दिल्ली में जल्द ही बिजली महंगी हो सकती है, बिजली प्रदाता कम्पनियों को देश की राजधानी दिल्ली में बिजली की दरों में बढ़ोतरी करने को लेकर मंजूरी मिल गई है। यह मंजूरी दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (DERC) ने दी है। दिल्ली में बिजली की दरों को बढ़ाने के लिए केजरीवाल सरकार की हिस्सेदारी वाली कम्पनियों ने कुछ दिन पहले मंजूरी मांगी थी।
राजधानी दिल्ली में बिजली देने वाली कम्पनी BSES यमुना को वर्तमान दरों की तुलना में 9.4२% अधिक और BSES राजधानी पॉवर लिमिटेड को 6.39% अधिक कीमत वसूलने की मंजूरी मिली है। इन कम्पनियों ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 में लागत की तुलना में सही कीमत वसूलने के लिए दाम बढाने की मांग की थी जिसका प्रस्ताव DERC को भेजा गया था।
दिल्ली में बिजली देने वाली प्रमुख कंपनियों- BSES यमुना, BSES राजधानी और टाटा पॉवर दिल्ली लिमिटेड में दिल्ली की केजरीवाल सरकार 49% की हिस्सेदार है। इन कम्पनियों द्वारा बिजली के दाम बढ़ाने के प्रस्तावों को मंजूरी मिलने के बाद अब इस पर राजनीति भी तेज हो गई है। दिल्ली भाजपा के नेता हरीश खुराना ने दाम बढ़ने के पीछे का कारण केजरीवाल सरकार और बिजली कम्पनियों की मिलीभगत को बताया है।
दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार अब इस फैसले पर जनता की आलोचना को देखने के बाद बैकफुट पर आ गई है, केजरीवाल सरकार में बिजली मंत्री आतिशी मार्लेना ने अपनी सरकार का बचाव करते हुए केंद्र सरकार पर आरोप लगाए हैं। आतिशी ने कहा है कि कीमतों में बढ़ोतरी का कारण केंद्र सरकार है। उन्होंने कहा कि जानबूझकर देश में कोयले की कमी पैदा की गई है।
हालांकि, आतिशी ने यह नहीं स्पष्ट किया कि बिजली दरों में बढ़ोतरी के पीछे कोयले की कीमतें ही केवल एक कारण हैं। आतिशी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा कि दिल्ली में नागरिकों को दी जाने वाली 200 यूनिट मुफ्त बिजली पहले की तरह जारी रहेगी। 200 यूनिट से अधिक बिजली उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को बढ़ी कीमतों का भार झेलना पड़ेगा।
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गौरतलब है कि गर्मियों के मौसम में देश में बिजली की मांग बढ़ जाती है। दिल्ली में गर्मियों में बड़ी मात्रा में बिजली खर्च होती है, ऐसे में गर्मी से बचने के लिए एसी जैसे उपकरण चलाने वाले उपभोक्ताओं पर अब और भार पड़ेगा क्योंकि अधिकाँश ऐसे उपभोक्ता 200 यूनिट वाली श्रेणी में नहीं आ सकेंगे। हाल ही में दिल्ली में दिल्ली में बिजली की मांग 7,000 मेगावाट से ऊपर का स्तर छुआ था।
केजरीवाल सरकार द्वारा बिजली दरों को बढ़ाए जाने के पीछे कोयले को लेकर किए गए दावे भी ज्यादा मजबूत नहीं नजर आ रहे हैं। केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष राज्यों की बिजली पैदा करने की इकाइयों में घरेलू कोयले के साथ 10% आयातित कोयले का उपयोग करने को कहा था। तब यह फैसला देश में बढती बिजली की मांग के अनुपात में कोयले की आपूर्ति को बनाए रखने को लेकर किया गया था।
हालाँकि, अगस्त 2022 में ऐसी किसी भी रोक को हटा दिया गया था। वहीं, कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी के पीछे वर्ष 2022 के बाद से बने हुए वैश्विक हालात हैं। फरवरी 2022 में यूक्रेन-रूस के बीच युद्ध प्रारम्भ होने के बाद से कोयले समेत सभी प्रकार की ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी हो गई थी। कोयले की कमी को लेकर भी हाल में आए आंकड़े और ही तस्वीर पेश करते हैं।
वित्त वर्ष 2022-23 में देश में कोयले का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, इस दौरान कोयले का उत्पादन ८९३ मिलियन टन से अधिक रहा है जो कि २०१८-19 में 728 मिलियन टन था। इसके अतिरिक्त मई 2023 में भी कोयले का उत्पादन भी बढ़ा है, इस दौरान 76.26 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ है जो कि पिछले वर्ष लगभग 71 मिलियन टन था।
देश के कई अन्य राज्यों में अपनी बिजली दरों को कोयले की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बाद बाद भी स्थिर किया हुआ है ऐसे में दिल्ली सरकार का गर्मी के मौसम में बिजली कीमतों का एकाएक 10% बढ़ा देना उपभोक्ताओं को काफी समस्याएं देने वाला है।
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