वर्ष, 2021 में राजस्थान के बुंदी जिले में स्थित कोचरिया गांव को आजादी के 75 वर्षों के बाद बिजली कनेक्शन उपलब्ध हुआ तो गाँव वालों ने उस दिन को दूसरी दिवाली घोषित कर दिया। सोचने वाली बात है। 75 वर्ष बहुत लंबा समय होता है, देश के हर घर तक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए। फिर भी ऐसे लोग देश में है जिन्हें वर्ष, 1947 के बाद आजादी और घोषणाओं के अलावा कुछ नहीं मिला।
यह दुखद इसलिए भी है क्योंकि सत्तारूढ़ सरकारों ने अपनी चुनावी घोषणापत्रों में “गरीबी हटाओ” जैसे क्रांतिकारी नारे दिए थे। हर 5 वर्ष में होने वाले चुनावों के अवसर पर दल के घोषणापत्र में एक ही वादा किया जाता रहा कि अगले 3 वर्षों में हर घर में बिजली होगी। चुनाव खत्म तो घोषणा भी ठंडे बस्ते में चली जाती, पर एक बहुत बड़ी जनसंख्या के भाग्य में 3 वर्ष की यह अवधि कभी समाप्त नहीं हुई।
ऐसे में आज जब बुद्धिजीवी पूछते हैं कि वर्ष, 2014 के बाद राजनीति में ऐसा कौन सा बदलाव आ गया जो लोग कह रहे हैं कि यह नए भारत का उदय है, तो इसका सीधा जवाब यह है कि वर्ष, 2020 में, यानि मात्र 6 वर्षों के कार्यकाल में मोदी सरकार ने देश के 97 प्रतिशत क्षेत्रों को विद्युतीकृत कर दिया। भारत आवासीय ऊर्जा खपत सर्वेक्षण (IRES) के अनुसार, 96 प्रतिशत गांव तथा 99 प्रतिशत शहर विद्युतीकरण के अंतर्गत आते हैं।
यह मात्र एक उदाहरण हुआ अच्छे शासन का। इस बात का कि भारत जैसे विशाल देश में सेवाएं किस प्रकार और किस गति से उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। बीते 8 वर्षों में राष्ट्र ने शासन और प्रशासन का ऐसा रूप देखा है जो पहले नहीं देखा था। राष्ट्र ही नहीं, विपक्ष भी यह देख रहा है और उसे यह भी पता है कि पिछले आठ वर्षों में देश की चुनावी राजनीति में भी परिवर्तन आ गया है। अब मात्र रेवड़ी और बिल माफ करके चुनाव जीतना संभव नहीं है। आज अखिलेश यादव 80 की 80 सीटें जीतने का दावा तो करते हैं पर उन्हें भी पता है कि यह एक खोखला दावा है। वर्तमान सरकार द्वारा जो कार्य किए गए हैं और अंत्योदय की भावना से सेवाओं का जैसा प्रसार हुआ है, उसके जवाब में उनके पास कुछ नहीं है।
वर्ष, 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे उस समय देश के चुनावी मुद्दों में बिजली, पानी, गरीबी और मंहगाई का शोर मचा हुआ था। अब इस बात का श्रेय मोदी सरकार को देना ही होगा की उन्होंने विकास के नए रास्ते खोल कर जमीनी राजनीति को ऊपर उठा दिया है। 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर होगा। शायद यही कारण है कि राजनीतिक दलों की सांसे फूल रही हैं। राजनीतिज्ञ मोदी का जवाब उनके पास शायद जातिवाद वग़ैरह की शक्ल में हो पर प्रधानमंत्री मोदी का जवाब आज भी उनके पास नहीं है और यह मोदी सरकार की सफलता को दर्शाता है।
आखिर यह नए भारत की तस्वीर क्या है? विदेश में बैठे प्रोपगेंडा संगठनों को भी भारतीय लोकतंत्र से भय क्यों लगने लगा है? भारत में किस दल की सरकार हो, विदेश में बैठे लोग इस बात से इतना सरोकार क्यों रख रहे हैं?
