खेलकूद से पावर बढ़ाओ – जहरीली शराब बर्दाश्त कर लोगे’
बिहार के मंत्री समीर महासेठ का यह बयान छपरा में जहरीली शराब पीने के कारण 30 लोगों की मृत्यु के बाद सामने आया है। इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहरीली शराब के मुद्दे को लेकर विधानसभा में नाराज होकर ‘तू-तड़ाक’ वाली भाषा का इस्तेमाल करते देखे जा चुके हैं।
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बिहार के सारण में जहरीली शराब पीने के कारण अब तक 30 लोगों की जान जा चुकी है और मौत का यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। कई लोगों की आँखों की रोशनी जा चुकी है। बताया जा रहा है कि मशरख और इसुआपुर इलाके में देसी शराब की बड़ी खेप पहुंची थी। जिसका सेवन 50 से अधिक लोगों ने किया था। बताया जा रहा है कि सभी ने 20-20 रुपए में देसी शराब के पाउच खरीदे थे।
इस घटना पर मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार ने कहा “अंग्रेजों के जमाने में भी कानून बनते थे,तब भी कानून टूटते थे। अंग्रेजों ने भी कानून बनाया, लेकिन इसके बाद भी रेप और हत्या हो रही है ना। शराबबंदी भी वैसे ही है। शराब बिक रही है तो पुलिस भी कार्रवाई कर रही है। शराब से मौत तो दूसरे राज्यों में भी हो रही है”
क्या है शराबबंदी कानून?
शराबबंदी कानून यानी बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम, वर्ष 2016 से बिहार में लागू है जिसके तहत बिहार में पूर्ण रूप से शराब पर प्रतिबंध है। हालाँकि इसी वर्ष अप्रैल 2022 में इसमें संशोधन कर इसे लचीला बनाया गया। संशोधन के बाद शराब पीने वालों के पास जुर्माना देकर छूटने का विकल्प दिया गया है। पहली बार शराब पीते पकड़े जाने पर दो से पांच हजार रुपये का जुर्माना एवं जुर्माने की राशि का भुगतान नहीं करने पर 30 दिन तक जेल होगी। यदि कोई व्यक्ति दूसरी बार शराब पीते पकड़ा गया, तो उसको अनिवार्य रूप से एक साल की सजा मिलेगी।
शराब बंदी लागू होने से लेकर अब तक एक विवादित विषय रहा है, बिहार में शराब बंदी लागू हुए 6 वर्ष हो गये लेकिन आज तक व्यावहारिक रूप से इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया।
शराबबंदी क्यों सफल नहीं?
बिहार में शराबबंदी कानून बनने के 6 वर्ष बाद भी शराब की बिक्री एवं खरीदारी चल ही रही है। समानांतर रूप से शराब माफियाओं ने एक नया मॉडल शुरू कर दिया। इसमें मुख्य भूमिका निभाई बिहार के भ्रष्ट प्रशासन ने। पुलिस और अधिकारियों की मिली-भगत से शराब बिकती रही। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस गठजोड़ में शामिल होने के कारण 700 से अधिक कर्मचारियों (पुलिस और उत्पाद विभाग) को बर्खास्त किया जा चुका है।
शराबबंदी की असफलता के पीछे एक अन्य मुख्य वजह है लोगों की आदत। सामाजिक सुधार की बात कहकर सरकार चाहे कितने भी कानून लागू करे पर सच्चाई यह है कि एक बड़ी आबादी अभी भी शराब का सेवन करती है। इसी वर्ष आये नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे के आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं जिसमें बताया गया कि आज भी बिहार के शहरों में 14%, गांव के 15.8% लोग शराब बंदी के बावजूद शराब का सेवन कर रहे हैं।
शराब के प्रतिबन्ध का प्रभाव यह भी पड़ रहा है कि बिहार से सटे पड़ोसी राज्यों के इलाके शराबियों की ऐशगाह बन चुके हैं। बंगाल, उत्तर-प्रदेश में बिहार सीमा पर कई नई शराब की दुकानें और बार खुल चुके हैं। झारखंड के क्षेत्र जो पहले खदानों के लिए प्रसिद्ध थे आज वह शराब के अड्डों के लिए जाने जाते हैं। यहाँ तक कि नेपाल-बिहार सीमा पर भी शराब की दुकानों में बेहताशा वृद्धि हुई है।
क्या कहते हैं आँकड़े?
