इस्लामी मुल्क ‘पाकिस्तान’ में मौजूद ‘कटास राज’ मंदिरों का समूह, वहाँ के आखिरी बचे कुछ हिन्दू धार्मिक स्थलों में से एक है। यह पाकिस्तान (भारतीय उपमहाद्वीप) के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। जन-श्रुतियों की मानें तो इसी स्थान पर ‘माता सती’ के पिता ‘प्रजापति दक्ष’ ने भगवान शिव की वेशभूषा को देखकर उन पर ‘कटाक्ष’ किए थे, इसी कारण इस क्षेत्र को ‘कटास राज’ के नाम से जाना जाने लगा।
कटास राज की संरचना
कटास राज मंदिर परिषर, सात मंदिरों का एक समूह है जिसे ‘सात-गढ़’ भी कहते हैं। इसका निर्माण पंजाब के हिन्दुशाही राजाओं द्वारा किया गया था। कटास राज मंदिर परिषर एक प्राकृतिक तालाब के चारों ओर स्थित है।
इस कुंड को उर्दू भाषा में ‘चस्म-ए-आलम’ के नाम से भी जाना जाता है। लोक कथाओं के अनुसार, इस तालाब का निर्माण भगवान शिव के आँसुओं से हुआ था। कहा जाता है कि, माता सती के वियोग में भगवन शिव के आँखों से दो बूँद आँसू गिरे थे, एक से कटास राज स्थित तालाब बना, दूसरे से राजस्थान के पुष्कर में एक तालाब का निर्माण हुआ।
इतिहास में कटास राज
इस क्षेत्र का सबसे पहले ऐतिहासिक उल्लेख चीनी यात्रियों ‘फा हियान’ (4 शताब्दी) और ‘ह्वेनसांग’ (7वीं शताब्दी) के यात्रा वृत्त्तांत में मिलता है। बाद में फ़ारसी गणितज्ञ अल- बरुनी ने इस क्षेत्र का दौरा किया और अपनी पुस्तक ‘किताब-अल-हिन्द’ में इसका उल्लेख किया।
महाभारत काल से सम्बन्ध
- महाभारत काल में यह क्षेत्र ‘द्वैत वन’ के नाम से जाना जाता था। माना जाता है की पांडवों ने अपने 14 साल के वनवास का करीब 4 साल इस क्षेत्र में बिताए थे।
- महाभारत में किए गए वर्णन के अनुसार इसी क्षेत्र में सरस्वती नदी स्थित थी, जो आज विलुप्त हो गई है।
- पांडवों ने भी इस स्थल पर कई मंदिरों का निर्माण करवाया।
- जन श्रुतियों की मानें तो कटास राज स्थित मंदिरों का निर्माण भगवन श्री कृष्ण ने करवाया था और यहाँ मौजूद शिवलिंग की स्थापना उनके ही हाथों हुई थी।
- महाराज युधिष्ठिर की ‘धर्मराज’ की उपाधि इसी जगह प्राप्त हुई थी।
- महाभारत की बहुचर्चित ‘युधिष्ठिर-यक्ष संवाद’ का प्रसंग भी इसी मंदिर प्रांगण से निकला।
- आज भी कटास राज परिषर में महाभारत काल से जुड़े कुछ गुफाओं को देखा जा सकता है जिसे पांडव गुफा कहाँ जाता है।
यूरोप से नाता
कटासराज और आस-पास के इलाके संगीत और कला के बड़े केंद्र थे। यहाँ 10 हजार विद्वानों और कलाकारों के रहने के प्रमाण मिले हैं। लेकिन, महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण के दौरान अपनी प्राण और आजीविका बचने के लिए लोगों ने यहाँ से भरी मात्रा में पलायन किया।
इनमें से बहुतों को गुलाम बनाकर अरब देशों में बेच दिया गया। इसके बाद यह लोग यूरोप पहुँचे। एक सुप्रसिद्ध मान्यता के अनुसार, आज यूरोप में मौजूद करीब 2 करोड़ रोमन जाति के लोगों का सम्बन्ध कटास राज और इसके आस-पास के इलाके से है।
शोध के अनुसार, रोमन जाति के लोगों की भाषा के शब्द संस्कृत और हिंदी से मेल खाते हैं और उनकी संस्कृति भी समान है। यदि मान्यताओं और शोध की मानें, तो यह उन्हीं कलाकारों के वंशज हैं, और इनका संगीत को रोमां संगीत के नाम से जाना जाता है।
नाथ संप्रदाय से रिश्ता
- नाथ संप्रदाय का सीधा ताल्लुक भगवान शिव से है। बताया जाता है कि नाथ संप्रदाय के सुप्रसिद्ध नाथ, ‘गुरु गोरखनाथ’ ने संप्रदाय को एकत्रित करने के क्रम में कटास राज की यात्रा की थी।
- नाथ संप्रदाय के सबसे प्रथम नाथ स्वयं भगवन शिव को माना जाता है जिन्हें ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है।
