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Home » किसान सम्मान निधि या न्यूनतम समर्थन मूल्य, भारतीय किसानों के हित में क्या है?
आर्थिकी

किसान सम्मान निधि या न्यूनतम समर्थन मूल्य, भारतीय किसानों के हित में क्या है?

Dr Amarendra Pratap SinghBy Dr Amarendra Pratap SinghDecember 21, 2022No Comments7 Mins Read
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किसान सम्मान निधि
२०१८ में किसानों के लिए केंद्रीय योजना के रूप में प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना प्रारम्भ की
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भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी किसी की रिहाइश जान कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आर्थिक पायदान पर उसका स्थान कहाँ है। आर्थिक असमानता के सम्बन्ध में उपलब्ध शोध यह दिखाता है कि विकासशील देशों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता उदारीकरण के बाद से ही लगातार बढ़ी है और भारत इस प्रवृत्ति का कोई अपवाद नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा संघ के एक शोध पत्र के अनुसार उदारीकरण के बाद से भारत के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के मध्य असमानता बढ़ने का एक कारण शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों की अपेक्षा तीव्र आय वृद्धि रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में, यू. एन. यू. वाइडर के एक शोध पत्र के अनुसार अन्य व्यावसायिक वर्गों की अपेक्षा किसानों के मध्य आय असमानता ज्यादा पायी गयी है जो दिखाता है कि अमीर किसान ज्यादा अमीर हुए है जो पूर्ववर्ती कृषि नीति की विफलता को दर्शाता है। इस परिप्रेक्ष्य में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के मध्य बढ़ती आर्थिक असमानता नीति निर्माताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

हाल में हुए राष्ट्रीय पतिदर्श सर्वेक्षण के २०१८-१९ में प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार भारत में प्रत्येक कृषि परिवार की औसत मासिक आय १०,२१८ रूपये मात्र थी। शहरी क्षेत्रों के लिए कोई समकक्ष सर्वेक्षण न होने के कारण यह नहीं कहा जा सकता कि शहरी क्षेत्र में औसत पारिवारिक मासिक आय क्या थी। हालाँकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में औसत पारिवारिक आय के अंतर को समझने के लिए २०१९-२० में संपन्न हुए लोंगीटुडनल एजिंग सर्वे ऑफ़ इंडिया से प्राप्त निष्कर्ष इस संदर्भ में अनुमान लगाने में मदद कर सकते हैं। इस सर्वे के अनुसार शहरी क्षेत्र में औसत पारिवारिक आय ग्रामीण क्षेत्र में औसत पारिवारिक आय से १.८३ गुना अधिक थी। हालाँकि इस नमूना सर्वेक्षण में शामिल परिवारों की संख्या कम थी और इसमें केवल वही परिवार शामिल थे जिनमें ४५ वर्ष से अधिक आयु का कम से कम एक व्यक्ति हो, फिर भी इस सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के मध्य आय असमानता का एक मोटा अनुमान लगाया जा सकता है।

इन तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए कृषि परिवारों के लिए ऐसी योजनाओं की आवश्यकता थी जो न केवल शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के मध्य असमानता को कम करे बल्कि कृषि परिवारों के मध्य भी आय असमानताओं को कम करे।

इन्ही कारणों को दृष्टिगत रखते हुए, २०१८ में किसानों के लिए केंद्रीय योजना के रूप में प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना प्रारम्भ की गयी जिसके अंतर्गत २ हेक्टेयर कृषि भूमि धारक किसानों को वर्ष में तीन किस्तों में ६००० रूपये देने का प्रकल्प प्रारम्भ हुआ। इस योजना ने २४ फरवरी २०१९ से कार्य करना प्रारम्भ किया और १ जून २०१९ से २ हेक्टेयर भूमि की शर्त हटाकर सभी किसानों को इस योजना के अंतर्गत ले आया गया। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के अनुसार फरवरी २०२२ में इस योजना ने ३ वर्ष पूरे कर लिए और फरवरी तक इस योजना के माध्यम से ११.७८ करोड़ लाभार्थियों को १.८२ लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किये गए। कृषि क्षेत्र की अन्य योजनाओं के इतर इस योजना के अंतर्गत होने वाली आय स्थानांतरण भू-स्वामित्व से सम्बद्ध नहीं है इसलिए इस योजना के माध्यम से बड़े किसानों और छोटे किसानों के मध्य आय असमानता को कम किया जा सकता है।

इसके साथ ही इस योजना के अंतर्गत किसी फसल विशेष को फायदा नहीं दिया जा रहा है इसलिए यह योजना विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत निर्धारित कृषि साहाय्य प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करती है। इस दृष्टि से भविष्य में यह योजना भारत सरकार द्वारा भारतीय कृषि को दिए जाने वाली सहायता को विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के अनुरूप पुनर्गठित करने में एक केंद्रीय भूमिका निभाने वाली है। इस संदर्भ में यह बता देना आवश्यक है कि विश्व व्यापार संगठन किसी फसल को दिए जाने वाले आर्थिक अनुदान या सहायता, जैसे फसलों को दिया जाने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य, को मुक्त व्यापार के मार्ग में बाधक मानता है।

