झूठ के साथ एक समस्या है। आप यह भूल जाते हैं कि पिछली बार आपने क्या कहा था और इस चक्कर में आप अपनी ही बात को काट बैठते हैं। यह बात कांग्रेसी नेताओं को और भी समझ नहीं आती।
कांग्रेसी नेताओं की झूठ के साथ अहंकार की भी समस्या है। भले ही आज नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने 8 वर्षों से अधिक का समय बीत गया हो, लेकिन कांग्रेस के उच्च-भ्रू, कथित कुलीन नेता अब भी उस बात को पचा नहीं पा रहे हैंं। आप अगर भूल गए हों तो याद दिला दें कि तथाकथित तौर पर विदेशों में उच्च शिक्षित अपने ‘ऑक्सब्रिज एक्सेंट’ से कॉंपते हुए मणिशंकर अय्यर ने किस तरह मोदी को गालियाँ दी थीं, उन्हें ‘नीच’ और ‘चाय बेचने लायक’ ही कहा था।
मणिशंकर हों या जयराम रमेश, सिब्बल हों या सैम पित्रोदा- इन सभी की एक बीमारी है। ये सभी भारत की जड़ों से कटे, औपनिवेशिक सोच से ग्रस्त और खुद को सबसे ऊपर समझने के त्रिदोष से ग्रस्त हैं।
इतनी भूमिका इसलिए दी कि आप समझ सकें कि जयराम रमेश ने 1 अक्टूबर को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को बंगाल-विभाजन का उत्तरदायी ठहरा दिया। इसे कहते हैं- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे। देश के दो टुकड़े करने वाले, सारे देश में सांप्रदायिकता का जहर फैला देनेवाली पार्टी के एक बूढ़े खुर्राट जब इतिहास की छीछालेदर करते हैं, तो ऐसे ही बयान निकलते हैं। वैसे, जिस पार्टी के इतिहासकार रोमिला थापर और इरफान हबीब जैसे एकतरफा उपन्यासकार हों, उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है।
आइए, अब जरा जयराम रमेश के सफेद झूठ के धुर्रे उड़ाते हैं।
बंगाल की भूमि अद्भुत है
बंगाल अद्भुत भूमि है। उपनिवेशकालीन भारत की। वहाँ औपनिवेशिक काल में एक साथ तीन करेंट- हिंदू राष्ट्रवाद, इस्लामिक कट्टरवाद और दलित-आंदोलन चल रहे थे।
भारतीय हिंदू राष्ट्रवाद की तो पुण्यभूमि ही बंगाल है, जो बंकिम के समय से या फिर उसके पहले से ही चली हैं और हमें देखने को मिलती हैं। बंकिम की रचनाओं में एक डिस्टिंक्ट एंटी-मुस्लिम टोन मिलता है। उसका एक कारण है।
कारण- अभी का जो पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश है। बंकिम के समय उसकी डेमोग्राफी बहुत विचित्र थी। वहाँ 40 फीसदी हिंदू और 60 फीसदी मुस्लिम थे। बांग्लादेश के दो जिले बारीसाल और खुलना कलकत्ता से लगे हुए थे। वे दोनों मुस्लिम मेजॉरिटी नहीं थे, बाकी सभी जगह वे मेजॉरिटी थे। हिंदू में भी दलित बहुमत में थे जिन्हें उस समय अछूत या ‘अनटचेबल’ कहते थे। कथित भद्रलोक यानी अल्पमत में थे।
बंगाल का मुस्लिम कट्टरवाद बिल्कुल अलग था
उत्तर भारत में मुस्लिम कट्टरता आने से पहले ही बंगाल में इस्लामिक पुनरुत्थानवादी आंदोलन चलता आ रहा था। यूपी और बांग्लादेश की इस्लामिक कट्टरता अलग थी। पेशावर के जो हालात थे, वह कोलकाता के नहीं थे, लखनऊ के नहीं थे।
यहां सैयद तितु मीर का जिक्र करना बुरा नहीं रहेगा। उसके साथ ही फराइजी मूवमेंट का भी जिक्र करना ठीक रहेगा। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में ही तितु मीर ने मुस्लिम राष्ट्रवाद का आंदोलन चलाया था। उसने बॉंस का एक किलानुमा घर भी बनाया था और हिंदुओं के खिलाफ लड़ाई का ऐलान भी किया था। यह अलग बात है कि ‘बंगाली राष्ट्रवाद’ की आड़ में इस तितु मीर के भी सांप्रदायिक जहर की अनदेखी की गई और इसे महाश्वेता देवी जैसी लेखिकाओं ने भी ‘राष्ट्रवादी’ साबित करने में कोई कसर न छोड़ी।
इसी तरह फराइजी आंदोलन था। हाजी शरइतुल्ला ने गैर-इस्लामिक राह पर चलने से अपने लोगों को बचाने के लिए यानी कट्टर इस्लाम को लाने के लिए बाकायदा फराइजी आंदोलन चलाया था। यह सब कुछ श्यामाप्रसाद मुखर्जी से बहुत पहले हो चुका था, श्रीमान् जयराम रमेश जी!