इन प्रश्नों के उत्तर के लिए देश की नीतियों और उनके क्रियान्वयन पर नजर डालना आवश्यक है।
सर्वप्रथम तो भारत ने पश्चिम का पिछलग्गू बनने से इंकार कर दिया है। वर्ष, 2014 के बाद से भारत ने जिन शब्दों को नई पहचान दी वो है- आत्मनिर्भरता, विरासत का सम्मान एवं अंत्योदय यानि समाज के आखिरी व्यक्ति का कल्याण। यह सब भाजपा की विचारधारा पर भी आधारित है जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद को स्थान प्रदान करती है जिसमें राष्ट्र निर्माण के लिए अंत्योदय का उद्धार अनिवार्य बताया गया है।
सागर परिक्रमाः परंपरागत आर्थिक क्षेत्र को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास
मोदी सरकार के लिए विपक्ष द्वारा एक धारणा सामने रखी गई कि यह उद्योगपतियों की सरकार है। हालाँकि इस सरकार की योजनाओं और कार्यों पर नजर डालें तो इनमें यह सुनिश्चित किया गया है कि गरीब का कल्याण हो और सरकारी कोष का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे। सरकार ने बेशक ओद्यौगिक क्षेत्र में निवेश किया है जो आवश्यक भी है पर इसके साथ ही पारंपरिक आर्थिक क्षेत्रों का विकास भी हो रहा है।
लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने हरित, श्वेत एवं नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ाने पर जोर दिया तो वह समग्र भारत को आगे रख कर दिया। किसानों के लिए सम्मान निधि योजना, कृषि बीमा योजना, किसान बीमा पत्र, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, सागर परिक्रमा एवं पीएमएमएसवाई परियोजनाओं के जरिए कृषि, दुग्ध एवं मत्सय क्षेत्र से जुड़े लोगों को सीधा फायदा पहुँचाया जा रहा है। कल्याणकारी योजनाओं में श्रमिकों को फेरी-ठेला लगाने वालों का ध्यान भी रखा गया है जिनके लिए पीएम स्वनिधि योजना चलाई जा रही है।
सुकन्या योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना सहित कई योजनाएं हैं जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में समान विकास को बढ़ावा दे रही हैं।
सरकार का सम्मान और विकास के मुद्दों की मजबूती मात्र योजनाओं से नहीं उन कठोर निर्णयों से आई है जो तत्कालीन सरकारें वोट बैंक के कारण नहीं ले पाई थी। सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में बड़े निर्णय लिए चाहे वो गुड्स एंड सर्विस टैक्स हो या विमुद्रीकरण, निजी बैंकों का विलय करके भी सरकार ने एनपीआर कम करने की दिशा में काम किया। मुद्रा बैंक योजना, मेक-इन-इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं के जरिए युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना आर्थिक विकास की दिशा में ऐतिहासिक कदम था। जिसमें एक वर्ष में 19.72 करोड़ बैंक अकाउंट खोले गए।
उल्लेखनीय है कि जन-धन खातों की घोषणा पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से की थी। विशेषज्ञों ने कहा कि यह लाल किले से करने लायक घोषणा नहीं है। खाते खोलना तो बैंकों का काम है। यह प्रधानमंत्री मोदी का अपनी योजनाओं और आर्थिक विचार पर विश्वास ही था कि उन्होंने ऐसी टिप्पणियों की कभी चिंता नहीं की।
दरअसल प्रधानमंत्री ने इन भ्रांतियों को तोड़ते हुए हर वर्ष लाल किले से देश के अंतिम व्यक्ति की बात की। उन्होंने लाल किले से महिलाओं के उत्थान की बात की, आत्मनिर्भरता की बात की, देश को पंच प्रण दिए साथ ही खिलौने के व्यापार का उल्लेख कर वोकल फॉर लोकल का आह्वान किया। दरअसल, प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने संबोधन को देश के आम आदमी के विकास से सीधा जोड़ दिया है।
मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में कोरोना महामारी एवं वैश्विक युद्ध स्थितियों का सामना किया। इस दौरान भी भारत का विदेश मुद्रा भंडार सम्मानजनक स्तर पर बना रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं का हाल किसी से छिपा नहीं रहा। इस दौर में भारत ने अपने नागरिकों को मुफ्त अनाज एवं स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाकर दुनिया को आपदा प्रबंधन पर बड़ा उदाहरण पेश किया। मात्र अपने लिए ही नहीं बल्कि जरूरतमंद देशों तक वैक्सीन और आवश्यक सामग्री पहुँचाकर भारत ने अपने उस दर्शन, यानी वसुधैव कुटुंबकम, को सम्मानित किया जो वैश्विक मंचों पर आज हमारी पहचान के मूल में है।
