केरल के वाम मोर्चे वाली सरकार के मुखिया पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिख कर केन्द्रीय सेवाओं की परीक्षाओं में हिंदी को एक माध्यम बनाने और उच्च शिक्षा के संस्थान जैसे आइआइएम और आइआइटी आदि में इसे एक अनिवार्य भाषा बनाने पर असहमति जताई है।
विजयन ने इसके पीछे ‘एकता में अनेकता’ और एक भाषा को दूसरी के ऊपर तरजीह ना देने जैसे कारण बताए हैं। विजयन ने यह पत्र अमित शाह की अगुआई वाली संसदीय समिति की उन सिफारिशों के खिलाफ लिखा है जिनमें कहा गया था कि उच्च शिक्षा संस्थानों में हिंदी भाषी राज्यों में तकनीकी और गैर तकनीकी शिक्षा में हिंदी और अन्य राज्यों में स्थानीय भाषा को वरीयता दी जाए। समिति ने अंग्रेजी को एक वैकल्पिक भाषा के तौर पर रखने को कहा है।
क्या हैं समिति की सिफारिशें?
देश के अंदर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए संसद के अंदर राजभाषा समिति का गठन वर्ष 1976 में किया गया था, इसका कार्य हिंदी को सभी क्षेत्रों में कैसे बढ़ावा दिया जा सके इसके लिए सुझाव देना होता है।
विगत 9 सितम्बर को अमित शाह की अध्यक्षता वाली इस समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी 11वीं प्रतिवेदन रिपोर्ट पेश की थी। समिति की रिपोर्ट के अंदर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने की बात कही गई है।
मीडिया में छपी विभिन्न खबरों के अनुसार, समिति ने हिंदीभाषी राज्यों में स्थित हाई कोर्टों के हिंदी में काम करने, सरकारी परीक्षाओं में अंग्रेजी की जगह हिंदी को अनिवार्य बनाने, संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाए जाने जैसे सुझाव दिए हैं।
समाचार वेबसाइट दी प्रिंट के अनुसार, समिति ने अपनी रिपोर्ट में एम्स, आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों में शिक्षा का मध्यम हिंदी में बदलने की बात की है। समिति ने अपनी सिफारिशों में उन अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराने की बात की है जो जानबूझ कर हिंदी में काम नहीं करते।
विरोध के स्वर
इस समिति की सिफारिशों पर पिछले कुछ समय से दक्षिण के राज्यों के नेता लगातार विरोध जता रहे हैं। अब तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री पुत्र केटीआर और अब केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने ऐतराज जताया है।
स्टालिन ने अपने ट्वीट में इस समिति के सुझावों की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार का हिंदी थोपने का यह यह सख्त कदम भारत की विविधता को नजरअंदाज करने का एक प्रयास है। समिति की 11वीं रिपोर्ट में दिए गए सुझाव भारत की आत्मा पर सीधा हमला हैं।
वहीं तेलंगाना के मुख्यमंत्री पुत्र और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष केटीआर ने कहा कि केंद्र सरकार आइआइटी जैसे संस्थानों में हिंदी भाषा को लाकर संघवाद की अवधारणा का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है।
मलयालम समाचार वेबसाइट ऑनमनोरमा के अनुसार, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने अपने पत्र में लिखा कि सरकारी नौकरी की परीक्षाओं हिंदी को लागू करना पहले से ही संख्या में कम सरकारी नौकरियों से युवाओं के बड़े हिस्से को पीछे कर देना होगा।
उन्होंने आगे लिखा कि चूंकि भारत में कई भाषाएँ हैं इसलिए सिर्फ कि एक ही भाषा को उच्चतर शिक्षा के संस्थानों में थोपा नहीं जाना चाहिए। आगे विजयन ने कहा कि देश की युवा पीढ़ी को अलग-अलग भाषाएँ सीखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस मामले में प्रधानमंत्री से दखल देने की बात कही है। ध्यातव्य है कि सरकार नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा संस्थानों में हिंदी को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। यह रिपोर्ट भी इसी तरफ एक कदम है।