हालाँकि भारतीय कृषि के संदर्भ में यह भी सत्य है कि भारतीय कृषि को मिलने वाली शुद्ध आर्थिक सहायता ऋणात्मक है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के एक शोध अध्ययन के अनुसार, अध्ययन अवधि के दौरान कृषकों को मिलने वाली सहायता या सामान्य शब्दों में कहा जाये तो किसी वित्तीय वर्ष में उपभोक्ता और करदाता के द्वारा कृषकों को मिलने वाला मौद्रिक हस्तांतरण कृषि प्राप्तियों के सकल मूल्य का -६ प्रतिशत रहा जबकि वियतनाम और चीन में यह क्रमशः +२४ प्रतिशत और +१५ प्रतिशत था। संक्षेप में, यह विचार कि भारतीय कृषि को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, गलत विचार है। वास्तविकता यह है कि भारतीय कृषि को सरकार और अन्य क्षेत्रों द्वारा जितनी मौद्रिक सहायता मिलती है, उससे कहीं ज्यादा मौद्रिक सहयोग कृषि क्षेत्र अन्य क्षेत्रों को देता है। इसका मुख्य कारण राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा कृषि वस्तुओं के व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंध है जिनका उद्देश्य सामान्य जनता को सस्ते भोज्य पदार्थ उपलब्ध कराना रहा है। आर्थिक विकास के सिद्धांतों के अनुसार ऐसा करने से औद्योगीकरण और शहरीकरण को गति मिलती है।

हालाँकि आर्थिक विकास की ऐसी रणनीति न केवल ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के साथ सौतेला व्यवहार करती है बल्कि खाद्य मॅहगाई को कम करने का दायित्व भी कृषि क्षेत्र पर आ जाता है। उपभोक्ता कीमत सूचकांक के आधार पर मापी जाने वाली मॅहगाई की दर का विश्लेषण दिखाता है कि भारत में खाद्य मॅहगाई, मॅहगाई की दर बढ़ने का एक मुख्य कारण रहा है। शोध यह भी बताता है कि विगत वर्षों में मौद्रिक नीति खाद्य मॅहगाई को नियंत्रित करने में बहुत सफल नहीं रही है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि मॅहगाई कम करने की जिम्मेदारी का सफलता पूर्वक निर्वाह करने के लिए कृषि क्षेत्र को उचित अनुदान दिया जाये अन्यथा कृषि क्षेत्र में छुपा असंतोष बढ़ेगा जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं।

इस सन्दर्भ में किसानों को दी जाने वाली किसान सम्मान निधि और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा स्वीकृत इन्फ्लेशन टार्गेटिंग फ्रेमवर्क को मिला कर कृषि क्षेत्र में उत्पन्न असंतोष को कम किया जा सकता है। यहाँ यह बताना उचित होगा कि इन्फ्लेशन टार्गेटिंग फ्रेमवर्क के स्वीकृत होने के बाद रिज़र्व बैंक उपभोक्ता कीमत सूचकांक पर आधारित हैडलाइन मॅहगाई दर को औसत ४ प्रतिशत (२ प्रतिशत के विचलन के साथ) पर बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है।

किसान सम्मान निधि के मॅहगाई दर के साथ समायोजन के कारण होने वाले व्यय का मोटा-मोटा अनुमान लगाया जा सकता है जो इस प्रकार के समायोजन की बजटीय व्यवहारिकता की जांच करने में उपयोगी हो सकता है। सरकार द्वारा दस्तावेजों की जांच के बाद किसान सम्मान निधि के लाभार्थियों की संख्या ११.२ करोड़ से घट कर ८.८ करोड़ रह गयी है। अगर यह मान लिया जाये कि किसानों की यह संख्या अगले वर्ष स्थिर रहती है और सरकार अगले वित्तीय वर्ष में किसान सम्मान निधि के अंतर्गत होने वाले स्थानांतरण को ४ प्रतिशत मॅहगाई दर के अनुसार समायोजित करने को तैयार होती है, तो इससे २०२३-२४ में सरकार के व्यय पर २१.२ हज़ार करोड़ रूपये का अतिरिक्त वार्षिक बोझ आएगा। यदि दस्तावेजों की जांच से पहले के ११.२ करोड़ किसानों का आंकड़ा भी लिया जाये तो ४ प्रतिशत का मॅहगाई समायोजन करने के बाद भी सरकार पर वार्षिक वित्तीय बोझ २७ हज़ार करोड़ के लगभग बैठता है। पी आर एस इंडिया के अनुसार सरकार द्वारा २०२२-२३ वित्तीय वर्ष में सरकारी व्यय में ४.६ प्रतिशत की वृद्धि का प्रस्ताव रखा गया था जिसे देखते हुए किसान सम्मान निधि में ४ प्रतिशत की वृद्धि अव्यवहारिक नहीं कही जा सकती।

हाल में कई कृषि संगठनों द्वारा कृषि सहायता में वृद्धि की मांग की गयी है जिनमें किसान सम्मान निधि को मॅहगाई से जोड़ने की मांग भी शामिल है। किसान संगठनों द्वारा किसान आंदोलन के दौरान न्यूनतम समर्थन कीमतों को कानूनी गारंटी की मांग न केवल अर्थशास्त्र के नियमों के अनुसार अनुचित थी बल्कि वह मांग कृषि क्षेत्र के विकास की दृष्टि से भी अधोगामी थी। इसके विपरीत, कृषि संगठनों के द्वारा किसान सम्मान निधि को मॅहगाई दर के अनुसार समायोजित करने की मांग न केवल न्यायोचित है बल्कि यह बदलते समय की आवश्यकता भी है। किसान सम्मान निधि को मॅहगाई की दर के साथ जोड़ने से न केवल कृषि परिवारों को आर्थिक सहायता मिलेगी बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के मध्य बढ़ती आय असमानता भी कम की जा सकेगी। दीर्घकाल में यह रणनीति ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन भी कम करेगी। 

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