार ब्राज़ील के राष्ट्रपति बने।
2006 से 2010 के कार्यकाल के लिए पुनः चुने गए। चूँकि ब्राज़ील के संविधान के अनुसार लगातार तीसरा कार्यकाल मिलना सम्भव नहीं था इसलिए उन्हें पद से हटना पड़ा।
वर्ष 2016 की शुरुआत में, लूला को ब्राज़ील सरकार में चीफ ऑफ़ स्टाफ नियुक्त किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। जुलाई 2017 में, लूला को मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराया गया और 12 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई।
इसके बाद वर्ष 2021 में 580 दिन की सजा काटने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था जिसके कारण वर्ष 2022 में चुनाव लड़ने की राह उनके लिए साफ हो पायी।
जयेर बोल्सोनारो के हारने के कारण
जयेर बोल्सोनारो के हारने के पीछे के कारणों को देखें तो राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा हार के तीन मुख्य कारण बताए जा रहे हैं:-
- कोरोना महामारी के समय बोल्सोनारो सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन में नाकाम रही थी। वर्ष 2020 एवं 2021 के दौरान ब्राज़ील में कोरोना वायरस के कारण 6 लाख 80 हज़ार लोगों की जान चली गई थी, जिसके बाद से ही वह आलोचकों के निशाने पर थे।
- बताया जाता है कि अमेज़न के जंगल, जो वैश्विक पर्यावरण में अहम भूमिका निभाते हैं, जयेर बोल्सोनारो के कार्यकाल में बड़े पैमाने पर अवैध कटान का शिकार हो रहे थे जिससे स्थानीय लोगों में नाराजगी बढ़ रही थी।
- एक कारण ब्राज़ील की कमजोर होती अर्थव्यवस्था को भी माना जा रहा है। बढ़ती महँगाई और इसके प्रभाव से बढ़ रही भुखमरी वोटरों के बीच एक चुनावी मुद्दा था।
इन बड़े चुनावी मुद्दों के बावजूद ऐसा नहीं था कि जयेर बोल्सोनारो को बड़ी हार का सामना करना पड़ा हो। उन्हें भी आबादी का लगभग 50% समर्थन प्राप्त हुआ और मामूली अंतर से ही हार का सामना किया। ऐसे में देखना यह होगा कि नव निर्वाचित राष्ट्रपति लूला आने वाली चुनौतियों से कैसे निपटेंगे?
नव निर्वाचित सरकार के समक्ष चुनौतियाँ
लूला डी सिल्वा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती एक विशेष विचारधारा के समर्थक के तौर पर आ सकती हैं। चूँकि जहाँ पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो को दक्षिणपंथ का नेता माना जाता था, वहीं लूला वामपंथ के अग्रणी समर्थकों में से एक हैं और यह उनके भाषणों में भी दिखता है। ऐसे में दो ध्रुवों में बंटे देश की सत्ता को संभालना आसान नहीं होगा।
कोरोनाकाल के बाद जूझती अर्थव्यवस्था एवं अमेज़न के जंगलों से जुड़ी पर्यावरण नीतियां भी ब्राज़ील की नई सरकार के लिए एक दूसरी बड़ी चुनौती होगी। वहीं, नव नियुक्त सरकार वैश्विक राजनीति में किस प्रकार समन्वय बना पाती है, यह देखने योग्य होगा। आपको बता दें ब्राज़ील भी ब्रिक्स समूह में साझेदार है। ब्रिक्स (BRICS) उभरती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के एक संघ का शीर्षक है। इसके घटक राष्ट्र ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं।
ब्रिक्स पर क्या प्रभाव होगा?
वैश्विक राजनीति में बढ़ती उठापठक का प्रभाव ब्रिक्स समूह में भी देखने को मिल सकता है। नव नियुक्त राष्ट्रपति लूला को विश्व के सभी राष्ट्रप्रमुखों ने बधाई दी है जिसमें रूस एवं भारत भी शामिल है। लूला डी सिल्वा के भारत के साथ अच्छे संबध रहे हैं पर यह तब की बात है जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार नहीं थी। वर्ष 2010 में तत्कालीन मनमोहन सरकार द्वारा लूला को इंदिरा गांधी पुरस्कार भी मिल चुका है।
वहीं, ब्राज़ील में वामपंथी सरकार के आने से चीन का ब्राज़ील की ओर अधिक झुकाव देखने को मिल सकता है जिसके बाद चीन, ब्राज़ील एवं रूस के गठजोड़ के रूप में एक नए ध्रुव की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है।
दूसरी ओर वर्तमान में सबसे बड़े मुद्दे रूस-यूक्रेन युद्ध पर ब्राज़ील की नई सरकार का रुख ब्रिक्स समूह के लिए अहम होगा। इससे पहले ब्राज़ील की पूर्व सरकार ने इस मामले पर तटस्थ रुख ही अपनाया था। जिस पर पुतिन ने ब्राज़ील की तारीफ़ की थी।