बंगाल को 1905 में अंग्रेजों ने बाँटा था
भले ही तब के बंगाल में मोपला की तरह का नरसंहार नहीं हुआ, लेकिन लो-इंटेंसिटी मारपीट चलती रही। हिंदुओं को समझ में आ गया था कि आगे क्या होने वाला है? 1905 में ही अंग्रेजों ने बंगाल को विभाजित किया और असम को उससे जोड़ दिया। असम हिंदू बहुल था। असम का एक पार्ट था सिलहट, जो बाद में पाकिस्तान-बांग्लादेश में चला गया है।
अब जयराम रमेश की मूर्खता पर आइए। तब की जो स्थिति थी। कलकत्ता में स्ट्रीट किलिंग्स जारी थी। ये स्पष्ट था कि हिंदुओं की जान बचनी मुश्किल है। इसके बावजूद बंगालियों के एक सेक्शन पर ‘बंगाली नेशनलिज्म’ हावी था। ठीक वैसे ही, जैसे कश्मीरी हिंदुओं के ऊपर तथाकथित कश्मीरियत हावी थी।
सुहरावर्दी ने प्रपोजल दिया कि बंगाल को स्वाधीन देश बनाएं। उसमें बिहार का पूर्णिया प्रमंडल भी था, आज के वेस्ट बंगाल को भी रखा और आज के पूरे बांग्लादेश को भी रखा। उसमें अलिखित बात जो थी, वह था कि असम को भी धीरे से हथिया लेंगे। यह कथित यूनाइटेड बांग्लादेश की योजना थी। इसे सुभाष बाबू के छोटे भाइयों ने भी सपोर्ट किया था।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने हिंदुओं को बचाया
आप हिंदुओं का दुर्भाग्य कहिए या सौभाग्य कि उसी समय ग्रेट कोलकाता किलिंग्स शुरू हुई। यूनाइटेड बंगाल की योजना में जलपाईगुड़ी और पूर्णिया भी शामिल थे। अगर वह लागू हो जाता तो पूरे उत्तर पूर्व को बचाना मुश्किल था। सुहरावर्दी की योजना थी कि वह पूरा चिकेन नेक और असम काट कर एक अलग देश ही बना देते।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बंगाल का विभाजन नहीं करवाया, हाँ उन्होंने लाहौर और (बाद में कश्मीर) के हिंदुओं की तरह मूर्खता का दामन थामने की जगह व्यावहारिकता से काम लिया और हजारों हिंदुओं की जान बचाई।
जयराम रमेश जी, यह जान लीजिए कि चाँद पर थूकने से अपना ही चेहरा गंदा होता है। इतिहास की जो मनगढ़ंत बात आप बता रहे हैं, वह इतनी भी पुरानी नहीं हुई हैं कि आप अपने मन से कुछ भी बता दें और वह वेरिफाई न हो सके। खासकर, आज सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस दौर में।
संदर्भ ग्रंथः
- 1. Becoming Hindu and Muslims: Reading the Cultural Encounter in Bengal 1342-1905 by Saumya Dey
- 2. अप्रतिम नायक श्यामाप्रसाद मुखर्जी- तथागत रॉय