कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। अब चुनाव नतीजों को अपने-अपने हिसाब से परिभाषित किया जाएगा। हर दल का मुख्य उद्देश्य रहेगा अपने लिए आगे की राजनीति को एक आधार देना। यही आधार विपक्षी एकता या अनेकता में उसकी राजनीति तय करेगा।
दूसरी ओर भाजपा चिंतन करते हुए परिणामों का मूल्यांकन करेगी और नतीजों से सीख लेने का आसान काम करेगी।
परन्तु कॉन्ग्रेस के लिए कर्नाटक चुनावों के परिणाम से क्या उत्पन्न हो सकता है? यह शायद बाद में पता चले पर फिलहाल तो कॉन्ग्रेस इसे उत्तर भारत के तीन प्रमुख राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति बनाने के लिए इस्तेमाल करेगी।
राजनीति और राजनीति बनाने के लिए जिस आर्थिक आधार की आवश्यकता थी, वह शायद कॉन्ग्रेस को कर्नाटक में जीत की शक्ल में मिल चुका है। सारी समस्याओं के बावजूद पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देने का का साहस जुटा रही होगी।
अब प्रश्न यह है कि उत्तर भारत में कॉन्ग्रेस के पास इस कड़ी टक्कर देने का आधार क्या है? इसका उत्तर है, दिसम्बर 2022 में हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव और कॉन्ग्रेस की सत्ता में वापसी। कॉन्ग्रेस का हिमाचल प्रदेश जीतना पार्टी की बड़ी उपलब्धि मानी जानी चाहिए। हिमाचल की जीत आगामी चुनावों की खिड़की थी जो कर्नाटक की जीत के साथ अब द्वार बन चुकी है।
आज कॉन्ग्रेस भले ही कहे कि भारत जोड़ो यात्रा का असर दिख रहा है लेकिन यह बात कितनी सही है? हिमाचल प्रदेश चुनाव में पहली बार था, जब राहुल गांधी ने एक भी चुनावी रैली नहीं की। उस समय मोर्चा संभाल रही थीं, प्रियंका गांधी वाड्रा और पार्टी में उनके गुट के विश्वस्त नेता व छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल।
संभवत: हिमाचल प्रदेश चुनाव कॉन्ग्रेस का एक प्रयोग था ताकि वे यह जान पाएं कि उत्तर भारत से यदि राहुल गांधी को दूर रखा जाए तो क्या परिणाम अनुकूल आएंगे? चुनाव के नतीजे को देखा जाए तो कॉन्ग्रेस का यह प्रयोग सफल दिखाई दिया। प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तो बात यह भी थी कि हिमाचली कॉन्ग्रेसियों ने राहुल गांधी को हिमाचल चुनाव से दूर रखने का सुझाव दिया था।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. राजा वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद पहली बार कॉन्ग्रेस चुनावी मैदान में थी। प्रियंका गांधी वाड्रा और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की रणनीति भी चुनाव लड़ने तक वीरभद्र सिंह के ही इर्द-गिर्द घूम रही थी।
राज दरबार बनाम दिल्ली दरबार की दशकों की लड़ाई के बाद अन्तत: प्रियंका गांधी और भूपेश बघेल के नेतृत्व में दिल्ली दरबार जीता। दोनों नेताओं ने येन-केन-प्रकारेण अन्दरूनी कलह को उस वक्त संभाला और दिल्ली दरबार के करीबी सुखविन्दर सिंह सुक्खू को अन्तत: राज्य का मुखिया घोषित कर दिया।
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हाल ही में जम्मू-कश्मीर कॉन्ग्रेस के भूतपूर्व वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि राहुल गांधी इस बात की परवाह नहीं करते थे कि कोई व्यक्ति पार्टी छोड़कर जा रहा है। यही स्थिति हिमाचल प्रदेश में भी बनी, जब प्रतिभा सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि आलाकमान को राज परिवार को ध्यान में रखना होगा। वे हमें नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
सोचिए ऐसी स्थिति में यदि राहुल गांधी होते तो उत्तर भारत की चुनावी खिड़की खुलने के साथ-साथ अन्दरूनी कलह भी सड़क पर आई होती। तो ऐसे में क्या यह माना जाए कि उत्तर भारत में पार्टी की कमान अब प्रियंका गांधी वाड्रा के हाथों में होगी और राहुल गांधी की दक्षिण भारत में।
राहुल गांधी अमेठी से वायनाड़ काफी समय पहले ही रवाना हो गए थे और भारत जोड़ो यात्रा भी दक्षिण से शुरू हुई थी और पार्टी भी कहीं न कहीं कर्नाटक चुनाव का इन्तजार कर रही थी। यह सभी संकेत संभवत: इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि दक्षिण का गुट अब राहुल गांधी संभालेंगे।