पिनाराई विजयन की अगुवाई वाली केरल की कम्युनिस्ट सरकार की एक महात्वाकांक्षी योजना पर कई सवाल उठ रहे हैं। बताया जा रहा है कि योजना में वित्तीय गड़बड़ियों से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व के मुद्दे को भी दरकिनार किया गया है और साथ ही योजना में किए गए वादे के मुताबिक अभी प्रगति नहीं हो पाई है।
पूरा मामला केरल में गरीबों को मुफ्त हाईस्पीड इन्टरनेट उपलब्ध कराने की योजना KFON (केफोन) से जुड़ा हुआ है। केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने इस योजना को बीते सप्ताह (जून ५, २०२३) को लांच किया था। इसके जरिए राज्य में ऑप्टिकल फाइबर का नेटवर्क हर सरकारी दफ्तर और गरीबों के घरों तक पहुंचाया जाएगा। योजना के चालू होते ही राज्य के विपक्ष ने इस पर प्रश्न उठाने चालू कर दिए हैं और साथ ही एक सरकारी रिपोर्ट ने भी योजना में खामियों का जिक्र किया है।
क्या है की KFON योजना?
KFON, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का ड्रीम प्रोजेक्ट है। केरल की सरकार ने इन्टरनेट की उपलब्धता को आधारभूत अधिकारों में रखा है। इसी के लिए केरल की सरकार ने प्रदेश में अपनी स्वयं की इन्टरनेट सेवा चालू करने की योजना बनाई है। इस योजना का ऐलान मुख्यमंत्री विजयन के पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2017 में किया गया था।
इस योजना का कार्यान्वन केरल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (KSEB) और केरल स्टेट आईटी इन्फ्रास्ट्रकचर लिमिटेड (KSITIL) द्वारा मिलकर किया जा रहा है। योजना की वेबसाइट बताती है कि इसके तहत 35,000 किलोमीटर का ऑप्टिकल फाइबर केबल का नेटवर्क बिछाया जाना है। इसके जरिए राज्य के 20 लाख बीपीएल परिवारों और 30,000 सरकारी दफ्तरों में हाईस्पीड इन्टरनेट उपलब्ध कराया जाएगा।
यह भी पढ़ें: केरल का ‘विकास मॉडल’ चुनाव लड़ने लायक मुद्दा नहीं रहा क्या?
योजना के तहत सरकार ऑप्टिकल फाइबर का नेटवर्क बिछाएगी और इसके बाद स्थानीय स्तर पर इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर लोगों को इन्टरनेट उपलब्ध कराएंगे। इस योजना के पहले चरण में 30,000 सरकारी दफ्तरों और 14,000 बीपीएल परिवारों को इन्टरनेट उपलब्ध कराया जाएगा।
5 जून को जब योजना को लांच किया गया था तब प्रदेश के 17,412 सरकारी दफ्तरों और 2,105 घरों में इसके जरिए इन्टरनेट पहुँचाया जा चुका था। इसके अतिरिक्त केबल का प्रसार 9,000 घरों को कनेक्शन देने के लिए किया जा चुका है। केरल की कम्युनिस्ट सरकार इसे निजी इन्टरनेट प्रदाताओं के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत कर रही है। इस योजना का राष्ट्रीय स्तर पर केरल की सरकार प्रचार कर रही है, इसके लिए अंग्रेज़ी समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस जैसे राष्ट्रीय अख़बारों में पूरे पेज के विज्ञापन भी दिए जा रहे हैं।
केरल की इस योजना पर प्रश्न क्यों खड़े हो रहे हैं?
केरल के मुख्यमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर इसकी लागत से लेकर इसमें उपयोग किए गए केबल तक पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। प्रोजेक्ट की गति पर भी राज्य विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। योजना के क्रियान्वन में भागीदार कम्पनी KSEB ने इस नेटवर्क को बनाने में उपयोग की गई ऑप्टिकल फाइबर की केबलों पर प्रश्न उठाए हैं।
अंग्रेजी समाचार वेबसाइट ऑन मनोरमा के अनुसार, योजना पर काम करने वाली KSITIL द्वारा बिछाई गई केबल चीन से आई थीं जबकि नियमानुसार पूरे प्रोजेक्ट में केवल भारत में निर्मित और टेस्ट किए हुए उपकरण ही उपयोग में लाए जाने थे।
यह केबल चीन में निर्मित थे और इनकी सप्लाई करने वाली कम्पनी एलएस केबल्स एंड सिस्टम्स ने केबलों का परीक्षण चीन के शंघाई में एक लैब में कराया था। नियमानुसार, केबलों का परीक्षण भारत में सक्षम लैब द्वारा किया जाना था, लेकिन शंघाई द्वारा किए गए परीक्षण को यहाँ भी मान्यता दे दी गई। अब इस पूरे मामले पर चल रहे ऑडिट के बीच यह सामने आया है कि चीन से मँगाई गई केबलों के कारण सुरक्षा नियमों में लापरवाही बरती गई और यह केबल भी खराब क्वालिटी के हैं।
