लियोनेल स्कालोनी: अर्जेंटीना की जीत का डार्क हॉर्स, जिसे कभी माराडोना ने कहा था ‘नालायक’
एक्स्ट्रा टाइम में मैदान पर भेजे गए राइट बैक मोंटिल अर्जेंटीना के लिए पेनल्टी किक लेने के लिए आगे आ रहे हैं। लुसैल स्टेडियम में मौजूद दर्शक दुआएँ मांग रहे हैं। संपूर्ण विश्व आज दुआ माँग रहा है। गोलपोस्ट पर खड़े हैं फ्रेंच कप्तान व गोलकीपर हूगो लौरिस। यह अब तक के सबसे रोमांचक फाइनल मुकाबलों में से एक है। इस एक मैच ने हम को सब कुछ दिखा दिया है। मोंटिल अगर पेनल्टी किक को गोल पोस्ट के अंदर रखने में कामयाब हो जाते हैं तो अर्जेंटीना इतिहास लिख देगा। रेफरी की व्हिसल, मोंटिल तैयार, लौरिस तैयार!
इसके आगे क्या हुआ हम सब भलीभाँति जानते हैं।
अर्जेंटीना 1986 के पश्चात एक दफा फिर विश्व कप जीत गया। लियोनेल आंद्रेस मेस्सी अर्जेंटीना की हल्की नीली-सफेद अल्बीसेलेस्ते जर्सी पर तीसरे सितारे की शक्ल में सदैव के लिए अमर हो गए। वो सदैव के लिए अमर हो गए लातिन अमेरिकी लोककथाओं में। कर्ज और गरीबी से जूझ रहा देश सब कुछ भूलकर जश्न में सरोबार हो गया। करोड़ों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए। उनकी विश्व विजेता टीम का हर एक खिलाड़ी आज उनका नायक है।
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तमाम अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा। सभी ने इस सब पर बात की, लेकिन जब मोंटिल ने निर्णायक पेनल्टी स्कोर कर इतिहास लिखा था, तब शांति से लुसैल स्टेडियम में अर्जेंटीनी डगआउट में एक शख्स ऐसा भी बैठा था जिसके बारे में ज्यादा बात नहीं की गई। मैं अगर कोई बड़ा खेल पत्रकार होता और उस हसीन रात अगर मैं अपनी आँखों से लुसैल स्टेडियम में इतिहास लिखते देख रहा होता तो मैं दौड़ते हुए इस शख्स की ओर जाता और उसको गले लग कर उसका शुक्रिया अदा करता। उसके पैर छू लेने से भी मैं नहीं हिचकता।
वो शख्स मेरी नजरों में इस जीत का असली नायक था। वह शख्स था- कभी वेस्ट हैम की फ्लॉप साइनिंग कहलाया गया लियोनेल स्कालोनी। लियोनेल स्कालोनी (Lionel Scaloni) ने हर खेल प्रेमी का ख्वाब साकार कर दिया था। लियोनेल स्कालोनी ने आज अर्जेंटीना को अपना तीसरा विश्व कप खिताब जीता दिया था। लियोनेल स्कालोनी ने अंततः मेस्सी को विश्व कप विजेता बना दिया था।

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“यह आदमी ट्रैफिक तक नहीं संभाल सकता, यह नेशनल टीम को कैसे संभालेगा? इसको नेशनल टीम की कमान आखिर कैसे सौंपी जा रही है?”
यह माराडोना के शब्द थे, जब 2018 विश्व कप के पश्चात अर्जेंटीना फुटबॉल फेडरेशन ने लियोनेल स्कालोनी को राष्ट्रीय टीम का अंतरिम कोच बनाने का फैसला लिया था।
अगर आप लियोनेल स्कालोनी की विश्व कप में इस्तेमाल में लाई गई रणनीतीयों का बारीकी से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि क्यों खिताब के मजबूत दावेदारों में गिने जा रहे ब्राज़ील व स्पेन इतने जल्द बोरिया बिस्तर समेट घर लौटने को मजबूर हो गए थे।
ब्राज़ील व स्पेन के पास एक बेहतरीन टीम थी। यहाँ मैं पुर्तगाल को भी गिन लेना ठीक समझूँगा। इनके पास मैदान पर हर पोजीशन पर खेलने के लिए एक अनुभवी स्टार खिलाड़ी मौजूद था। इनकी तुलना में अर्जेंटीना की टीम में कई खिलाड़ी ऐसे थे जो टीम में लगभग अपना पर्दापण कर रहे थे।
2018 में जब स्कालोनी को टीम की कमान सौंपी गई तो उनके सामने कई चुनौतियां थीं। कमजोर गोलकीपर व डिफेंस, एक उम्रदराज टीम, एक भोथरा मिडफील्ड आदि।
