हिमालयी राज्यों में एक बार फिर मॉनसून के आते ही तांडव मच गया है। भारी वर्षा के चलते हिमाचल व उत्तराखण्ड में नदियाँ खतरे के निशान से काफी ऊपर बह रही हैं। बांधों से मजबूरन पानी छोड़ा जा रहा है। हिमाचल ने इससे पहले न जाने कब जीवनदायिनी नदियों का ऐसा रौद्र रूप देखा था। वहीं उत्तराखंड के उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी आदि तमाम जिलों की हालत बेहद खराब है। मैदानी इलाकों का भी कमोबेश यही हाल है। हरिद्वार से देहरादून जाती रेल लाइन बाधित हो गई है। जगह जगह बिजली गुल है। न जाने कितने पुल टूट गए हैं। बारिश के चलते जगह जगह भूस्खलन हो रहा है। सतपुली, दुगड्डा, रुद्रप्रयाग आदि से लेकर जैसे जैसे आप आगे बढ़ते हैं, तमाम जगह कई सौ मीटर तक सड़क गायब है। पहाड़ भरभराकर गिर रहे हैं। इस सब के चलते जाने कितने लोगों की मौत भी हो गई। यह यात्रा का सीज़न है। मगर ऐसी खतरनाक स्थितियों के चलते केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा को अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया है।
इस बीच बीती (जुलाई 13, 2023) सुबह उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के एक प्रमुख शहर कोटद्वार में एक बड़े पुल का एक हिस्सा टूट कर गिर गया। यह पुल कोटद्वार के भाबर क्षेत्र को मुख्य शहर से जोड़ता है। जैसा क्षेत्रीय पत्रकारों से मालूम पड़ा, इस घटना में तीन-चार लोग घायल हैं और एक व्यक्ति की जान चली गई। आनन फानन में क्षेत्रीय विधायक देहरादून से कोटद्वार पहुंचती हैं। सनद रहे की यह वही पुल है जिसपर लगभग एक दशक पूर्व खनन माफियाओं द्वारा जंगलात के कर्मचारियों पर जानलेवा हमला किया गया था।
इसके बाद भी उत्तराखंड के कोटद्वार में भाबर की मालन नदी में अवैध खनन में लगे ट्रैक्टर-ट्रालियां पकड़ने से गुस्साए खनन माफियाओं ने सात अप्रैल, 2019 की काली रात वनकर्मियों पर हमला बोल दिया था। उन्होंने डिप्टी रेंजर को पीटा था साथ ही रेंजर के साथ भी अभद्रता की थी।
कोटद्वार के भाबर इलाके व मुख्य नगर के मध्य दो पहाड़ी नदियाँ बहती हैं। सुखरौ व मालन। मालन वही नदी है जिसके तट पर कभी कण्व ऋषि ने अपने आश्रम में छात्रों को शिक्षा-दीक्षा प्रदान की थी। संत कालिदास के महाग्रंथ अभिग्यानशाकुंतलम की कथा भी इस सदानीरा के तट पर बसे कण्व ऋषि के आश्रम को केंद्र में रखकर रची गई है।
बरसात के महीनों में यह क्षेत्र मुख्य नगर से कट जाया करता था। क्योंकि यह नदियाँ पानी से लबालब भर जातीं। नदियों को पार करने के लिए तब उन पर पुल नहीं थे। इसके चलते यह क्षेत्र मुख्य शहर से कट जाया करते। इस क्षेत्र के विद्यालय बंद पड़ जाया करते, मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पाते, क्षेत्र तक साग-सब्जी, राशन आदि न पहुँच पाता। जरूरी आवागमन रुक जाया करता। कितनी दफा ऐसा होता कि ट्रैक्टर ट्रॉलियों से लोग नदी पार कर रहे होते और ट्रॉली बीच नदी में पलट जाती। कितनी दफा गढ़वाल मोटर ओनर्स यूनियन की बसें, क्षेत्र में नियमों को ताक पर रखकर चल रही सरिया फैक्ट्रियों के माल से लदे ट्रक, सवारियां ढोती जीपें नदी में पलट जातीं और कई दफा ऐसी दुर्घटनाओं में कई लोगों की मौत भी हो जाया करती।
दरअसल कोई पचास वर्षों से कोटद्वार के इस क्षेत्र को मुख्य नगर से जोड़ने हेतु सुखरौ व मालन नदियों पर पुल बनाने की मांग उठा करती थी। हर बार हर पार्टी के कैंडिडेट चुनावी वादे तो कर देते, मगर पुल कभी नहीं बनते। कितने सालों तक लोगों ने चुपचाप कष्ट सहा, कितनी मौतें हुई, तब कहीं जाकर पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में क्षेत्रीय जनता को दो पुलों की सौगात मिली। मगर क्या इन पुलों के बनते ही इन क्षेत्रों को उनकी समस्याओं से निजात मिली?
