23 जून 1985, आज से तकरीबन 39 साल पहले जब एअर इंडिया की उड़ान संख्या 182 में एक बम विस्फोट हुआ और इसमें सवार 82 बच्चों, चार नवजातों समेत 329 लोग मारे गए थे। इस घटना के बाद हम इसे कनिष्क बम धमाके के रूप में जानते हैं।
इससे जुड़ी एक खबर आई है कि इस धमाके में संदिग्ध व्यक्ति रिपुदमन सिंह मलिक जिसे बाद में इस केस से बरी भी कर दिया गया था, उसकी हत्या के दो आरोपियों टैनर फॉक्स और जोस लोपेज ने कनाडा की एक कोर्ट में अपना दोष कबूल कर लिया है।
ये तो थी नई खबर और अब हम आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं कि आखिर कनिष्क बम धमाके के दिन क्या हुआ था? टोक्यो एयरपोर्ट पर उसी दिन जो बम धमाका हुआ वो कनिष्क बम धमाके से कैसे जुड़ता है? इस धमाके में मंजीत सिंह और एल सिंह का नाम कैसे जुड़ता है? क्या इस धमाके में कनाडाई सरकार का हाथ था? क्या इस धमाके के एक आरोपी को भारत की सबसे पुरानी पार्टी ने बचाने का प्रयास किया था?
23 जून को कनिष्क विमान ने टोरंटो से उड़ान भरी और मॉन्ट्रियल में रुका जहां से उसे लंदन और फिर अपने अंतिम गंतव्य मुंबई के लिए रवाना होना था। जब यह विमान अटलांटिक महासागर पर तकरीबन 31,000 फुट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, उस समय रडार से गायब हो गया और बाद में पता चला कि सूटकेस में रखा एक टाइमर बम फट गया था और इसमें सवार सभी भारतीय और कनाडाई नागरिक मारे गए।
मंजीत सिंह वो आदमी है, जिस पर शक था कि उसके बैग में बम था। मंजीत अपने बैग के साथ वैंकूवर से टोरंटो के लिए रवाना हुआ था। उसने वहीं से अपना बैगेज सीधे एयर इंडिया की फ्लाइट में चेक इन करवा दिया। उसका बैग कनिष्क में पहुंच गया लेकिन वो खुद उस विमान में नहीं बैठा।
इसके बाद उस विमान के साथ जो हुआ वो हमनें आपको पहले ही बता दिया है लेकिन इस घटना से तकरीबन 1 घंटे पहले कनिष्क बम धमाके वाली जगह तकरीबन 1 हजार मील पर टोक्यो एयरपोर्ट पर एक बम विस्फोट हुआ था।
यहां विलेन एल सिंह नाम का एक आदमी है। एल सिंह को कैनेडियन पैसिफिक एयरलाइन्स के जरिए टोक्यो जाना था, जहां से उसने एयर इंडिया की फ्लाइट 301 में एक कनेक्टिंग टिकट बुक करवाई थी।
मंजीत सिंह वाली कहानी यहां भी देखने को मिलती है। एल सिंह टोक्यो तो नहीं पहुंचा लेकिन उसका बैग टोक्यो पहुंच गया। इस बैग को एयर इंडिया की प्लाइट संख्या 301 में जाना था।
हालांकि, डे लाइट सेविंग के चलते टाइमिंग जरा गड़बड़ा गई। कनाडा और अमेरिका में डे लाइट सेविंग चलती है। माने, गर्मियों में घड़ी एक घंटा आगे और सर्दियों में एक घंटा पीछे। लेकिन टोक्यो में ऐसा नहीं था और बैग में रखे बम की टाइमिंग कनाडा के हिसाब से सेट की गई थी इसलिए जब बैग टोक्यो के नरीता इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बैगेज एरिया में था उसी समय विस्फोट हो गया। इस बम विस्फोट में दो लोगों की जान चली गई थी लेकिन गनीमत ये रही कि एयर इंडिया फ्लाइट 301 के सभी यात्री जिंदा बच पाए।
अब बात कनाडा की भूमिका की। हाल के दिनों में भारत-कनाडा के बीच चल रहे तनावों के मद्देनजर एअर इंडिया को 100 से भी अधिक धमकियां मिल चुकी हैं।
खालिस्तान की मांग करने वाली आतंकी पन्नू जिसे कनाडा की ट्रूडो सरकार से संरक्षण प्राप्त है, उसने भी एयर इंडिया पर हमले की चेतावनी दी है। कनिष्क और टोक्यो में जो हुआ उसके बावजूद इन धमकियों पर कनाडा अपने यहां पल रहे इन आतंकवादियों पर कोई नकेल कसने को राजी नहीं है।
हालांकि, कनाडा का इतिहास भी यही रहा है। इस बात की पुष्टि कनाडाई मीडिया भी करता आया है। कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन ने कनाडा की संघीय पुलिस RCMP के दस्तावेज का हवाला देते हुए बताया है कि 1985 में एयर इंडिया फ्लाइट 182 में हुए बम विस्फोट में कनाडा की खुफिया एजेंसी CSIS का एक जासूस शामिल था।
CBC ने 2003 में कहा भी था कि CSIS ने अपने जासूस को फंसाए जाने से बचाने के लिए अंतिम क्षण में उसे बाहर निकाल दिया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रिपोर्ट में अगर यह जानकारी समय पर सामने आ जाती तो एयर इंडिया कनिष्क बम विस्फोट में मारे गए 329 लोगों की जान बच सकती थी।
उस समय भारत की खुफिया एजेंसी R&AW ने भी कनाडा को आगाह किया था लेकिन उस समय भी कनाडाई सरकार ने इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया था।
बहरहाल, घटना के सात साल बीतने के बाद यानी 1992 में ATS ने मंजीत सिंह को दादर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया था। उस समय मंजीत सिंह अपनी जान लेने पर उतारू था। उसने अपना सिर दीवार से फोड़ने की कोशिश की थी अपनी जीभ काटने की भी कोशिश की थी। इसी साल कनाडा की संघीय पुलिस RCMP के एक अधिकारी भारत आए और उन्होंने मंजीत सिंह से पूछताछ भी की।
फिर साल 2007 आता है जब देश में कांग्रेस सरकार थी उस समय कनाडाई अधिकारी कहता है कि कनिष्क बम धमाके में मंजीत सिंह की कोई भूमिका नहीं थी।
तो फिर सवाल वही कि आखिर यह भूमिका किस की थी और कनाडा ने क्यों नहीं कनिष्क बम विस्फोट की तहकीकात को अंजाम तक पहुंचाया। आज की तरह क्या तब भी कनाडा इन आतंकवादियों को बचा रहा था?