मंदिर का स्वर्णिम इतिहास
- पाकिस्तान स्थित तक्षशिला से लेकर कटासराज मंदिर से होते हुए शारदा पीठ तक विस्तृत विश्व-विद्यालयों, गुरुकुलों, पुष्तकालयों और अध्ययन केन्द्रों की शृंखला थी।
- कटास राज मंदिर की परिधि में एक विश्वविद्यालय भी था जो दर्शनशास्त्र और बौद्ध अध्ययन का एक प्रशिद्ध केंद्र हुआ करता था।
- प्रसिद्द मुस्लिम विद्वान अल-बिरूनी ने भी 11वीं शतब्दी के दौरान इसी स्थान से हिन्दू धर्म अध्ययन किया और बाद में पश्चिम में जाकर उन्होंने हिन्दू धर्म के परिचय और प्रचार में अहम् भूमिका निभाई।
- पुराने दस्तावेजों और चित्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 1947 तक कटास राज परिषर में नवरात्री का आयोजन धूम धाम से किया जाता था।
कटास राज का व्यवस्थापन
- कटास राज आज पाकिस्तान के जिस ‘साल्ट रेंज’ पहाड़ियों के पास है वह हिन्दुओं के लिए पवित्र माना जाता है। यहाँ से निकलने वाले सिन्धा नमक को आज भी भारत में हिन्दुओं द्वारा किसी खास मौके खासकर पर्व- त्योहारों के दौरान इस्तेमाल किया जाता है।
- कटास राज के अलावा, साल्ट रेंज इलाके में और भी कई मंदिर हुआ करते थे जिसके अवशेष मात्र बचे हैं, इनमें नंदना किला, काफिरकोट मंदिर, कलार कहार मंदिर, मलोट-बिलोट मंदिर, आदि शामिल हैं।
- मंदिर के आसपास की खुदाई में ईसापूर्व 6000 से 7000 की सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
- कटास राज मंदिर परिषर में भगवान शिव के अलावा, प्रभु श्री राम और हनुमान को समर्पित मंदिरें भी मिली हैं।
- कटास राज मंदिर श्रंखला पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के कल्लर कहार नमक रेंज के भीतर स्थित है जो कि पकिस्तान के चकवाल जिले के कटास गाँव में है।
- ऐतिहासिक अभिलेखों की मानें तो कटास राज स्थित कई नए मंदिरों का निर्माण भी 11वीं शतब्दी में हुआ और इन्हें कश्मीरी स्थापत्य परंपरा के अनुसार बनाया गया था, क्योंकि यह क्षेत्र पौराणिक काल में कश्मीर के शाशकों के अधीन था, जिसमे पंजाब के भी हिस्से शामिल थे।
अन्य धर्मों के अवशेष
कटास राज परिषर स्थित तालाब से थोड़ी ही दूरी पर, एक गुरूद्वारे के भी अवशेष मिल हैं। ग्रंथों की मानें तो सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी अपनी यात्रा के दौरान यहाँ ठहरे थे। जिसके बाद यहाँ संभवतः गुरूद्वारे का निर्माण करवाया गया होगा।
दस्तावेजों के अनुसार, महाराजा रणजीत सिंह ने वर्ष 1806, 1818 और 1824 में मंदिर परिषर का दौरा किया।
महाराजा रणजीत सिंह के प्रसिद्द सेनापति हरी सिंह नलवा की हवेली के अवशेष भी यहाँ मिले हैं। यह अवशेष परिषर स्थित श्री राम मंदिर के बिलकुल बगल में मिले हैं।
हरी सिंह नलवा की हवेली के पीछे हीं एक बौद्ध स्तूप के भी आंशिक संकेत मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के क्रम में इसे बनवाया था।
विध्वंश और पलायन
- मंदिर पर कई विदेशी आक्रांताओं ने आक्रमण किए जिनमें 11वीं शताब्दी में महमूद ग़ज़नवी का नाम प्रमुखता से निकलकर सामने आता है।
- ग़ज़नवी के आक्रमण के बाद इस स्थान का वैभव नष्ट हो गया और सदियों तक उसी स्थिति में पड़ा रहा।
- अपनी प्राण और आजीविका बचने के लिए यहाँ से कलाकारों का बड़ी सँख्या में पलायन हुआ।
विभाजन के समकालीन कटास राज
विभाजन के पहले श्री कटास राज मंदिर का क्षेत्र हिन्दू बाहुल्य इलाका था। जानकारी के अनुसार, पंजाब, तक्षशिला के अलावा अफगानिस्तान से आकर भी हिन्दू कटासराज में शीश नवाते थे और अपने पितरों का तर्पण करते थे।