वर्ष 2022 की बात करें तो बिहार पुलिस के अनुसार जनवरी से जून महीने तक शराबबंदी कानून उल्लंघन करने के आरोप में करीब 60 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया था। वहीं, इस अवधि के दौरान शराब ले जा रहे हज़ारों वाहन भी जब्त किये गए और लाखों अधिक देसी और विदेशी शराब बरामद की गई।
बिहार में देसी शराब का अधिक चलन है। कम दामों पर आसानी से उपलब्ध एवं अधिक नशीली होने के कारण लोग इसका सेवन अधिक करते हैं। देसी शराब को बनाने के लिए इसमें केमिकल का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है जिससे यह जहरीली शराब का रूप ले लेती है।
बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद 6 साल में 1000 से अधिक लोग जहरीली शराब पीने से मर चुके हैं। 6 लाख लोग जेल भेजे गए और केवल शराब से जुड़े मामलों में हर माह 45 हजार से अधिक लोग गिरफ्तार किये जा रहे हैं। इनमें अधिकतर मजदूर एवं गरीब वर्ग शामिल रहता है।
पिछड़े और दलित लोगों के शराब के उपभोग में अधिक मात्रा में शामिल होने की बात स्वीकारते हुए पटना हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि बढ़ते लाखों मामले न्यायपालिका पर बोझ हैं।
शराबबंदी से शराब तो बंद नहीं हुई लेकिन लोगों ने अन्य नशों का सहारा लेना शुरू कर दिया। ड्रग्स, गांजा, चरस की बड़ी खेप बिहार में जब्त की जा रही हैं। नशा मुक्ति केन्द्रो में बड़ी संख्या में युवा भर्ती हो रहे हैं जिन्हे स्मैक की लत लग चुकी है। शराब के आदी हो चुके लोग सस्ते नशों का सहारा ले रहे हैं जिससे अपराध में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है
क्या कहता है अपराध का ग्राफ?
सरकार का शराबबंदी को लागू करने के पीछे बिहार में अपराध कम करना भी एक कारण माना गया था लेकिन तस्वीर बिल्कुल उलट है। बिहार में हर रोज़ अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
NCERB के आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं। यहाँ तक कि घरेलू हिंसा को कम करने के के उद्देश्य से लाई गई शराबबंदी महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को कम करने में कारगर साबित नहीं हो पाई है।
इस मुद्दे पर तेजस्वी यादव का रुख
नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव स्वयं शराबबंदी के विरोध में हैं। बिहार के वर्तमान उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा था कि पुलिस सिर्फ शराब उपभोक्ताओं को गिरफ्तार कर रही है, जबकि असली अपराधी शराब माफिया खुले में घूम रहे हैं। सिर्फ गरीब ग्रामीण या तो मर रहे हैं या गिरफ्तार हो रहे हैं
जहरीली शराब के मुद्दे पर तेजस्वी यादव ट्वीट कर कहते हैं-
“क्या यह सच्चाई नहीं है कि थानों से शराब की बिक्री हो रही है और कमीशन सरकार तक नहीं पहुंच रहा? क्या यह यथार्थ नहीं है कि शराबबंदी के नाम पर मुख्यमंत्री द्वारा की गयी हजारों समीक्षा बैठकों का अभी तक का परिणाम शून्य ही नहीं बल्कि तस्करों को प्रोत्साहित करने वाला ही साबित हुआ है? विगत 3 दिनों में शराब माफिया संग मिल बिहार सरकार द्वारा आपूर्ति की गयी जहरीली शराब से बिहार में 50 से अधिक लोगों की संस्थागत हत्या हुई है। शराबबंदी का ढोंग करने वाले संवेदनहीन मुखिया चुप है क्योंकि मिलीभगत जो है”
बिहार का भविष्य
बिहार में शराबबंदी बुरी तरह से नाकाम प्रतीत हो रही है। सामाजिक सुधार के नाम ऐसा कानून थोपा गया कि जिसके दुष्परिणामों का सरकार द्वारा अनुमान ही नहीं लगाया गया था। ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या यह कानून जल्दबाजी में बनाया गया?
बिहार एक ऐसे तंत्र की कमी से जूझ रहा है जो इस शराबबंदी का पालन करवाने में सफल रहता। सफल होगा भी कैसे जब आए दिन रिपोर्ट दावा करती हैं कि प्रशासन एवं जनप्रतिनिधयों से जुड़ा एक ‘वीआईपी वर्ग’ शराब पीने के लिए बिहार से ‘पलायन’ कर जाता है।
सरकार के नीति निर्माताओं को समझना होगा कि उत्पादन की जड़ों को न खोजकर उपभोग की शाखाएं काटने से इस मुद्दे का हल नहीं निकलेगा। नीतीश कुमार भूल जाते हैं कि वर्ष 1977 में उनके राजनीतिक गुरु कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में शराब बंदी लागू की थी लेकिन यह चंद वक़्त तक भी टिक नहीं सकी। उस वक़्त तो चूहे भी शराब नहीं पीते थे।
ऐसा न हो कि इतिहास से नहीं सीखने वाले स्वयं इतिहास में खो कर रह जाएँ।