अक्सर महंगी शराबों को विदेश से इंपोर्ट किया जाता है। इटली और फ्रांस की वाइन, आयरलैंड से ह्विस्की, स्कॉटलैंड से स्कॉच और जर्मनी की बीयर। वहीं दूसरी तरफ़, यूरोप की सबसे कीमती वाइन में एक ‘मदिरा’ कहलाती है। पुर्तगाल में एक मदिरा नामक द्वीप ही है, जिसकी कहानी भारत से जुड़ी है। यूरोप के दरबारों में इसकी ऐसी पहुँच थी कि रूसी ज़ारशाही का आखिरी गुरु रासपुतिन सिर्फ़ मदिरा वाइन पीता था।
ऐसे ही कुछ शाही शराबों की खोज में राजस्थान जाना हुआ। मालूम पड़ा कि वहाँ के रजवाड़ों में ऐसी खानदानी शराब बनती रही है, जिसका असल रहस्य वे किसी को नहीं बताते। उन्हें विदेशों में निर्यात किया जाता है, और कई विदेशी सैलानी वह शराब चखने राजस्थान आते हैं। उनमें एक है- केसर कस्तूरी।
“यह जो केसर कस्तूरी शराब बाज़ार में मिल रही है, वह भी असली केसर कस्तूरी नहीं है।”, जयपुर में एक व्यक्ति ने बताया
“असली केसर कस्तूरी कहाँ मिलेगी?”, मैंने पूछा
“वह तो रजवाड़ों के अंदर ही रह गयी शायद। मैंने सुना है कि डॉलरों में मिलती है, रुपयों में नहीं।”, उन्होंने कहा।
इसे बनाने की कुछ ऐसी रेसिपी थी जो सिर्फ़ ख़ास रजवाड़ों को ही मालूम थी। यह शाही शराब उन्हें और उनके मेहमानों को ही नसीब होती। जब रजवाड़े खत्म हुए, तो बाद में यह रेसिपी बाज़ार तक पहुँची और गंगानगर में बनने लगी। संभवतः यह रेसिपी भी अधूरी है, और असली केसर कस्तूरी ढूँढना कठिन है। कुछ लोगों ने बताया कि रसूखदार रईस लोगों और विदेशियों तक यह पहुँच जाया करती है।
“हर मौसम के लिए अलग-अलग शराब बनती थी। इसमें भाँति-भाँति की चीजें डाली जाती। मसाले, मिश्री, मेवे, दूध, दही, घी, तरह-तरह की जड़ें, जावित्री और पता नहीं क्या-क्या”
“इस तरह तो नॉर्वे और फ़िनलैंड में भी बनाते हैं, लेकिन दूध-दही तो नहीं डालते”, मैंने कहा
“जो राजस्थान में बनता है, वह दुनिया में शायद ही कहीं नसीब हो। तीस-चालीस अलग-अलग चीजें सही मात्रा में डलनी चाहिए। दरअसल इसे शराब नहीं माना जाता, बल्कि यह तो एक औषधि की तरह थी। यह कठिन मौसम में स्वस्थ रखती।”
“हाँ! ऐसा ही यूरोप के ठंडे इलाकों में भी कहते हैं और काली मिर्च आदि डाल कर शराब पीते हैं”
हर राजघराने जैसे मेवाड़, जोधपुर, बीकानेर आदि के अपने-अपने सीक्रेट थे, जो वह किसी को नहीं बताते। केसर कस्तूरी बनाने की अपनी-अपनी विधियाँ थी। जैसे- जयपुर की एक कानोता जागीरदारी में एक अस्सी जड़ी-बूटियों से लदी शराब तैयार की जाती। इसका नाम है- जगमोहन। यह भी बाज़ार में उपलब्ध है, लेकिन साथ-साथ यह भी कह देते हैं कि असली चीज तो रजवाड़ों में ही रह गयी।
सौंफ के, जीरे के, इलायची के, भाँति-भाँति के मसालेदार शाही शराब राजस्थान में मिलते रहे हैं। शेखावटी इलाके में मेवों के साथ फलों को डाल कर भी शराब बनती रही है। यह स्वदेशी कॉकटेल कहे जा सकते हैं, जो सदियों से भारत में मौजूद हैं। विदेशी सैलानी इसका आनंद लेने आते भी हैं। लेकिन, भारतीय महानगरों में इसकी पहुँच कम दिखती है, और आयातित शराब अधिक लोकप्रिय हैं। स्थिति कुछ-कुछ उस कस्तूरी मृग की तरह है जिसकी अपनी ग्रंथि में ही कस्तूरी हो, और वह इसकी तलाश में भटक रहा हो।