कांग्रेस शासित कर्नाटक को आने वाले समय में कृषि श्रमिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह यह है कि वहाँ पर लोगों को काम कराने के लिए श्रमिक ढूँढने से भी नहीं मिल रहे हैं। इसके लिए चुनाव पूर्व कांग्रेस द्वारा किए गए मुफ्त उपहारों के वादों को ज़िम्मेदार माना जा रहा है। कुशल श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा अब वेतन, लाभ या काम के घंटे कम करने जैसी मांगें उठाने के बजाय घर पर रहने का विकल्प चुन रहा है और मज़दूरी करने से परहेज़ कर रहे हैं।
रिपोर्टों से पता चलता है कि कॉफी बागान, जो 30 लाख कृषि कार्यबल में से लगभग 5 लाख को रोजगार देते हैं, पहले से ही श्रमिकों की कमी का सामना कर रहे हैं। भारतीय कॉफी बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष बोस मंडन्ना एन ने श्रमिकों की अचानक कमी के लिए सत्ता से मिलने वाले बहुत सारे मुफ्त उपहारों को दोषी ठहराया। कोडागू में रहने वाले मंडन्ना ने कहा, “इससे संपदा प्रभावित हुई है। अगर यह जारी रहा, तो चाय के बागान चलाना मुश्किल होगा।”
जो प्रशिक्षित मजदूर थे, वो अब 10 किलो मुफ्त चावल, मुफ्त बस यात्रा और 200 यूनिट बिजली, घर की महिला मुखिया को 2,000 रुपये की मुफ्त धनराशि जैसे लाभों के पात्र हैं। इससे मजदूरों ने बागानों में काम करने के बजाय मुफ्त की रेवड़ियों वाला जीवन चुनना शुरू कर दिया है, जिससे श्रमिक संकट पैदा हो गया है। स्थानीय मजदूरों ने भी काम पर आना बंद कर दिया है। इससे बागान मालिकों को दूसरे राज्यों से मजदूरों को काम पर रखना पड़ता है लेकिन वे इस काम में प्रशिक्षित नहीं होते हैं और इस कारण स्थिति और भी खराब होती जा रही है।
वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया ने कर्नाटक एम्प्लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीसी प्रभाकर का हवाला देते हुए बताया कि सिद्धारमैया सरकार द्वारा मुफ्त की चुनावी गारंटी के कारण हासन और कलबुर्गी इलाक़ों के मजदूर काम पर नहीं आए हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस की मुफ्त सुविधाओं के वादे अब विकास एवं रोज़गार में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। इससे पहले जुलाई माह में यह खबर आई थी कि चुनाव पूर्व मुफ्त सुविधाओं के वादों को पूरा करने में खर्च किए गए पैसे के कारण राज्य के पास विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं बचा था। यह भी बताया गया कि कैसे कर्नाटक सरकार वादों को पूरा करने के लिए एससी/एसटी कल्याण कोष से 11,000 करोड़ रुपये का उपयोग करेगी।
आपको बता दें, चुनावों से पहले कांग्रेस ने पांच प्रमुख गारंटी दी थी – सभी परिवारों की महिला मुखियाओं को ₹2,000 मासिक सहायता, सभी घरों में 200 यूनिट बिजली, स्नातक युवाओं के लिए हर महीने ₹3,000 और ₹1,500 डिप्लोमा धारकों, प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलो चावल और राज्य सार्वजनिक परिवहन बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा।
कर्नाटक अब इन्ही सब मुफ्त गारंटी का रोना रो रहा है। सब कुछ मुफ्त में कर दिखाने का दावा अब कर्नाटक को महंगा पड़ रहा है। विश्लेषकों का अनुमान है कि इससे सरकारी खजाने पर प्रति वर्ष 65,082 करोड़ रुपये की लागत आएगी, जो राज्य के बजट का लगभग 20% है। वहीं अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे कर्नाटक, जो स्वस्थ राज्य था, कर्ज के बोझ तले दबकर आर्थिक रूप से बीमार राज्य बन जाएगा। यानी राज्य धीरे धीरे आर्थिक बोझ तले दब रहा हैं।
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