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Home » बुदेलखंड की सूखी धरती को सींचेगा केन-बेतवा रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट
राष्ट्रीय

बुदेलखंड की सूखी धरती को सींचेगा केन-बेतवा रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट

The Pamphlet StaffBy The Pamphlet StaffDecember 12, 2022No Comments4 Mins Read
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बुदेलखंड केन वेतवा
बुदेलखंड केन वेतवा
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केन्द्र सरकार ने 08 दिसम्बर को बहु-प्रतीक्षित केन-बेतवा रिवर इंटरलिंक प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाकर इसके वित्तपोषण और क्रियान्वयन की मंजूरी दे दी है। यह पहली परियोजना है, जिसमें इतने बड़े स्तर पर दो नदियों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम किया जा रहा है।

परियोजना का क्रियान्वयन जल शक्ति मंत्रालय के नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के अन्तर्गत किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य केन नदी में प्रवाहित हो रहे अतिरिक्त जल को नहरों के माध्यम से जोड़कर बेतवा नदी तक पहुँचाना है।

यह दोनों यमुना नदी की सहायक नदियाँ हैं। नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के अन्तर्गत भारत के 30 प्रमुख नदियों को आपस में जोड़कर जलप्रवाह को निर्बाध बहाल किया जाना है, जिनमें 14 हिमालयन और 16 प्रायद्वीपीय नदियाँ शामिल हैं।

जल संकट से जूझती बुंदेलखंड की धरती

मार्च 2021 में केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। सामान्यत: बुंदेलखंड निम्न वर्षा वाला सूखाग्रस्त क्षेत्र है, जहाँ वार्षिक जल वर्षा राष्ट्रीय औसत का मात्र 80-90% ही होती है। कृषि भी वर्षा आधारित होती है। बढ़ती जनसँख्या, परंपरागत सिंचाई पद्धति, जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक उपेक्षा, कुप्रबंधन, दुरुपयोग आदि कारणों से यह क्षेत्र लम्बे समय से जल संकट से जूझ रहा है। साथ ही जल जैसे आधारभूत जरूरत के अभाव में क्षेत्र के विकास और उन्नति भी बाधित हो रही है।

परियोजना का बुदेलखंड का लाभ

यह परियोजना बुंदेलखंड के जल-सुरक्षा और उसके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बेहद जरूरी है। ऐसे में परियोजना के पूरे होने के बाद वार्षिक तौर पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र के लगभग 62 लाख लोगों की पेयजल समस्या दूर होगी और क्षेत्र के लगभग दस लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई की जा सकेगी। इसके अलावा इस परियोजना के तहत 103 मेगावाट पन बिजली और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन भी शामिल है। इस परियोजना से मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, पन्ना, सागर, विदिशा,  दमोह, दतिया, शिवपुरी और रायसेन तथा उत्तर प्रदेश के महोबा, बांदा, ललितपुर और झांसी जिले लाभान्वित होंगे।

परियोजना की लागत

इस परियोजना का अनुमानित लागत 44,605 करोड़ रुपए हैं, जिसमें 39317 करोड़ रुपए (लगभग 90%) का केंद्रीय योगदान है। (36,209 करोड़ केंद्रीय अनुदान एवं 3,027 करोड़ ऋण के तौर पर) इसे पूरा करने के लिए आठ वर्षों का समय निर्धारित किया गया है। आँकड़ों से समझा जा सकता है कि यह परियोजना कितना वृहत और महत्वपूर्ण है। इसके लिए एक अलग प्राधिकरण का गठन किया गया है। इससे अन्य रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट्स के लिए एक रूप-रेखा तैयार करने में सहायता और अनुभव होगी। भारत में जल संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए। 

जल संरक्षण एवं प्रबंधन के मौजूदा प्रयास

ऐसा माना जाता है कि नदियाँ सभ्यताओं की माँ होती हैं। कितने ही सभ्यताएँ इनके तटों पर बसी और उजड़ गई। आज भी मानव जीवन के अस्तित्व पर इनके असीम उपकार हैं। भारत में नदियाँ शरीर में धमनियों के समान है, जो रक्त की भाँति अपने जल में जीवन लिए दौड़तीं हैं। बढ़ती आबादी, उनकी जरूरतों और उनके द्वारा किए जा रहे दुरुपयोग का बोझ लिए कई नदियाँ लुप्त हो गई हैं और कुछ लुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसे में यह सरकार और नागरिकों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि नदियों के पुनरुथान के लिए प्रयास किए जाएँ।

जल शक्ति मंत्रालय के गठन के बाद भारत में जल संरक्षण के लिए लगातार प्रयासरत है। इसके अंतर्गत कई प्रकार की योजनाओं के ऊपर काम किया जा रहा है, जिनमें प्रमुख हैं- जल जीवन मिशन, जल शक्ति अभियान, अटल भूजल योजना, नमामि गंगे अभियान, नेशनल एक्वीफर मैपिंग स्कीम, पीएम कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय जल मिशन और नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान जैसी पहल से भारत में जल संकट को दूर करने के साथ-साथ जल संरक्षण को लेकर लोगों में व्यावहारिक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं।

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