दरअसल कोटद्वार जैसे तमाम शहरी कस्बों की समस्या यह है कि यहाँ लोगों को किसी भी चीज़ से फर्क ही नहीं पड़ता। पौड़ी गढ़वाल जिले के फौजियों ने रिटायरमेंट पश्चात बेहतर जिंदगी हेतु कोटद्वार का रुख किया। इस कस्बे के लगभग चालीस से पचास प्रतिशत घरों में फौजी जरूर मिल जाएंगे। बाकी घरों में ठेकेदार, प्रॉपर्टी डीलर व क्षेत्रीय नेता थोक के हिसाब से पाए जाते हैं।
कोटद्वार यूँ तो कहने को गढ़वाल मण्डल का द्वार माना जा सकता है परन्तु, कभी आप इस नगर का चक्कर लगाएंगे तो क्यों आज उत्तराखण्ड का राज्य विकास की सीढ़ी नहीं चढ़ पा रहा, आप यह आसानी से जान जाएंगे। यहाँ ढंग की सड़कें नहीं हैं। अवैध खनन इस हद तक है कि खनन माफियाओं ने उपरोक्त दोनों नदियों का दोहन करने हेतु पुलों की जड़ें तक खोद डालीं। यहाँ कभी कोई केन्द्रीय विद्यालय या आर्मी पब्लिक स्कूल की मांग नहीं उठाता, गिने चुने पब्लिक स्कूल लोगों की जेब काट काट कर बडे़ बडे़ मकान, रिज़ार्ट खोल रहे हैं। कहीं कोई सड़क बनती है तो दो माह भी टिक नहीं पाती। प्रशासन से सवाल कौन पूछे भला। टूटी सड़कों पर टल्ले लगा दिए जाते हैं। भला कौन भूल सकता है शहर के मोटाढांग प्रांत के चौराहे का वह दृश्य जब कई माह तक भी सड़क के गड्डों को भरा नहीं जा रहा था तो क्षेत्रीय जनता ने प्रशासन से तंग आकर उन गड्डों में वृक्षारोपण कर दिया था।
यहाँ असल मायनों में विकास हुआ है तो ठेकेदार, प्रॉपर्टी डीलर व क्षेत्रीय नेताओं का। हाँ, तमाम प्राईवेट स्कूलों के संचालकों ने भी जमकर नोट छापे हैं। इन सब के बच्चे देहरादून, दिल्ली आदि पढ़ते हैं, महंगी गाड़ियों में घूमते हैं। गरीब का बच्चा आज भी किशनपुर स्कूल या बीईएल के मैदान में दौड़ मारता है, इस ही आस में कि एक दिन फौज में भर्ती होकर माँ बाप को अच्छा जीवन दे सकेगा।
इससे पहले सुखरौ नदी के पुल का एक हिस्सा एकाएक बैठ गया था। वजह सभी जानते थे; अवैध खनन। मगर कुछ भी न हुआ। एक अस्थायी व्यवस्था कर दी गई ताकि काम चल सके। और आज, जब मालन नदी का पुल गिर गया है, वजह सभी जानते हैं, मगर फिर एकबार, इस दिशा में कुछ भी न होगा। यह दुर्घटना कहीं न कहीं लंबे समय से लंबित ही थी। इसका होना निश्चित ही था। आज सुबह यह हो गई। एक युवक की जान चली गई। इस घटना को कुदरत का कहर मान लिया जाएगा। ठेकेदार पहले खराब सड़कें बनाएंगे फिर टूटी सड़कों पर टल्ले लगाते जाएंगे। नदियों में खनन चलता रहेगा। शहर की सरिया फैक्ट्रियां नियमों को ताक पर रखकर चलती रहेंगी। शहर में केन्द्रीय विद्यालय की मांग सुनियोजित ढंग से निजी विद्यालयों के हुक्मरानों द्वारा दबा दी जाएगी। टूटे पुल को बनने में एक वर्ष तक लग जाएगा। सब यूँ ही चलता रहेगा। जनता का क्या है, जनता चुपचाप सब सहती रहेगी। उसको चुनाव पूर्व एक दफा फिर लालढांग- चिल्लरखाल मोटरमार्ग का झुनझुना पकड़ा दिया जाएगा।
यह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले की कोटद्वार नामक तहसील की कथा है। इस राज्य के दोनों मण्डलों के बाकी छोटे-बड़े शहरों, कस्बों व नगरों की कथा भी इससे जुदा नहीं। ठेकेदार, प्रॉपर्टी डीलर, क्षेत्रीय नेताओं व तमाम प्राईवेट स्कूलों के संचालकों के बच्चे देहरादून, दिल्ली का रुख करते रहेंगे। अब तो वह विदेश भी जाने लगे हैं। गरीब का बच्चा आर्मी की भर्ती की तैयारी करेगा, देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने की चाह के साथ। पहाड़ चुपचाप सब देखते रहेंगे, मानो वो शापित हों यह सब संत्रास सहने हेतु।