स्कालोनी ने टीम पर काम किया। वह सर्वप्रथम अयाला आदि खिलाड़ियों को अपनी कोचिंग टीम में लेकर आए। फिर उन्होंने टीम की कमजोरियों व मजबूत पक्ष का गहन अध्ययन किया।
स्कालोनी ने जीयोवानी लो चेल्सो, पारेडेस व रॉड्रिगो डि पॉल को लेकर अपनी मिडफील्ड तैयार की। वह नामी खिलाड़ियों को बाहर कर अच्छा प्रदर्शन कर रहे व जीत के लिए भूखे युवा खिलाड़ियों को टीम में जगह देने लगे। गोलकीपर की अहम भूमिका के लिए बड़े नामों को दरकिनार कर एमिलियानो मार्टिनेज़ को लाए। डिफेंस के लिए लीचा व कूटी रोमेरो को अनुभवी ओटामेंडी के साथ खिलाना शुरू किया। अटैकिंग मिडफील्डर के तौर पर कई युवा लड़ाकों को मौका दिया।
थियागो अल्माडा, अल्वारेज़, सत्रह वर्षीय गार्नाचो, सिमियोनी, मोंटिल, पालासियोस, मोलीना, ऐंजो फर्नान्डेज़, मैक एलिस्टर आदि कई युवाओं को राष्ट्रीय टीम में पर्दापण करने का मौका दिया।
कोच लियोनेल स्कालोनी ने इस टीम को जीत के असल मायने समझाए। लियोनेल स्कालोनी ने इस टीम को बतलाया कि आखिर राष्ट्रीय टीम की जर्सी पहनना कितना जिम्मेदारी का काम है। यह लियोनेल स्कालोनी ही थे, जिनके नेतृत्व में यह सभी खिलाड़ी मैदान के भीतर टीम के लिए जान तक दे देने के लिए तत्पर रहते थे। लियोनेल स्कालोनी ने अर्जेंटीनी टीम में जोश, जज्बा, जुनून भरा, उनके भीतर जीत के लिए लालसा पैदा की।
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फिलहाल कहानी अभी खत्म कहाँ होनी थी। विश्व कप के लिए टीम को कतर कूच करना है। इससे पहले खबर आती है कि अर्जेंटीना की विश्व कप के लिए रवाना होने वाली टीम के कुछ खिलाड़ी चोटिल हो गए हैं। इसमें कोच के बेहद पसंदीदा खिलाड़ी लो चेल्सो भी थे।
लियोनेल स्कालोनी ने अपनी मिडफील्ड जीयोवानी लो चेल्सो, पारेडेस व रॉड्रिगो डि पॉल को केंद्र में रख कर बुनी थी। मगर अफसोस लो चेल्सो अब टीम के साथ नहीं होने जा रहे थे। सब परेशान थे। अब क्या होगा, कोई नहीं जानता था।
“चेल्सो बेहद नायाब खिलाड़ी है। मैदान में हमारे लिए जो कुछ भी वह करता है वह कोई दूसरा नहीं कर सकता। लो चेल्सो की जगह अब टीम में वह भूमिका कौन निभाएगा, फिल्हाल मैं स्वयं नहीं जानता।” कतर पहुँच पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्कालोनी ने कहा था।
यह लियोनेल स्कालोनी की सोच थी जो विश्व कप में टीम को इतने आगे तक लेकर गई। ब्राज़ील, पुर्तगाल व स्पेन के ठीक उलट, लियोनेल स्कालोनी अपनी कमियों में लगातार सुधार करते थे और सबसे अहम यह था कि वो अपने विपक्षी को पढ़ते थे। वह हर मैच में अपने विपक्षी टीम को मद्देनजर रखते हुए प्लेइंग इलेवन में जरूरी फेरबदल करते थे।
पूरे टूर्नामेंट में अर्जेंटीना ने कभी लगातार मैचों में अपनी कोई फॉरमेशन दोहराई नहीं। विपक्षी टीम की मजबूती व कमजोरी को ध्यान में रखते हुए वह कभी 4-4-2 तो कभी 3-5-2 तो कभी 5-3-2 की फॉरमेशन का इस्तेमाल करते। पूरे टूर्नामेंट में किसी भी मैच में उनका कोई भी विपक्षी कोच नहीं जानता था कि स्कालोनी उस रोज मैच के लिए किस फॉरमेशन में अपनी टीम को मैदान में उतारेंगे।
इसका सबसे बेहतरीन नमूना तो फाइनल में ही देखने को मिला। हर बड़ा अखबार व मिडिया हाउस यह अटकलें लगा रहा था कि बाप्पे व डेंबेले को रोकने के लिए स्कालोनी 5-3-2 की फॉरमेशन में टीम को उतारने जा रहे हैं। मगर हुआ कुछ ऐसा जो सबकी कल्पना के परे था। उन्होंने अपना ब्रह्मास्त्र फाइनल मैच के लिए बचा कर रखा था।