भारत विभाजन के पहले तक, अविभाजित पंजाब (वर्तमान के हिमाचल प्रदेश) के कांगड़ा स्थित ज्वाला देवी मंदिर के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर था।
आजादी के बाद इस स्थल को हिन्दू और अन्य गैर-मुस्लिम धर्मों का स्थल होने की भरषक सजा मिली। इसकी अनदेखी दसकों तक चली। वर्ष 1947 के दर्दनाक विभाजन के बाद अधिकांश स्थानीय हिंदू भारत के लिए रवाना हो गए और मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में गिर गए।
ऐतिहासिक स्थल को लेकर पाकिस्तान का रवैया
कटास राज का इतिहास और वर्त्तमान, हिन्दू विरासत को लेकर पाकिस्तान के दोहरे रवैए को दर्शाता है। जहाँ एक तरफ, विभाजन के बाद, पाकिस्तान में मौजूद प्राचीन बौद्ध स्थलों को देश के समृद्ध इतिहास के हिस्से के रूप में संरक्षित और प्रचारित किया गया, वहीं दूसरी तरफ, हिन्दू विरासत को नजरअंदाज किया गया।
कटास राज का विध्वंश और जीर्णोद्धार
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सन् 1965 और 1971 के युद्धों के बाद, हिन्दू और सिख समुदायों के कई धार्मिक स्थलों पर हमले किए गए। भारत के अयोध्या में वर्ष 1992 में हुई बाबरी विध्वंस के बाद पाकिस्तान में हिन्दू मंदिरों के विध्वंश का शिलशिला चला। इन सबका दंश कटास राज को झेलना पड़ा।
अमेरिका पर हुए 9/11 हमले के बाद जब पाकिस्तान पर भारी वैश्विक दवाब था और मुस्लिम कटारवाद पर सबकी निगाहें टिकी हुई थी, तो धर्मनिरपेक्षता के दिखावे के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने कटास राज का बड़े स्तर पर जीर्णोद्धार शुरू करवाया।
इसका वर्षों बाद जीर्णोद्धार हुआ वर्ष 2005 में पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के दौरे के दौरान किया गए था।
मंदिर की रंगाई-पुताई की गई, संरचना को मजबूत किया गया लेकिन मूर्तियाँ तब भी गायब रहीं। आखिरी बार, वर्ष 2017 में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने प्रांगण में मौजूद कुंड के सूख जाने पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार का आदेश पारित किया।
कटास राज में पर्यटन
- इंडो-पाक प्रोटोकॉल 1972 के तहत है प्रति-वर्ष केवल 200 भारतियों को कटास राज मंदिर परिषर में जाने की अनुमति प्राप्त होती है।
- 1947 में विभाजन के लोग भले हीं पूर्वी पाकिस्तान और भारत में आ गए लेकिन उन्होंने कटास राज को नहीं छोड़ा।
- एक तीर्थस्थल के रूप में कटास राज की बहुत मान्यता है, और लोग यहाँ तीर्थ यात्रा के लिए और पवित्र कुंड में स्नान करने आते हैं।
वर्तमान में कटास राज
पाकिस्तान के इस दूरगामी क्षेत्र में वर्तमान में कई सीमेंट की कारखानों का निर्माण हुआ है, और इस संख्या वृद्धि का असर मंदिर परिसर में मौजूद पवित्र तालाब पर हुआ है। तालाब में पानी का स्तर आश्चर्यजनक रूप से कम हुआ है।
साथ ही अनदेखी और नियमित रूप से जलापूर्ति न होने के कारण, स्थानीय लोग भी तालाब से तालाब का हीं पानी खींच रहे हैं। इसी के बाद मामला पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायलय तक पहुँचा और इसके जीर्णोद्धार का आदेश पारित किया गया।
कटास राज का भविष्य
कटास राज मंदिर का इतिहास, एक मार्मिक दृश्य प्रस्तुत करती है। इसमें दुःख और पीड़ा है, दक्षता और चतुराई है, कला-संगीत का समागम है, अनदेखी और घृणा है और अंततः विध्वंश और आक्रमण का दंश है। लेकिन लोगों की सक्रियता और सुप्रीम कोर्ट का रुख देखकर उम्मीद है की इस धार्मिक स्थल के संरक्षण के प्रयास फलीभूत होंगे।
धार्मिक आस्था के नाम पर अविश्वास के माहौल के बीच, कटास राज के लिए किए जा रहे न्यूनतम प्रयास भी, सुरंग के छोर पर दिख रहे उस प्रकाश के बिम्ब की तरह है।