दिनांक 8 नवंबर 2022, कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा, मंगलवार को चन्द्रग्रहण है। यह ग्रहण भारत में ग्रस्तोदित (यानि ग्रहण लगा हुआ चन्द्रमा उदित होगा) खग्रास व खण्डग्रास चन्द्रग्रहण के रूप में दिखाई देगा। चन्द्रग्रहण का सनातन धर्म में धार्मिक महत्त्व होने से ‘द पैम्फलेट’ ने अ.भा. विद्वत् परिषद्, काशी के ज्योतिषाचार्य डॉ. कामेश्वर उपाध्याय से बात की ताकि सभी प्रश्नों का एक ही जगह समाधान हो सके।
राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत में यह ग्रहण खण्डग्रास स्थिति में और पूर्वी उत्तरप्रदेश, झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में खग्रास स्थिति में (चन्द्रमा ग्रसित काली थाली की तरह) उदय होता दिखाई देगा। भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण आस्ट्रेलिया, एशिया, पैसेफिक भूभाग, उत्तरी और मध्य अमेरिका में दृश्य होगा।
चन्द्रग्रहण प्रारम्भ – 14:39 बजे
खग्रास प्रारम्भ – 15:46 बजे
ग्रहण मध्य – 16:29 बजे
खग्रास पूर्ण – 17:12 बजे
ग्रहण समाप्ति – 18:19 बजे
चन्द्रग्रहण का सूतक प्रातः सूर्योदय से प्रारम्भ हो जाएगा। भारत में स्थान विशेष से चन्द्रोदय के समय में भिन्नता के कारण ग्रहण के स्पर्श और मोक्ष आदि समयों में भिन्नता होगी।
शुद्धि स्नान (वस्त्रों सहित), पूजन तथा भोजन 8 नवंबर 2022 को सायं 18:19 बजे ग्रहण मोक्ष के बाद होगा। बाद में गंगाजल से सम्पूर्ण घर में शुद्धि करनी चाहिए।
सूतक – 8 नवंबर को सूर्योदय से (स्थानानुसार)
मोक्ष स्नान – 8 नवंबर को सायं 18:19 के बाद

चन्द्र ग्रहणफल
यह ग्रहण दक्षिणायन में होने से व्यापारियों व निम्न वर्ग के लिए हानिकारक होगा। यह ग्रहण मेष राशि व भरणी नक्षत्र में हो रहा है अतः मेष व भरणी के जातकों के लिए विशेष हानिकारक होगा। यह ग्रहण पंजाब, मथुरा, उड़ीसा, कश्मीर, उत्तरी पाकिस्तान क्षेत्र, और चीन में उत्पात व हानि करेगा।
अग्नि से सम्बंधित आजीविका वाले लोग व्यवसाय पीड़ित होंगे। ग्रहदृष्टि अनुसार घी, शहद, तेल, पेट्रोल में तेजी होगी, फसलों को नुकसान होगा, अकाल, अवृष्टि व चोरों का भय होगा। ग्रहण कार्त्तिक मास में होने से अग्नि से आजीविका वाले व्यवसायों की हानि का योग है, उत्तरप्रदेश, बिहार व उड़ीसा में जनता पीड़ित होगी।
उड़ीसा व आंध्रप्रदेश में राजनीतिक उठापटक का योग बनेगा, सेना में क्षत्रियों को ताप होगा। गेंहूँ में तुरन्त तेजी होगी, रुई-धागे में तेजी होगी। यदि ग्रहण के 7 दिन के भीतर अच्छी वर्षा हो जाए तो सब अशुभफल नष्ट हो जाता है। सूर्यग्रहण के एक पक्ष बाद 8 नवम्बर को चन्द्रग्रहण हो रहा है जिस कारण विद्वानों को अपने कार्यों के फल मिलेंगे और नई योजनाओं का शुभारम्भ होगा। यह ग्रहण पिछले सूर्यग्रहण के दुष्फल को कम कर देगा।

इस खग्रास चन्द्रग्रहण का राशिफल इस प्रकार है :
मेष – आघात, वृष – हानि, मिथुन – लाभप्रद
कर्क – सौख्य, सिंह – मानहानि, कन्या – अतिकष्ट
तुला – स्त्रीकष्ट, वृश्चिक – सुखप्रद, धनु – चिन्ता
मकर – कष्टव्यथा, कुम्भ – श्रीदः, मीन – क्षतिकारक
देश के प्रमुख स्थानों का ग्रहण प्रारम्भ (चन्द्रोदय), मोक्ष