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उन्होंने एंजल डि मारिया को लेफ्ट विंग में रखते हुए 4-3-3 की कमोबेश अटैकिंग लाइनप चुनना मुफीद समझा। साथ ही मैच से ठीक पहले अटैकिंग लेफ्ट विंगबैक अकून्या के स्थान पर टाग्लियाफीको को मैदान पर उतारा। टाग्लियाफीको अकून्या की तुलना में अच्छा रक्षण करते हैं। यह स्कालोनी के इस फैसले का ही नतीजा था कि फाइनल मैच के शुरुआती अस्सी मिनटों में गत विजेता फ्रांस मैच में थी ही नहीं। टाग्लियाफीको ने मैदान में डेंबेले को सांस ही नहीं लेने दी थी। इसका नतीजा यह रहा कि कोच दीदिएर देश्चैंप्स ने मध्यांतर पूर्व ही डेंबेले व जीरू को मैदान से बाहर बुलवा लिया था।
स्पेन ने मोरक्को के खिलाफ अपने मैच में हजार से ज्यादा पासेस़ किए थे। गेंद इतने अत्यधिक वक्त तक अपने पास रख कर भी वह टार्गेट पर एक शॉट भी नहीं ले सके थे।
जहाँ ब्राज़ील, पुर्तगाल व स्पेन सदैव एक ही नीति को लेकर आगे बढ़ते दिखते हैं वहीं स्कालोनी ने दुनिया को सिखलाया कि क्यों किसी भी टीम को यहाँ आप हल्के में नहीं आंक सकते।
2021 की एक शाम स्कालोनी मेस्सी के साथ बैठे। टीम 0-0 से ब्राज़ील से मैच ड्रा कर विश्व कप के लिए क्वालिफ़ाई कर चुकी थी। परन्तु उन्हें शंका थी। उन्होंने अपने मन की बात मेस्सी से साझा की और कहा, “लियो, अगर सब वैसा नहीं हुआ जैसा सब चाहते हैं कि हो तो यह हम सभी के लिए बहुत बुरा होगा। मैं इस सब से पहले भी गुजर चुका हूँ।”
तब मेस्सी ने कहा था, “कोच आप जो कर रहे हैं वह सही है। बस आगे बढ़ते रहें, सब अच्छा होगा। अगर सब अच्छा न भी हुआ तो हम जानते हैं हमने अपना सर्वस्व अर्पण किया।”
2006 में FA CUP के फाइनल में स्कालोनी की एक गलती के चलते वेस्ट हैम लीवरपूल के खिलाफ खिताब जीतने से वंचित रह गई थी। तब स्कालोनी की इस कदर आलोचना हुई थी कि वह हमेशा के लिए फुटबॉल छोड़ देने का मन बनाने लगे थे। 2006 में FA CUP के फाइनल में जिस स्कालोनी की गलती के चलते वेस्ट हैम खिताब नहीं जीत सकी थी, आज वही स्कालोनी अपने कार्यकाल में अर्जेंटीना को कोपा अमेरिका, फिनालिस्मा व विश्व कप खिताब जीताने वाला कोच हो गया है।
कम लोग जानते हैं कि लियोनेल स्कालोनी व लियोनेल मेस्सी, दोनों ही, 2006 विश्व कप में अर्जेंटीनी टीम का हिस्सा थे। आज इन दो लियोनेल की अद्भुत जोड़ी ने गरीबी से जूझ रहे राष्ट्र को झूमने की वजह दे दी है। सांता फे में जन्मे स्कालोनी को आज संपूर्ण अर्जेंटीना पूज रहा है। वह वहाँ एक नायक हो गए हैं। लियोनेल आंद्रेस मेस्सी अगर अर्जेंटीना की हल्की नीली-सफेद अल्बीसेलेस्ते जर्सी पर तीसरे सितारे की शक्ल में सदैव के लिए अमर हो गए तो इस में बेहद अहम भूमिका दूसरे लियोनेल- लियोनेल स्कालोनी की भी रही।
जिंदगी में जब कोई बच्चा अच्छा करता है तो वह सबकी नजरों का तारा हो जाता है। उसके पीछे खड़े माँ पिता व गुरु को कोई नहीं जानता। किसी खेल में कोई टीम अच्छा कर लेती है तो सभी खिलाड़ियों को सम्मान व प्रेम मिलता है। अंधेरे कमरों में खुद को बंद कर रणनीति बुन रहे कोच को बेहद कम लोग पहचानते हैं। कपिल देव ने भारत को क्रिकेट का पहला विश्व कप जिताया सभी जानते हैं। उस टीम का कोच कौन था शायद ही हम जानते हों।
जरूरत है कि जिस अदब से लियोनेल मेस्सी को याद किया जा रहा है उतना ही प्रेम लियोनेल स्कालोनी को भी मिले। जरूरत है कि किसी सफल कहानी बुनने वाले माँ पिता व गुरु को भी उचित सम्मान मिले।
लियोनेल स्कालोनी की यह हसीन कहानी हमें बताती है कि वाकई हर अंधेरी रात के पश्चात एक उजली भोर होती है। जरूरत है कि बस हम राह पर चलते रहें। जरूरत है कि बस हम कभी डगमगाएं नहीं।
शुक्रिया स्कालोनी, हमें यह जादुई दास्ताँ बतलाने हेतु। तुम सदैव हमारे दिलों में रहोगे।