केरल के मुख्यमंत्री के निजी सचिव केके रागेश ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया है कि इन केबल के कोर में लगने वाले पार्ट चीन से मंगाए गए हैं जबकि बाकी केबल को एलएस सिस्टम्स द्वारा बनाया गया है। रागेश ने चीन से केबल के सामान मंगाने का बचाव करते हुए कहा कि लोगों को चीन का नाम सुनते हुए यही लगता है कि वहां बना हुआ सामान खराब क्वालिटी का ही होगा।
इस पूरे प्रोजेक्ट के क्रियान्वन में लगी दो कम्पनियों में से एक KSEB का कहना है कि उसने KSITIL को पहले ही चीन से आने वाली सामग्री के विषय में चेता दिया था और अपने एक अधिकारी द्वारा एलएस सिस्टम्स के हरियाणा स्थित प्लांट का मुआयना भी करवाया था। इस पूरे मुआयने के दौरान प्लांट की क्षमता को केबल सप्लाई करने में अक्षम बताया गया था। KSEB के कर्मचारियों ने बताया था कि एलएस सिस्टम्स ऑप्टिकल फाइबर के कोर में लगने वाले उपकरण चीन से मंगाती है।
केंद्र सरकार के नियमों की अवहेलना
केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार, यदि किसी चीनी उत्पाद में ६०% से भारतीय मैटेरियल लगा है तो ही उसे भारतीय निर्माता का माना जाएगा, जबकि एलएस सिस्टम ने बताया था कि उसके केबल में 58% मैटेरियल भारतीय है। एलएस सिस्टम्स के इस दावे की भी जांच नहीं की गई और उसे भारतीय उत्पाद मान लिया गया।
दूसरी तरफ KSITIL ने अपना बचाव यह कहते हुए किया है कि केबल की आपूर्ति करने वाली कम्पनी एलएस सिस्टम्स कोरियाई है और भारत में पंजीकृत है जो इसे भारतीय बना देती है। इसके अतिरिक्त KSITIL ने वर्ष 2018 के भी केंद्र सरकार के आदेश का हवाला दिया है। अब तक एलएस सिस्टम्स द्वारा सप्लाई की गई केबल 2,600 किलोमीटर से अधिक की दूरी में बिछाई जा चुकी हैं।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार लम्बे समय से टेलिकॉम क्षेत्र में चीनी उपकरणों को बाहर का रास्ता दिखा चुकी है उनके उपयोग के ऊपर लगातार दिशानिर्देश जारी करती आई है। केंद्र सरकार की चिंताएं चीनी उपकरणों के माध्यम से जासूसी को लेकर रही हैं। लदाख के गलवान में विवाद के पश्चात भारत सरकार ने BSNL और MTNL को भी आदेश दिया था कि वह कोई भी चीनी टेलिकॉम उपकरण ना उपयोग करे।
इससे पहले अमेरिका समेत तमाम देशों ने अपने यहाँ चीनी टेलिकॉम उपकरणों को सख्त नियम भी बनाए हैं। प्रथम दृष्टया इस मामले में सुरक्षा नियमों की लापरवाही सामने आ रही है और साथ नियमों का उल्लंघन भी बड़े स्तर पर किया गया है।
केबल में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों के अतिरिक्त इसके भुगतान और उपयोग किए जाने वाले फंड को लेकर भी विवाद है। ऑन मनोरमा की एक रिपोर्ट के अनुसार, KSEB ने केंद्र सरकार द्वारा दिए हुए फंड का उपयोग राज्य में केबल बिछाने पर किया है। इन फंड को राज्य में बिजली का डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क मजबूत करने के लिए दिया गया था। KSEB को 80 करोड़ रुपए एलएस सिस्टम्स को इस फंड से भुगतान करने थे लेकिन चीन से आई हुई केबलों की खबर के बीच अभी इनका भुगतान नहीं किया गया है।
केंद्रीय मंत्री ने लगाया सरकार के नियमों की अवहेलना का आरोप
केरल फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क (KFON) परियोजना में चीनी केबल या ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग करने के केरल सरकार के कदम पर आपत्ति जताते हुए, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने पिनाराई विजयन सरकार से कारण बताने को कहा है। केंद्रीय मंत्री ने केरल की वामपंथी सरकार पर घरेलू उत्पाद की जगह चायनीज़ सामान को वरीयता देने का आरोप लगाया है।
विपक्ष ने लगाए आरोप
केरल में प्रतिपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने इसे कम्युनिस्ट सरकार की सबसे भ्रष्ट कार्रवाइयों में से एक बताया है। सतीशन ने कहा है कि प्रोजेक्ट को वर्ष 2017 में चालू किया गया था और इसे 30,000 दफ्तरों और 20 लाख घरों में इन्टरनेट पहुँचाने के लक्ष्य के साथ 18 माह में पूरा होना था लेकिन अभी इसके मुकाबले कुछ काम नहीं हुआ है।
सतीशन ने इस पूरी योजना में वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप भी लगाए हैं। उनका कहना है कि पहले योजना की लागत 1028 करोड़ रुपए बताई गई थी लेकिन बाद में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव एम शिवशंकर के कार्यकाल में इसे बढ़ा कर 1,531 करोड़ रुपए कर दिया गया था। एम शिवशंकर इस समय जेल में हैं।
यह भी पढ़ें: ओडिशा ट्रेन दुर्घटना: चेन्नई, कन्नूर के बाद एक सप्ताह में तीसरा बड़ा हादसा है