दक्षिण भारत की राजनीति में अलग ही ट्रेंड देखने को मिल रहा है, जहां राज्य सरकारें केंद्र द्वारा लाई योजनाओं और नीतियों को लागू करने से इंकार करती नजर आ रही हैं। केंद्र-राज्य संबंधों में विवाद तो देखने को मिलते ही हैं पर इसके कारण लोक कल्याणकारी योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने का चलन नया लग रहा है। अब तमिलनाडु सरकार द्वारा मेडिकल कॉलेज प्रवेश के लिए होने वाली NEET परीक्षा के विरोध के बाद कर्नाटक सरकार ने राज्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का विरोध करने की घोषणा कर दी है।
कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इसकी घोषणा की है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कर्नाटक सरकार के इस फैसले पर 8 प्रश्न पूछकर जानना चाहा है कि क्या राज्य सरकार कर्नाटक के बच्चों को रीसर्च आधारित शिक्षा से दूर रखना चाहती है?
कर्नाटक सरकार ने फिलहाल राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर बात की है। संभव है कि तमिलनाडु की तर्ज पर अगला कदम NEET, CUET और JEE जैसी परीक्षाओं पर प्रतिबंध लगाने का हो। तमिलनाडु सरकार NEET और राजनीति को एक ही तराजू में रखकर मेडिकल विद्यार्थियों को समान अवसर से वंचित रखने का प्रयास कर रही है। राज्य सरकार ने NEET के विरोध में जो तर्क रखें हैं वो अभ्यर्थियों के हित में कम और राजनीति से प्रेरित अधिक लगते हैं।
NEET के जरिए विद्यार्थियों को विकल्प, अवसर और शैक्षिक गुणवत्ता का फायदा मिलता है। हालांकि NEET के द्वारा सबसे बड़ा प्रहार मेडिकल सीट के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार पर हुआ है। तमिलनाडु सरकार के मंत्रियों की भूमिका पहले भी मेडिकल सीटों की धांधली के मामले में सामने आती रही है। क्या यही कारण नहीं है कि राज्य के अभ्यर्थियों को NEET से वंचित रखकर सरकार यह लाभ का रास्ता बंद नहीं करना चाहती।
केंद्र सरकार का विरोध और योजनाओं का विरोध दो अलग चीजें हैं और उनका आधार भी अलग होना चाहिए। सरकार का विरोध विचारधारा और राजनीति को लेकर हो सकता है पर योजनाओं का विरोध जनहित और लाभ के आधार पर ही तय किया जाना चाहिए।
अब अगर कर्नाटक सरकार ने NEP को हटाने का फैसला किया है तो क्या इसमें राज्य के युवा भविष्य के हित का ध्यान रखा गया है?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मॉडल का उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करके युवाशक्ति को भारत को बदलने में सीधे योगदान देने के काबिल बनाता है। कर्नाटक सरकार या तो तो राज्य को भारत के विकास में योगदान देने से रोकना चाहती है या उनके पास NEP से बेहतर विकल्प है। डीके शिवकुमार को NEP हटाने के साथ ही राज्य की शिक्षा नीति किस प्रकार अधिक समावेशी और सुदृढ़ है इसकी भी जानकारी देनी चाहिए।
साथ ही NEP से कर्नाटक के शिक्षा क्षेत्र को समान अवसर मिल रहे थे तो राज्य सरकार को अलग शिक्षा मॉडल की चर्चा करने की क्या आवश्यकता है? राज्य सरकार अपनी आवश्यकताओं और मांगों के साथ केंद्र से चर्चा कर सकती है पर योजना को राज्य में लागू न होने देना विकास के रास्ते को अवरुद्ध करने के समान है।
प्रश्न यह है कि NEP हो या NEET इनके विरोध का आधार विकासमूलक राजनीति है? प्रश्न यह भी है कि केंद्र सरकार के विरोध के लिए राज्य को योजनाओं से वंचित रखना क्या छिछली राजनीति नहीं है?
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