देश में चल रही स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत विश्व का सबसे बड़ा हेल्थकेयर प्रोग्राम है। विकासशील राष्ट्र बड़ी जनसंख्या के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवा रहा है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से 80 करोड़ लोगों को भोजन उपलब्ध करवाया जा रहा है। महामारी के बाद भी सरकार सुनिश्चिचित कर रही है कि देश का अंतिम व्यक्ति भूखा न सो पाए।
बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ योजना की शुरुआत पानीपत, हरियाणा से की गई। वो स्थान जहाँ लिंगानुपात सबसे कम था। उसका असर आज यह है कि कई दशकों के बाद देश में लिंगानुपात महिलाओं के फेवर में है। महिला शिक्षा और सुरक्षा के प्रति सरकार ने कई योजनाओं का निर्माण किया। सुकन्या समृद्धि योजना ऐसी ही विकसशील योजना का हिस्सा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा क्षेत्र और सरकार के संगठन में भी महिलाओं को अवसरों का लाभ प्रदान किया गया है।
बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ के दौरान पीएम मोदी ने आह्वान किया था कि बेटी के जन्म पर माता-पिता द्वारा 5 पौधे लगाए जाएं। प्राकृतिक संपदा की रक्षा की बात हो तो सरकार द्वारा नमामि गंगे, पर्यावरण वाहिनी योजना, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना जैसी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान के नेतृत्व ने यह दर्शाया है कि आम जन को अगर सरकार की योजनाओं का हिस्सा बना दिया जाए तो सफलता सुनिश्चित हो जाती है।
नरेंद्र मोदी विश्व के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। यह उनके नेतृत्व क्षमता के कारण तो है ही साथ ही उनके दूरदर्शी निर्णय भी इसमें मुख्य भूमिका निभाते हैं। आर्थिक सुधारों में लिए गए कदमों पर सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था। हालाँकि एनडीए सरकार के दौरान भारत सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है। आज देश दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और देश अगले 25 वर्षों में विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है।
प्रधानमंत्री यह जानते हैं कि अंत्योदय के लिए किन योजनाओं का निर्माण होना है साथ ही उनका क्रियान्वयन किस स्थान से किया जाना चाहिए। ऐसे में वह अक्सर लोगों के बीच नजर आते हैं। उत्तर पूर्वी क्षेत्र हो या दक्षिण जनमानस से उनकी सीधा संपर्क उन्हें आज भी जमीनी नेता के रूप में स्थापित किए हुए है। पिछले 8-9 वर्षों में देश में डिजिटल क्रांति आई है। ठेले से लेकर बड़े व्यापारिक लेनदेन के लिए यूपीआई का इस्तेमाल हो रहा है।
पर्यावरण पर शोर मचाने के बजाय गंभीर कार्य कर रहा भारत, CCPI ने सराहा
देश की यूपीआई व्यवस्था को बड़े-बड़े विदेशी संस्थाओं द्वारा अध्ययन किया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वैश्विक मंचों पर भारत को लेकर राय बदली है। इससे कई देश भारत के प्रति अधिक सहयोगी भी हुए हैं तो इसने उस वर्ग में भी हलचल पैदा कर दी है जो भारत को मात्र तीसरी दुनिया का देश बनाए रखना चाहता है। यही कारण है कि कथित रूप से विश्वसनीय रैंकिंग प्रदाता भारत में खुशी के आंकड़े को पाकिस्तान और श्रीलंका से भी पीछे देखते हैं, या यूं कहें कि दर्शाते हैं।
सत्ता छिन जाने से किसे बुरा नहीं लगता? वर्तमान में वैश्विक स्थितियां मल्टीपोलर यानि की बहुध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही हैं। पश्चिमी विकसित देश जो स्वयं को वैश्विक राजनीति एवं अर्थव्यवस्था का नेतृत्वकर्ता समझते थे, आंतरिक कलह और युद्ध की परिस्थितियों में जकड़े हुए हैं। विकासशील अर्थव्यवस्था से मिल रही प्रतिस्पर्धा उनकी पारंपरिक भूमिका को तोड़ रही है। शायद इसी बात की कुंठा समय-समय पर जारी होने वाली विश्वसनीय रैंकिंग में सामने आती रहती है।
हां, विडंबना यह है कि इन्हीं का प्रयोग कर विपक्ष और बुद्धिजीवी सरकार के खिलाफ अभियान चलाते नजर आते हैं। यह विडंबना से अधिक हास्यपद है क्योंकि लोकतंत्र और पारदर्शिता के जो मानक मोदी सरकार ने बीते 9 वर्षों में स्थापित किए हैं उनके विरोध में विपक्ष के पास कुछ नहीं है और वे विदेशी मानकों को अपना हथियार बनाए हुए हैं।
विचारधारा किसी भी राजनीतिक दल के लिए महत्वपूर्ण हथियार हो सकती है। मोदी सरकार ने अपनी विचारधारा के आधार पर योजनाएं बनाई, जनसमर्थन प्राप्त किया और सुशासन का नया तरीका पेश किया। विपक्ष इसका जवाब विरोधी एवं मजबूत विचारधारा के साथ दे सकता है। पर यहाँ समस्या यह है कि देश में विपक्ष के नाम पर दर्जन से अधिक राजनीतिक दल मौजूद हैं और विचारदर्शन नाममात्र भी नहीं।