ग्रहणकाल के सूतक आदि के नियम
सूर्यग्रहण का सूतक ग्रहण आरम्भ से 12 घण्टे पहले और चन्द्रग्रहण का सूतक 9 घण्टे पहले लगता है। चन्द्रमा ग्रस्त अवस्था में उदित होता है तो सूर्योदय से ही सूतक होता है।
सूतक काल में वृद्ध, बालक और रोगी को छोड़कर किसी को भोजन नहीं करना चाहिए। पर ग्रहण आरम्भ होने के एक पहर पहले से बालक, वृद्ध व रोगी को भी भोजन न करना चाहिए। सूर्य ग्रस्त अवस्था में अस्त हो तो रात्रि में भोजन न करे, अगले दिन ग्रहणमुक्त सूर्य का दर्शन कर ही भोजन करे।
सूतक काल में मन्दिर में दर्शन पर्दा ढककर मंगल कर देने चाहिए, व देवमूर्ति आदि का स्पर्श नहीं करना चाहिए। सूतक का पका अन्न ग्रहण करने योग्य नहीं रहता है। पर दूध, दही, घी, जल सूतक में दूषित नहीं होता है। जल, सब्जी आदि खाद्य पदार्थों में ग्रहण के पहले कुशा और तिल डाल देने से यह दूषित नहीं होते ।
ग्रहण के समय में सोने, व मल-मूत्र त्याग का भी निषेध कहा गया है। धर्मग्रंथों में कहा है कि, ग्रहणकाल में सोने से रोग, मूत्रत्याग से दरिद्रता व मलत्याग से अधम योनि, मैथुन से शूकर योनि, उबटन करने से चर्मरोग और भोजन करने से अधोगति मिलती है।

ग्रहण काल में केवल जप, तप करना चाहिए। ग्रहण के जप-तप, स्नान-दान का चन्द्रग्रहण में लाख गुणा और सूर्यग्रहण में 10 लाख गुणा फल होता है। यदि गंगा स्नान प्राप्त हो जाए तो चन्द्रग्रहण में करोड़ गुणा और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुणा पुण्य कहा है।
ग्रहण के आरम्भ से पहले स्नान करना चाहिए, ग्रहण के मध्यकाल में जप, पूजापाठ, हवन, करना चाहिए और ग्रहण समाप्त होने पर वस्त्रों सहित स्नान करना चाहिए व अन्न, तिल, वस्त्र, स्वर्ण, गौ आदि का यथाशक्ति दान करना चाहिए। ग्रहण समाप्ति के उपरान्त मोक्षस्नान करके ही सूतक समाप्त होता है। सूर्य व चन्द्रग्रहण में श्राद्ध करने का अमोघ फल शास्त्रों में कहा गया है। ग्रहण में श्राद्ध सूखे अन्न, घी व दक्षिणा से संकल्पपूर्वक करना चाहिए।
ग्रहण इन इन राशियों पर भारी

जिसकी जन्मराशि या जन्मनक्षत्र पर ग्रहण हो, या 4, 8, 12 वीं राशि पर ग्रहण हो उसको ग्रहण बहुत अनिष्टकारक होता है, उसे इस दुष्फल की शान्ति के लिए दान करना चाहिए। इस चन्द्रग्रहण में मेष, मकर, कन्या, वृष राशि व भरणी नक्षत्र के जातकों के लिए ग्रहण ज्यादा अशुभ है, इसलिए उन्हें शान्ति करनी चाहिए।
चन्द्रग्रहण में चांदी के चन्द्रमा और सर्प बनवाकर घी से भरे हुए ताम्बे या काँसे के पात्र में रख कर तिल, वस्त्र, दक्षिणा आदि लेकर संकल्प करे “मैं अमुक गोत्र में उत्पन्न अमुक नाम मेरी जन्मराशि / जन्मनक्षत्र में हो रहे सूर्यग्रहण के सब अनिष्ट फलों की शान्ति हेतु और शुभफल प्राप्ति हेतु चन्द्र व सर्प बिम्बदान (घी, ताम्रपात्र, तिल, वस्त्र, दक्षिणा) ब्राह्मण को दान कर रहा हूँ।” फिर सूर्य, चन्द्र और राहु केतु को प्रणाम कर पढ़े,
तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन ।
हेमता प्रदानेन मम शांतिप्रदो भव ॥
विधुंतुंद नमस्तुभ्यं सिंहिकानन्दनाच्युत ।
दानेमानेन नागस्य रक्ष मां वेधजायान् ।।
यह पढ़कर उपलब्ध वस्तुएं मंदिर में दान कर दें।
पंचांग सम्बन्धी उपर्युक्त जानकारियाँ श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पंचांग, राजस्थान से ली गई हैं जो पूरे देश में एक समान हैं।
सिंह पर प्रहार नहीं सह सकीं देवी, सप्तशती में है सिंह का भरपूर वर्णन
सप्तशती में देवों ने गाई है देवी की तलवार की भी महिमा